Explore

Search

December 13, 2024 7:26 am

IAS Coaching
लेटेस्ट न्यूज़

आज से पितृपक्ष प्रारंभ ,श्राद्ध मे क्या करें और क्या न करें?

 ┈┉┅❀༺꧁ Զเधॆ   Զเधॆ ꧂༻❀┅┉┈

आज तिथि ५१२६ /०६-०१-(१५-०१)/०४ युगाब्द ५१२६ / भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा-प्रतिपदा, बुधवार “पितृपक्ष प्रारंभ” शुभ व मंगलमय हो….
●▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬●

अंको में आज की तिथि

♡  ∩_∩
(„• ֊ •„)♡
┏━∪∪━━━━┓
♡🔆 5126/06/01/15-01/04♡
┗━━━━━━━┛

युगाब्द (कलियुग) – 5126
भाद्रपद  –  छटवां माह (06)
शुक्ल पक्ष –  पहला पक्ष (01)
तिथि –  पूर्णिमा-प्रतिपदा ( 15-01 वीं/ली )
वार/दिन- बुधवार ( 04 था वार/दिन )

✶⊶⊶⊷❍★ ❀ ★❍⊶⊷⊷✶

༺꧁ 5️⃣1️⃣2️⃣6️⃣ 🌞 0️⃣6️⃣🌝 0️⃣1️⃣ 🌝 (1️⃣5️⃣-0️⃣1️⃣) 🌞 0️⃣4️⃣ ꧂༻
🚩
┈┉┅❀༺꧁ Զเधॆ   Զเधॆ꧂༻❀┅┉┈

*नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।*
*स्वयम्भुवे  नमस्यामि   ब्रह्मणे  योगचक्षुषे।।*
*सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।*
*नमस्यामि  तथा  सोमं  पितरं  जगतामहम्।।*

✍️ भारतीय संस्कृति में पितरों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है । व्यक्ति के मरने के बाद हम उन्हें पितर देवता की पदवी दे देते हैं ।
✍️ आश्विन मास कृष्ण पक्ष के 15 दिनों (पितृ पक्ष) में हम अपने पितरों/पुरखों की याद में, जलांजलि, तर्पण, पिण्डदान, अन्न दान, वस्त्रदान, धनदान आदि करते हैं ।
✍️ किसी भी शुभ कार्य मे देवताओं के बाद पितरों को निमंत्रण दिया जाता है ।
✍️ पितृ पक्ष को श्राद्ध पर्व (त्यौहार) भी कहते हैं क्योंकि इन दिनों हमारे पितर/पूर्वज भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारे साथ होते हैं ।
✍️ कालान्तर में इन सबसे अच्छे दिनों को सबसे खराब दिन बताकर हमको काफी भ्रमित किया गया, परन्तु अब हम भारतीय सजग हो रहे हैं ।

*आज तिथि ५१२६ /०६-०१-(१५-०१)/०४ युगाब्द ५१२६ / भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा-प्रतिपदा, बुधवार “पितृपक्ष प्रारंभ” की पावन मंगल बेला में, अपने पितरों को समुचित सम्मान देने से स्वयं को संकल्पित एवम आपको भी प्रेरित करते हुए, सबको”राम-राम”।*

श्राद्ध में ‘क्या करें’ तथा ‘क्या न करें’??

पितरों के कार्य में बहुत सावधानी रखनी चाहिए, अत: श्राद्ध में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

▪️वर्ष में दो बार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ; जिस तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि पर वार्षिक श्राद्ध करना चाहिए। पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आए, उस तिथि पर मुख्यरूप से पार्वणश्राद्ध करने का विधान है।

