बिलासपुर। हाई कोर्ट ने 35 साल पुराने हसदेव नहर करोड़ों रुपए के स्लूज गेट और शटर खरीदी घोटाले के मामले में 4 अधिकारियों समेत फर्म के मालिक को बड़ी राहत दी है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने सभी दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए आईपीसी की धारा 420 और 120-बी के तहत मिली चार साल की सजा को रद्द कर दिया है। इसके अलावा निचली अदालत द्वारा आरोपियों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोपियों को बरी करने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील भी खारिज कर दी है। 1988 से 1990 के बीच हसदेव नहर संभाग क्रमांक-1, रामपुर, कोरबा में स्लूज गेट और शटर की खरीदी में गड़बड़ी की शिकायत की गई थी। आरोप था कि एसके. स्टील एंड मैकेनिकल इंडस्ट्रीज से खरीदे गए स्लूज गेट और शटर आईएसआई मानकों के अनुरूप नहीं थे, ये गुणवत्ताहीन पाए गए थे। इस आपराधिक षड्यंत्र के चलते सरकार को करीब 24 लाख रुपए का नुकसान हुआ था। जांच में पाया गया था कि अधिकारियों ने सप्लायर के साथ मिलकर अपने पद का दुरुपयोग किया।
मामले की सुनवाई के बाद कोरबा के विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाच निवारण अधिनियम ने 22 फरवरी 2018 को एसके. स्टील मैकेनिकल इंडस्ट्रीज, दुर्ग के मालिक सुरेश कुमार चौहान, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी पीके. श्रीवास्तव, टीजे. था और आनंद कुमार श्रीवास्तव (मृत) को आईपीसी की धारा 4 और 120-B के तहत दोषी ठहराया था। सभी को 4 साल का कठोर कारावास और 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत पहले ही बरी कर दिया था।
हाई कोर्ट में अपीलकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि उनके मुवक्किलों की ओर से धोखाधड़ी या आपराधिक साजिश का क सीधा प्रमाण नहीं है। हाईकोर्ट ने सभी सबूतों की समीक्षा के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ मामला साबित क में नाकाम रहा है। हाई कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोि को आईपीसी की धारा 420 और 120 बी के तहत बरी कर दिया।

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