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September 17, 2024 12:41 am

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चीफ जस्टिस न्याय मूर्ति रमेश सिन्हा ने कहा :हमें दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चों के लिए एक गरिमापूर्ण जीवन एवं सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना होगा “

 बिलासपुर । छत्तीसगढ उच्च न्यायालय  में  दिव्यांग बच्चों के संरक्षण को सशक्त व प्रभावी बनाने के लिए “हितधारकों का नौवां राज्य स्तरीय परामर्श कार्यक्रम” The 9th Round of State Level Stakeholders’ Consultation on the Protection of Children with Disabilities आयोजित किया गया। इस राज्य स्तरीय कंसल्टेशन प्रोग्राम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ उच्च न्यायालय  के मुख्य न्यायाधिपति  न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा रहे ।उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन  दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया।

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने अपने उदघाटन भाषण में कहा कि भारत में निर्योग्यता से ग्रस्त लोगों में से अधिकांश हिस्सा बच्चों का है जिन्हें उचित शिक्षा व पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधा तथा समाज में मुख्य धारा में शामिल होने के लिए अवसर उपलब्ध नहीं है। उनके द्वारा यह भी बताया गया कि निर्योग्यताओं से ग्रसित बच्चों के लिए विशेष स्कूल और विशेष रूप से प्रशिक्षित स्टाफ की आवश्यकता होती है और ऐसे बच्चों को विशिष्ट चिकित्सकीय देख-रेख की आवश्यकता होती है।  मुख्य न्यायाधिपति  ने इस बात पर बल दिया कि यदि प्रारंभिक अवस्था में ऐसे बच्चों को चिकित्सकीय सहायता मिल जाए तो ऐसे बच्चों की जटिलताएं कम हो सकती है और उनके जीवन की गुणवत्ता उच्च हो सकती है।
मुख्य न्यायाधिपति  द्वारा इस बात पर भी बल दिया गया कि दिव्यांग बच्चों के साथ व उनके परिवारजनों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए व उनके साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए, जिससे दिव्यांग बच्चे समाज के मुख्य धारा में रहें ना कि समाज के हाशिए पर ।

मुख्य न्यायाधिपति  द्वारा इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया गया कि बच्चों की देखरेख करने वाली संस्थाओं में बच्चों की सुरक्षा विशेष रूप से दिव्यांग बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि दिव्यांगता से ग्रस्त बच्चे कई बार यह नहीं जान पाते कि उनके साथ कोई अपराध हुआ है और कई बार यदि वो जानते भी हैं तो अपनी शारीरिक व मानसिक निर्योग्यताओं के कारण बता पाने में अक्षम होते हैं। ऐसी दशा में यह सभी हितधारकों का दायित्व है कि वह बच्चों की देखरेख करने वाली संस्थाओं में बच्चों की सुरक्षा और संरक्षा को अक्षुण्ण रखें ।

मुख्य न्यायाधिपति  द्वारा इस बात पर भी बल दिया गया कि विधि से संघर्षरत् बालकों के साथ-साथ अपराध के पीड़ित बच्चों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए तथा लैंगिक अपराध के पीड़ित बच्चों को यथाशीघ्र प्रतिकर उपलब्ध हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ-ही-साथ ऐसे बच्चों की चिकित्सा परिचर्या व शिक्षा व पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा  निर्योग्यताओं से ग्रस्त पीडित बच्चों का साक्ष्य न्यायालय में सतर्कता और सावधानी से कराया जाना चाहिए और विशेष रूप से मानसिक रूप से कमजोर तथा मूक व बधिर पीड़ितों का साक्ष्य कराए जाते समय व साक्ष्य विश्लेषण करते समय विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए और साक्ष्य अभिलिखित किए जाने में यथा संभव विधि अनुसार विशेषज्ञों की सहायता ली जानी चाहिए।

बलात्कार के कारण गर्भवती हो जाने वाली महिलाओं के गर्भ समापन में आने वाली कठिनाईयों का जिक करते हुए चीफ जस्टिस ने  सभी हितधारकों यथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों पुलिस, न्यायालय चिकित्सक व अधिवक्ताओं को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
उन्होंने  इस बात पर बल दिया गया कि गरिमापूर्ण जीवन हर बच्चे का चाहे वह दिव्यांग ही क्यों ना हो, मूलभूत अधिकार है और इसे उपलब्ध कराना हम सब की जिम्मेदारी है। माननीय मुख्य न्याययाधिपति महोदय द्वारा यह व्यक्त किया गया कि कोई समाज कितना समुन्नत व सभ्य है उसका पैमाना यह है कि वह समाज अपने सबसे कमजोर वर्ग के साथ किस तरीके से व्यवहार करता है।

स्वागत व आरंभिक भाषण न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल द्वारा दिया गया।  विशिष्ट अतिथि  न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी द्वारा विशिष्ट व्याख्यान दिया गया। न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल के द्वारा आधार व्याख्यान दिया गया । कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में  मुख्य न्यायाधिपति  व अन्य न्यायमूर्तिगण द्वारा बलात्कार पीड़िता के गर्भ समापन के संबंध में विभिन्न हितधारकों की भूमिका को दर्शित करते हुए एक फ्लिप चार्ट जारी किया गया। इस फ्लिप चार्ट में बलात्कार की पीडिता के गर्भ समापन के संबंध में सभी हितधारकों यथा पुलिस न्यायालय, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व चिकित्सकों की भूमिका को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है जो पीड़िता के गर्भ समापन के संबंध में अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

