बिलासपुर।छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सड़क हादसे में मारे गए 14 वर्षीय बालक के परिजनों को दिए गए 10.81 लाख रुपये मुआवजे को पूरी तरह न्यायसंगत ठहराया है। बीमा कंपनी की अपील को खारिज करते हुए जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की सिंगल बेंच ने कहा कि नाबालिग बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।




यह मामला कोरबा जिले के कटघोरा का है, जहां 22 मई 2017 को 14 वर्षीय आलोक स्कूटी पर पीछे बैठा था। तभी तेज रफ्तार कार (क्रमांक सीजी 12 डी 9062) ने स्कूटी को टक्कर मार दी। टक्कर से आलोक सड़क पर गिर पड़ा और पीछे से आ रहे एक ट्रक की चपेट में आ गया। हादसा इतना भीषण था कि मौके पर ही आलोक की मौत हो गई।



घटना के बाद आलोक के माता-पिता और भाई-बहनों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण, कटघोरा में याचिका दाखिल कर 90 लाख रुपए मुआवजे की मांग की थी। ट्रिब्यूनल ने न्यूनतम मजदूरी के आधार पर बालक की मासिक आय 8,190 रुपये मानकर गणना की। भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए 40 प्रतिशत राशि जोड़कर कुल 10.31 लाख रुपये की क्षति आंकी गई। अंतिम संस्कार एवं अन्य मदों में 50 हजार रुपये अतिरिक्त जोड़कर मुआवजा 10.81 लाख रुपये निर्धारित किया गया।

बीमा कंपनी ने ट्रिब्यूनल के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि मृतक 14 वर्षीय नाबालिग था, जिसकी कोई वास्तविक आय नहीं थी। इसलिए उसे मजदूरी दर पर आय मानकर मुआवजा तय करना अनुचित है। बीमा कंपनी ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में अधिकतम पांच लाख रुपये का मुआवजा ही उचित माना जाना चाहिए।
जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की पीठ ने बीमा कंपनी की अपील को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी बच्चे के उज्जवल भविष्य की संभावनाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं और उनकी संभावित आय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ट्रिब्यूनल द्वारा न्यूनतम मजदूरी व भविष्य की संभावनाओं के आधार पर मुआवजा तय करना उचित है। कोर्ट ने मुआवजे की राशि को पूर्णतः उचित और संतुलित बताते हुए कहा कि परिजनों को दी गई राशि में कोई कटौती नहीं की जा सकती।

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