राज्य में पुलिस की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पहले की सरकार में सत्ता पक्ष के विधायक शैलेश पांडे ने खुलकर पुलिस की कथित ‘रेट लिस्ट’ की बात कही थी, जिससे यह साफ हुआ कि कानून व्यवस्था पर सवाल पहले भी उठते रहे हैं। लेकिन अब जब सत्ता बदल चुकी है, तब भी पुलिस की छवि में कोई बड़ा सुधार नहीं दिख रहा।





ताजा मामला तब चर्चा में आया जब एक एडिशनल एसपी के निर्देश पर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल के नेता के घर की रैकी करवाई गई। इस घटना ने विपक्ष को भड़का दिया, जिसके बाद विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया गया। घटना का वीडियो भी पब्लिक डोमेन में आ चुका है, जिससे आम जनता के बीच भी आक्रोश बढ़ रहा है।



राजनीति या पुलिस का दुरुपयोग?


यह पहली बार नहीं है जब पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में आई हो। विपक्ष ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित कदम बताया है और सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। वहीं, जनता भी पुलिस प्रशासन के इस रवैये से नाराज दिख रही है।
सवाल उठता है कि क्या पुलिस का काम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है या फिर राजनीतिक एजेंडों को साधना? इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर पुलिस की गिरती साख का जिम्मेदार कौन है?
क्या सरकार लेगी कोई सख्त कदम?

इस मामले पर सरकार की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी। क्या दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी, या फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा? विपक्ष ने संकेत दिया है कि अगर जल्द ही कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो वे इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाने से पीछे नहीं हटेंगे।
अब देखना यह होगा कि सरकार पुलिस सुधार की दिशा में क्या कदम उठाती है या फिर यह घटना भी बीते मामलों की तरह सिर्फ एक राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगी।

प्रधान संपादक