उद्घाटन सत्र के समापन पर  न्यायमूर्ति दीपक तिवारी द्वारा आभार प्रदर्शन किया गया।

इस नौवें राज्य स्तरीय कंसल्टेशन प्रोग्राम में दिव्यांग बच्चों की कलात्मक प्रतिभाओं को प्रदर्शित करने के लिए एक उत्कृष्ट मंच प्रदान किया गया। इस दौरान इन दिव्यांग बच्चों के द्वारा बनाए गए चित्रित कैनवास, जूट के बैग, विभिन्न हस्तशिल्प हाईकोर्ट के गैलरी में प्रदर्शित किए गए। यह प्रदर्शनी इन युवा दिव्यांग कलाकारों की प्रतिभाओं के लिए प्रमोशन, प्रेरणा और उत्साह का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत साबित हुई।  मुख्य न्यायाधिपति  द्वारा पेंटिंग को बनाने वाले दिव्यांग बच्चों के साथ मुलाकात कर उनका उत्साहवर्धन किया गया।

उद्घाटन सत्र के समापन के उपरान्त दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए।प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता  न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी द्वारा की गई। जिसमें   न्यायमूर्ति दीपक तिवारी और  न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय सह अध्यक्ष के रूप में शामिल रहे। इस सत्र में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव, महिला और बाल विकास विभाग के निदेशक, समाज एवं कल्याण विभाग के निदेशक ने भी भाग लिया। महिला और बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग, स्वास्थ्य विभाग और राज्य बाल संरक्षण आयोग के प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित कंसल्टेशन प्रोग्राम के परिप्रेक्ष्य में अपने-अपने विभागीय गतिविधियों की संक्षिप्त में प्रस्तुति दी। विभागीय अधिकारियों के प्रस्तुतिकरण और प्रतिभागियों की खुली चर्चा के उपरांत प्रथम सत्र का समापन उद्बोधन  न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय द्वारा दिया गया।

द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता  न्यायमूर्ति संजय अग्रवाल द्वारा की गई जिसमें श्रीमती  न्यायमूर्ति रजनी दुबे पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव, पुलिस महानिरीक्षक बिलासपुर सहित अन्य महत्वपूर्ण अधिकारियों द्वारा सह अध्यक्षता की गई। इस सत्र के दौरान यूनिसेफ पुलिस विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान मजिस्ट्रेट, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव द्वारा आयोजित कंसल्टेशन प्रोग्राम के परिप्रेक्ष्य में अपने-अपने विभागीय गतिविधियों की संक्षिप्त में प्रस्तुति दी गई। द्वितीय सत्र का समापन उद्बोधन  श्रीमती न्यायमूर्ति रजनी दुबे के द्वारा दिया गया।

इन सत्रों में विभिन्न हितधारकों द्वारा विस्तार से दिव्यांग बच्चों विधि से संघर्षरत् बालकों, रेप पीड़ित बालिकाओ के सुरक्षा व संरक्षा को मजबूत बनाए जाने के संबंध में विभिन्न हितधारकों की भूमिका व चुनौतियों की चर्चा की गई तथा उन्हें प्रभावी बनाए जाने के लिए उपायों व प्रावधानों की चर्चा की गई तथा प्रतिभागियों के साथ चर्चा की गई।

कार्यक्रम के समापन पर आभार प्रदर्शन  सिराजद्दीन कुरैशी, डायरेक्टर छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा किया गया।
इस नौवें राज्य स्तरीय कंसल्टेशन प्रोग्राम में माननीय छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के  न्यायमूर्तिगण छत्तीसगढ राज्य न्यायिक अकादमी बिलासपुर, छत्तीसगढ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण / चिकित्सा शिक्षा विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास स्कूल शिक्षा विभाग, सचिव समाज कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, पुलिस मुख्यालय रायपुर, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, युनिसेफ के प्रतिनिधि/अधिकारीगण हितधारक प्रतिभागी सदस्य के रूप में उपस्थित रहे और उनके बीच दिव्यांग बच्चों के संरक्षण के लिए व उनके जीवन को पूर्णता प्रदान करने के उपायों व प्रावधानों पर विस्तृत चर्चा की गई। छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के  मुख्य न्यायाधिपति  न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा द्वारा इस राज्य स्तरीय कंसल्टेशन प्रोग्राम में अपना योगदान देने के लिए सभी  न्यायमूर्तिगण का व सभी विभाग से उपस्थिति अधिकारीगण व प्रतिभागी सदस्यों, जिला न्यायालय से उपस्थित सभी प्रधान जिला न्यायाधीशगण न्यायिक अधिकारीगण उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री के अधिकारीगण, कर्मचारीगण तथा उन सभी लोगों का जिन्होनें इस कंसल्टेंटेशन प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से योगदान दिया है, को धन्यवाद ज्ञापित किया ।

CBN 36
Author: CBN 36

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