बिलासपुर। बिलासपुर नगर निगम के वार्डों का एक बार फिर परिसीमन का करवाने राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर याचिकाओं पर के हाई कोर्ट में कल सोमवार को सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य शासन ने अलग ही तर्क पेश किया। उनका कहना था कि जिन स्लम बस्तियों को विस्थापित किया गया है और वहां के निवासियों को अलग-अलग वार्डों में शिफ्ट किया गया है यह परिसीमन उनके लिए है। इसमें वर्ष 2011 की जनगणना को आधार नहीं बनाया गया है। शासन के इस जवाब से कोर्ट को संतुष्टि नहीं हुई । शासन के जवाब के बाद जब कोर्ट ने पूछा कि क्या केवल उन्हीं वार्डों का परिसीमन किया गया है जहां स्लम बस्ती के लोग रह रहे हैं। इस पर शासन की ओर महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अफसर जवाब नहीं दे पाए। राज्य सरकार के रुख को देखते हुए जस्टिस पीपी साहू ने नाराजगी जताई व फाइल सरका दी। कोर्ट ने कहा अर्जेंट मैटर होने के बाद भी रिप्लाई फाइल नहीं कर पा रहे हैं। दंतेवाड़ा से जवाब नहीं आया। यह समझ में आता है। मौसम खराब है, वर्षा हो रही है। पर आप लोग तो शहर में हैं। अर्जेंट मैटर की गंभीरता नहीं समझ रहे हैं। इधर पूर्व विधायक शैलेष पांडेय ने कहा कि हमें न्याय के मंदिर पर पूरा भरोसा है ।
रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा रविवार को काजलिस्ट जारी कर सोमवार को डिवीजन व सिंगल बेंच में सुनवाई के लिए लगने वाले प्रकरणों की सूची जारी कर दी थी। जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच में सुबह याचिका पर सुनवाई हुई। जैसे ही यह मामला लगा और कोर्ट ने परिसीमन को लेकर जानकारी मांगी तब महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारियों ने दस्तावेज पेश करने के लिए मोहलत मांग ली। कोर्ट ने दोपहर बाद का समय दिया। भेाजनावकाश के बाद जैसे ही मामला लगा राज्य शासन की ओर से दस्तावेज पेश किया गया। साथ ही महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि स्लम फ्री सिटी योजना के तहत शहर की 13 स्लम बस्तियों को केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत आइएचएसडीपी, प्रधानमंत्री आवास योजना व वाम्बे आवास योजना के तहत बने मकान में शिफ्ट किया गया है। इनकी संख्या तकरीबन दो हजार 617 है। बिलासपुर नगर निगम में वार्डों का परिसीमन का आधार यही है। वर्ष 2011 की जनगणना को आधार नहीं बनाया गया है। गौरतलब है कि बिलासपुर नगर निगम द्वारा वार्डों के किए गए परिसीमन पर आपत्ति दर्ज करते हुए बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक शैलेष पांडेय व चार ब्लाक अध्यक्षों ने याचिका दायर की है।
राजनादगांव नगर निगम, कुम्हारी व तखतपुर नगर पालिका, बेमेतरा नगर पंचायत में वार्डों के परिसीमन को चुनौती दी गई थी। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस पीपी साहू ने परिसीमन की प्रक्रिया और अधिसूचना पर रोक लगा दी है।
दावा-आपत्तियों का नहीं हुआ निराकरण
याचिका में इस बात को लेकर भी आपत्ति दर्ज कराई है कि परिसीमन के बाद कलेक्टर ने शहरवासियों से दावा आपत्ति मंगाई थी। उसका निराकरण नहीं किया गया है। आवेदन पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दी गई है। ऐसा लगता है कि कलेक्टर ने कानूनी अड़चनों से बचने और औपचारिकता निभाने के लिए शहरवासियों से दावा आपत्ति मंगाई गई थी। सक्षम प्राधिकारी के पास आपत्ति दर्ज कराई गई है तो उनका दायित्व बनता है निराकरण किया जाए। पर ऐसा नहीं हो रहा है। शासन द्वारा तय मापदंड व प्रक्रिया का पालन कहीं नहीं किया जा रहा है। अधिकारीगण केवल औपचारिकता निभाते रहे है। लोगों की आने वाली मुसीबतों पर ध्यान नहीं दिया गया है। वार्ड परिसीमन के बाद लोगों का पता बदल जाएगा, परिस्थितियां बदल जाएगी। आधार कार्ड से लेकर पेन कार्ड सहित जरूरी दस्तावेजों में पता बदलवाना पड़ेगा।