▪️मनु ने श्राद्ध में तीन चीजों को अत्यन्त पवित्र कहा है-

प्रथम – कुतप मुहूर्त ( मध्याह्नोत्तर  कुल 24 मिनट का समय)-ब्रह्माजी ने पितरों को अपराह्नकाल दिया है ; असमय में दिया गया अन्न पितरों तक नहीं पहुंचता है , सायंकाल में दिया हुआ कव्य राक्षसों का भाग हो जाता है।
द्वितीय – तिल, श्राद्ध के स्थान अर्थात् श्राद्ध भूमि  पर तिल बिखेर देने से वह स्थान शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है।
तृतीय – दौहित्र (लड़की का पुत्र)।

▪️पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र न हो तो पत्नी इत्यादि अन्य सम्बन्धी कर सकती हैं / करवा सकते हैं ।

▪️श्राद्ध में पवित्रता का अत्यधिक महत्व है। पितृकर्म में वाक्य एवं कार्य की शुद्धता अति-आवश्यक है तथा इसे बहुत सावधानी से करना चाहिए।

▪️श्राद्धकर्ता को क्रोध, कलह एवं शीघ्रता  नही करनी चाहिए।

▪️श्राद्धकर्म करने वाले को पितृपक्ष में पूरे पन्द्रह दिन क्षौरकार्य (दाढ़ी-मूंछ बनाना, नाखून काटना) नहीं करना चाहिए एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

▪️श्राद्ध में सात्विक अन्नों – फलों का प्रयोग करने से पितरों को सबसे अधिक तृप्ति मिलती है। काला उड़द, तिल, जौ, सांवा चावल, गेहूँ, दूध, दूध के बने सभी पदार्थ, मधु, चीनी, कपूर, बेल, आंवला, अंगूर, कटहल, अनार, अखरोट, कसेरु, नारियल, खजूर, नारंगी, बेर, सुपारी, अदरक, जामुन, परवल, गुड़, मखाना, नींबू आदि पदार्थ उत्तम माने जाते हैं।

▪️कोदो, चना, मसूर, कुलथी, सत्तू, काला जीरा, कचनार, कैथ, खीरा, लौकी, पेठा, सरसो, काला नमक एवं कोई भी बासी, गला-सड़ा, कच्चा तथा अपवित्र फल एवं अन्न , श्राद्ध में प्रयोग नहीं करना चाहिए।

▪️श्राद्ध-कर्म में इन पुष्पों का प्रयोग नहीं करना चाहिए – कदम्ब, केवड़ा, बेलपत्र, कनेर, मौलसिरी, लाल एवं काले रंग के पुष्प तथा तेज गंध वाले पुष्प ; इन पुष्पों को देखकर पितरगण निराश होकर लौट जाते हैं।

▪️श्राद्ध में अधिक ब्राह्मणों को निमन्त्रण नहीं देना चाहिए (क्षमता है तो अवश्य निमंत्रित करें ) । पितृकार्य मे एक / तीन / पांच ब्राह्मण पर्याप्त होते हैं ;  अधिक ब्राह्मणों को निमन्त्रण देकर यदि उनके आदर-सत्कार में कोई कमी रह जाए तो वह अकल्याणकारी हो सकता है।

▪️श्राद्ध के लिए उत्तम ब्राह्मण को निमन्त्रित करना चाहिए जो योगी, वैष्णव, वेद-पुराण का ज्ञाता, विद्या, शील एवं अन्यून तीन पीढ़ी से ब्राह्मणकर्म करने वाला तथा शान्त स्वभाव का हो ;  श्राद्ध में केवल अपने मित्रों एवं सगोत्र वालों को खिलाकर ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए।

▪️अंगहीन, रोगी, कोढ़ी, धूर्त, चोर, नास्तिक, खसूची ज्योतिषी (अर्थात् नाम मात्र का ज्योतिषी ), मूर्ख, नौकर, काना, लंगड़ा, जुआरी, अंधा, शव संस्कार करने/कराने वाले ब्राह्मण को श्राद्ध-भोजन के लिए नहीं बुलाना चाहिए।

▪️श्राद्ध में निमन्त्रित ब्राह्मणों को आदर से बैठाकर पाद-प्रक्षालन (पैर धोना) करना चाहिए।

