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October 16, 2025 5:27 pm

पिता सप्ताह में दो बार कर सकेंगे कॉल और वीकेंड पर बेटे से मिल सकेंगे

बिलासपुर। हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट जब बच्चे को माता-पिता के साथ एक घर का सुख न दे सके तो उसे माता-पिता के दो सुखी घरों का अधिकार मिलना चाहिए। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने पिता की अपील मंजूर करते हुए कहा कि माता-पिता का स्नेह मिलना बच्चे का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने पिता को सप्ताह में दो बार वीडियो कॉल और हर शनिवार-रविवार को बेटे से फिजिकल मुलाकात की अनुमति दी है।

पिता ने बेटे की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट में आवेदन दिया था। फैमिली कोर्ट ने 5 अगस्त 2025 को दिए गए अंतरिम आदेश में उन्हें महीने में सिर्फ एक बार मां के घर जाकर बेटे से मिलने की इजाजत दी थी। साथ ही महीने में एक बार मोबाइल से बातचीत या वीडियो कॉल की अनुमति भी दी गई थी। इस आदेश को पिता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश अस्पष्ट और अव्यावहारिक है, जिससे बेटे से उनका रिश्ता टूटने की कगार पर है। माता-पिता का प्यार पाना बच्चे का अधिकार है।

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की बेंच ने बच्चे के सर्वोत्तम हित के लिए फैमिली कोर्ट के आदेश में संशोधन जरूरी है। ललित कुमार जटवार विरुद्ध उर्मिला जटवार केस का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोर्ट बच्चे को दो माता-पिता वाला एक सुखी घर नहीं दे सकता, तो उसे माता-पिता के साथ दो सुखी घरों का लाभ मिलना चाहिए। बच्चे के पालन-पोषण में माता-पिता की उपस्थिति सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया था।

हाई कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के युग में दोनों के पास सुविधा होने पर वीडियो कॉलिंग संपर्क का बेहतर विकल्प है। जिस माता-पिता को बच्चे की कस्टडी नहीं मिली है, उसे अपने बच्चे से जितनी बार संभव हो, बात करने में सक्षम होना चाहिए। यह संवाद बच्चे और कस्टडी से वंचित माता-पिता के बीच संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।।पिता और दादा-दादी हफ्ते में दो बार 5-10 मिनट बच्चे से वीडियो कॉल कर सकेंगे।पिता बच्चे के लिए स्मार्टफोन खरीदकर मां को सौंपेंगे ताकि आसानी से कॉल हो सके। हर शनिवार और रविवार सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक पिता व दादा-दादी बच्चे से मिल सकेंगे। इसके लिए पिता की पसंद का रेस्टोरेंट या महिला एवं बाल विकास विभाग का दफ्तर होगा। पिता को पीटीएम और स्कूल के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का अधिकार रहेगा।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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