याचिका में इस पर जताई है आपत्ति
राज्य सरकार ने प्रदेशभर के निकायों के वार्ड परिसीमन के लिए जो आदेश जारी किया है उसमें वर्ष 2011 के जनगणना को आधार माना है। इसी आधार पर परिसीमन का कार्य करने कहा गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वार्ड परिसीमन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार अंतिम जनगणना को आधार माना गया है। राज्य सरकार ने अपने सरकुलर में भी परिसीमन के लिए अंतिम जनगणना को आधार माना है। राज्य सरकार ने इसके पहले वर्ष 2014 व 2019 में भी वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का कार्य किया है। जब आधार एक ही है तो इस बार क्यों परिसीमन का कार्य किया जा रहा है। याचिका के अनुसार वर्ष 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं है, तो फिर उसी जनगणना को आधार मानकर तीसरी बार परिसीमन कराने की जरुरत क्यों पड़ रही है।
कोर्ट के सवाल का नहीं दे पाए जवाब
राज्य शासन के जवाब के बाद हाई कोर्ट ने पूछा कि स्लम बस्तियों को उजाड़ा गया और शिफ्ट किया गया है क्या केवल इन्हीं वार्डों का परिसीमन किया गया है। वर्तमान में स्लम बस्ती के लोग कहां-कहां रह रहे हैं। निगम सीमा के भीतर बने वार्ड में ही तो रह रहे होंगे। कोर्ट के सवालों का शासन के पास कोई जवाब नहीं था। निरुत्तर होने के बाद शासन की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ताओं ने एक बार फिर समय की मांग की। इस पर कोर्ट नाराज हो गया। कोर्ट ने कहा कि बिलासपुर नगर निगम के अलावा प्रदेश के अन्य निकायों में वार्ड परिसीमन के खिलाफ खबरों का प्रकाशन हो रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में खबरें चल रही हैं। इसके बाद भी जवाब के लिए समय मांगा जाना आश्चर्यजनक है।
यह न्याय और जनहित की लड़ाई बनाम अहम की लड़ाई है
इधर पूर्व विधायक शैलेष पांडेय का कहना है कि “परिसीमन” – न्याय और जनहित की लड़ाई बनाम अहं की लड़ाई है और इस लड़ाई में *हमको न्याय के मंदिर पर भरोसा है*।
श्री पांडेय ने कहा कि परिसीमन एक बड़ा विषय है व्यापक विषय है जो जनहित के लिए किया जाना चाहिए न कि कुछ लोगो को लाभ पहुँचाने के लिए किया जाना चाहिए,ये कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए जनमानस को तहस नहस करना चाहते है।परिसीमन का उद्येश्य सरकार जब निर्देशित करती है तो जनसंख्या हमेशा ही आधार रहता है और जनसंख्या यानि एक बड़ा वर्ग होता है,सरकार अपने अहं में झूठ बोल कर गुमराह कर रही है,केवल कुछ लोगो के व्यवस्थापन को आधार बनाकर बड़े वर्ग को नुक़सान करने का प्रयास करने जा रही है और वो नुक़सान केवल चंद लोग जो अपने अहं के चलते बिलासपुर को कभी आगे बढ़ने नहीं दिया और शहर को बीस साल पीछे लेकर चले गये,*ये लड़ाई जनहित की है अहं की नही* सरकार ने गुमराह करने का प्रयास किया है लेकिन हमको न्याय के मंदिर पर पूरा भरोसा है और जनहित के लिए लड़ाई लड़ना ही हमारा उद्येश्य है ताकि नापाक ताक़तों के इरादे सफल न हो।छोटे छोटे व्यस्थापन को दिखाकर गुमराह करना उचित नहीं है जबकि सरकार का परिसीमन का उद्येश्य स्पष्ट था पहले से कि जनसंख्या का ही आधार होगा परिसीमन न कि छोटे छोटे व्यस्थापन।ख़ैर ईश्वर पर भरोसा होना चाहिए न्याय पर भरोसा होना चाहिए, सत्य पर भरोसा होना चाहिए।