▪️श्राद्धकर्ता हाथ मे पवित्री (कुशा से बनाई गई अंगूठी) धारण किए रहे।

▪️ब्राह्मण-भोजन से श्राद्ध की सम्पन्नता-
ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह पितरों को प्राप्त हो जाता है ; मृत व्यक्तियों की तिथियों पर कम-से-कम केवल ब्राह्मण-भोजन कराने की परम्परा है। किसी कारणवश यदि ब्राह्मण-भोजन न करा सकें , तो मन में संकल्प करके केवल सूखे अन्न, घी, चीनी, नमक आदि वस्तुओं को श्राद्ध-भोजन के निमित्त किसी ब्राह्मण को दे दें। यदि इतना भी न कर सकें तो कम-से-कम दो ग्रास निकालकर गाय को श्राद्ध के निमित्त खिला देना चाहिए।

▪️श्राद्ध में हविष्यान्न के दान से एक मास तक एवं खीर के दान से एक वर्ष तक पितरों की तृप्ति बनी रहती है।

▪️यदि कुछ भी न बन सके तो केवल घास ले आकर पितरों की तृप्ति के निमित्त  गौओं को अर्पित करे अथवा जल एवं तिल से पितरों का तर्पण करें।

▪️यदि पत्नी रजस्वला हो , तो ब्राह्मण को केवल दक्षिणा देकर श्राद्ध-कर्म करे।

▪️तुलसी से पिण्डार्चन करने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं।

▪️भोजन करते समय ब्राह्मणों से ‘भोजन कैसा बना है?’ यह नहीं पूछना चाहिए; इससे पितर अप्रसन्न होकर चले जाते हैं , अर्थात् भोजन की प्रशंसा नही करनी / कराने चाहिए ।

▪️श्राद्ध मे भोजन करने एवं कराने वाले को मौन रहना चाहिए। यदि कोई ब्राह्मण उस समय हंसता अथवा बात करता है तो वह हविष्य राक्षस का भाग हो जाता है।

▪️श्राद्ध-कर्म में ताम्रपात्र का अधिक महत्व है , परन्तु लोहे के पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। केवल रसोई में फल, सब्जी काटने के लिए उनका प्रयोग कर सकते हैं।

▪️श्राद्ध में भोजन कराने के लिए चांदी, तांबे और कांसे के पात्र उत्तम माने जाते हैं  ; इन पात्रों के अभाव में पत्तलों में भोजन कराना चाहिए किन्तु केले के पत्ते पर श्राद्धभोजन नहीं कराना चाहिए।

▪️श्राद्ध की रात्रि में यजमान एवं भोजन कर्ता ब्राह्मण , दोनों को ही ब्रह्मचारी रहना चाहिए।

पितरों से क्या मांगना चाहिए?

महर्षि वेदव्यास ने ‘पितरों से क्या-क्या मांगना चाहिए’ का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। श्राद्ध के अंत में पितररूप ब्राह्मणों से यह आशीर्वाद मांगना चाहिए-

दातारो नोऽभिवर्धन्तां वेदा: सन्ततिरेव च।
श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं च नोऽस्त्विति।। (अग्निपुराण)

अर्थात्-‘पितरगण आप ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें कि हमारे कुल में दान देने वाले दाताओं की वृद्धि हो, नित्य वेद और पुराण का स्वाध्याय करने वालों की वृद्धि हो, हमारी संतान-परम्परा लगातार बढ़ती रहे, सत्कर्म करने में हमारी श्रद्धा कम न हो एवं हमारे पास दान देने के लिए बहुत-सा धन-वैभव हो।
🖊️
*आज से पितृपक्ष प्रारंभ है।*

ललित अग्रवाल पी एन् बी विलासपुर

CBN 36
Author: CBN 36

Leave a Comment

Read More

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
best business ideas in Hyderabad