ये तो गजब का सीन है




शराब के बाद रेत माफियाओं के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई देखने को मिली। ऐसा सीन कभी-कभी ही नजर आता है। इस बार आया। यह पहली मर्तबे देखने को मिला जब एसएसपी और कलेक्टर सीधे एसी चेंबर छोड़कर सड़क पर उतर आए। कारण भी साफ था। सीएम के विभाग में माफियागीरी, इस पर रोक लगानी ही पड़ेगी। सो पुलिस और प्रशासन के मुखिया ने ही कमर कस ली। जब मुखिया सड़क पर उतरे तो मजाल है कि मुलाजिम सक्रिय ना हों। हुआ भी ऐसा ही। मुलाजिमों ने पसीना बहाया और एकसाथ कई गाड़ियों को पकड़ लिया। ट्रैक्टर से लेकर हाइवा और लोडर से लेकर पोकलेन। ना जाने क्या-क्या वाहन। वाहनों में भरे रेत भी। जब्ती की कार्रवाई तो हुई साथ में एफआईआर का तड़का भी लगा। वाकई ये सीन तो लाजवाब है। अगर ऐसा ही चलते रहा तो जिले से शराब माफिया के साथ ही रेत माफियाओं का पत्ता साफ हो जाएगा। आम लोगों को राहत मिलेगी। राहत मिलेगी तो दुआएं भी देंगे। इसका असर तो दूरगामी होता है।



आचार संहिता और आचरण का रखना होगा ख्याल

बीते कुछ दिन पत्रकार जगत के लिए शर्मनाक ही रहा। चौथे स्तंभ के रूप में शुमार होने वाले नाम को चंद लोग लालच में आकर नाम खराब करने पर तूले हुए हैं। एक वह जमाना था कि युवा पत्रकारिता को मिशन बनाकर आते थे। व्यवस्था को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाते थे। कलम की ताकत का अंदाजा कराते थे। कलम की ताकत हमने देखा है। एक रिपोर्ट पर तब दिल्ली से तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को सरगुजा आना पड़ गया था। बैगा आदिवासी की भूख से मौत की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। अब तो आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कि पीएम को सब कार्यक्रम छोड़कर दिल्ली से सरगुजा आना पड़ा था, उस कलम की ताकत और रिपोर्टिंग की धार की कल्पना तो हम सब कर ही सकते हैं। चौथे स्तंभ की ताकत भी यही है। आदर्श आचरण और शुद्ध अंत:करण से कलम चलानी पड़ती है। अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पत्रकारिता जैसे पेशे को चंद लोग बदनाम करने पर तुले हुए हैं। समय रहते इस पर अंकुश लगाने की जरुरत है। यह समय की मांग भी है।
सीएस की जादुई कुर्सी, किस्से हिस्से आएगी
छत्तीसगढ़ में दो ही हाट टापिक है। पूर्णकालिक डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी। दोनों में सबसे हाट टापिक सीएस ही है। अब चंद दिन ही बचे हैं सीएस अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में। सरकार के सामने चुनौती भी है कि रिटायरमेंट से पहले नए सीएस के नाम की घोषणा करना। सत्ता के गलियारे में दो ही नाम चल रहे हैं। सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ। रायपुर से लेकर दिल्ली और ओड़िशा तक इनके अपने संपर्क सूत्र भी हैं। तभी तो दोनों ही नाम को लेकर सत्ता से जुड़े लोग 50 – 50 मानकर चल रहे हैं। दिल्ली में जिसका सिक्का चल गया कुर्सी उसी के हवाले होगी। सत्ता के गलियारे से दोनों में से जो एक नाम छनकर सामने आ रहा है वह है सुब्रत साहू का। दिल्ली से लेकर ओड़िशा और रायपुर कनेक्शन की लोग दुहाई भी दे रहे हैं और सीएस की कुर्सी उनके लिए कंफर्म मानकर भी चल रहे हैं। देखते जाइए होता क्या है। दिल्ली कनेक्शन के अलावा भाग्य भी तो होना चाहिए। कहते हैं ना समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ भी नहीं मिलता।
वाह रे मंत्री,कार्यक्रम का ही नहीं चला पता
छत्तीसगढ़ में एक मंत्री ऐसे भी हैं जिनको कौन से कार्यक्रम में गए हैं और क्या बोलना है यही पता नहीं था। आपातकाल को लेकर पूरे देशभर में भाजपा के बैनर तले कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दी गई थी। मंत्री भी कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। कार्यक्रम के बाद जब पत्रकारों ने घेरा और सवाल दागने लगे तो उनकी तो बोलती ही बंद हो गई। पूरे कार्यक्रम के बाद जब लौटने लगे तब तक उनको यही नहीं पता था कि वे किस कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। बाजू में खड़े भाजपा के पदाधिकारी से जब बताया तब मीडिया के सामने मुंह खुल पाया। इसे क्या कहेंगे। यह तो अजब-गजब से कम नहीं है।
अटकलबाजी
वो कौन मंत्री हैं जिनको कार्यक्रम में शामिल होने और लौटने तक यही नहीं पता था कि वे किस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। राज्य सरकार की फजीहत कराने वाले मंत्री को लेकर अब अटकलें भी लगाई जा रही है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि बुजुर्ग हो गए हैं, भूलने भी लगे हैं। मंत्रिमंडल रिसफल में कहीं रिप्लेस तो नहीं कर दिए जाएंगे।
ट्रांसफर पोस्टिंग का दौर शुरू हो गया है। एक मंत्री के बंगले में देर रात तक अधिकारी कर्मचारियों के नामों की सूची बनाने का काम चल रहा है। सूची बनाने वालों ने अपनी दुकान भी सजा लिया है।

प्रधान संपादक