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November 13, 2025 11:13 am

रायगढ़ में प्रस्तावित पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान बनेगी आत्मनिर्भर भारत की नई पहचान

धरती की गहराई में ऊर्जा का नया अध्याय, सतह पर हरियाली जस की तस

भूमिगत खनन से विकास और पर्यावरण में बनेगा संतुलन,खेती, जंगल और जलस्रोत रहेंगे सुरक्षित

ग्रामीणों को रोजगार और सामाजिक समृद्धि के नए अवसर,छत्तीसगढ़ बढ़ाएगा भारत की ऊर्जा क्षमता में योगदान

छत्तीसगढ़ ।भारत ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और बड़ा कदम बढ़ाने जा रहा है। रायगढ़ जिले के पुरुंगा क्षेत्र में प्रस्तावित भूमिगत कोयला खदान परियोजना इस दिशा में एक नई मिसाल बनने वाली है। 2.25 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाली यह परियोजना न केवल देश की ऊर्जा जरूरतें पूरी करेगी बल्कि पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण भी बनेगी।

धरती के भीतर से ऊर्जा, ऊपर हरियाली जस की तस

इस परियोजना में कोयले का खनन पूरी तरह भूमिगत स्तर पर किया जाएगा। यानी धरती की सतह पर न कोई खुदाई होगी, न विस्फोट। खेत, पेड़-पौधे, जंगल और ग्रामीण आवास सुरक्षित रहेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, भूमिगत खनन से भूमि की उर्वरता पर कोई असर नहीं पड़ता और खेती पहले की तरह जारी रहती है।

वन्यजीवों को नहीं होगा खतरा

खनन से वन्यजीव प्रभावित होंगे, यह आम धारणा है। लेकिन इस आधुनिक तकनीक में सतह पर भारी मशीनें या ब्लास्टिंग की आवश्यकता नहीं होती। इस कारण हाथी, हिरण, सियार और पक्षियों जैसे जीवों के प्राकृतिक आवास प्रभावित नहीं होते। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि भूमिगत खनन “धरती के भीतर से ऊर्जा निकालने का सबसे सुरक्षित तरीका” है।

प्रदूषण और शोर से मिलेगी राहत

ओपन कास्ट माइनिंग की तुलना में भूमिगत खनन कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल है। इसमें न धूल उड़ती है, न शोरगुल होता है। आसपास के गाँवों में वायु प्रदूषण और कंपन नगण्य रहते हैं। खदान से निकलने वाले पानी को शुद्ध कर स्थानीय लोगों के उपयोग में लाने की भी व्यवस्था होगी।

जलस्रोत और मिट्टी रहेंगे सुरक्षित

खनन 500 फीट या उससे अधिक गहराई में होगा, जबकि गाँवों के ट्यूबवेल सामान्यतः 40-50 फीट गहराई तक ही होते हैं। इस वजह से भूजल स्तर पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साथ ही भूमि की सतही परत जस की तस रहने से मिट्टी की गुणवत्ता भी सुरक्षित रहेगी।

ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर

परियोजना से स्थानीय युवाओं को रोजगार और प्रशिक्षण के अवसर मिलेंगे। साथ ही, परिवहन, मरम्मत, मशीनरी और सेवा क्षेत्र में भी नए रोजगार खुलेंगे। सामाजिक दायित्व के तहत आसपास के गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क विकास जैसी सुविधाएँ भी बढ़ेंगी।

विरोध नहीं, संवाद जरूरी

कुछ लोगों की आशंकाओं के बीच विशेषज्ञों का मानना है कि भूमिगत खनन सतही खनन से कहीं अधिक सुरक्षित और पर्यावरण हितैषी है। निर्णय तथ्यों और दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही लिए जाने चाहिए।

ऊर्जा आत्मनिर्भर भारत में छत्तीसगढ़ की भूमिका

छत्तीसगढ़ देश के कुल कोयला उत्पादन में लगभग 20 प्रतिशत योगदान देता है। पुरुंगा खदान इस योगदान को और बढ़ाएगी। इससे राज्य के औद्योगिक विकास को भी नई गति मिलेगी।

विकास और हरियाली का संगम

भूमिगत खनन यह संदेश देता है कि विकास का रास्ता प्रकृति से टकराव नहीं, बल्कि उसके साथ तालमेल में भी हो सकता है। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के शब्दों में धरती के भीतर से ऊर्जा निकालने का यह तरीका भारत के सतत विकास की पहचान बनेगा, जहाँ विकास भी हो और हरियाली भी कायम रहे।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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