सावधान हो जाओ, घोटालेबाजों
राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण नियमों में जरुरी संशोधन कर दिया है। अब छोटे टुकड़ों में जमीनों का ना तो अधिग्रहण होगा और ना ही भूअर्जन की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी। आपको याद होगा। रायपुर से विशाखापट्नम सड़क निर्माण में ऐसे ही अंदाज में जमकर गड़बड़ी की गई। भारत माला परियोजना का नाम तो आपको याद होगा ही। अफसर से लेकर राजस्व के नुमाइंदे सब ने अपने-अपने तरीके से हाथ धोए और सरकारी खजाने को जमकर चूना लगाया। बड़ी जमीन खरीद कर छोटे-छोटे टुकड़ो में बांट दिया और करोड़ों का वारा-न्यारा कर दिया। फायदे में रहे राजस्व महकमा और भूमाफिया। सबने अपनी-अपनी बना ली। नुकसान में रहे असली भूमि स्वामी। गोरखधंधे पर अब रोक लगेगी। भू माफिया की चालाकी अब चलने वाली नहीं है।
आम आदमी के हाथ से फिसल रहा रेत
भाजपा सरकार के दौर में शराब का सरकारीकरण कर दिया गया था। सरकार ने शराब बेचने का फैसला लिया। सरकारी फैसले से शराब के ठेके में मालामाल हो रहे ठेकेदार एक झटके में सड़क पर आ गए। सड़क पर आने का मतलब कंगाल नहीं, कारोबार बंद हो गया। कारोबार बंद हुआ तो दूसरा आप्शन सामने आ गया। शराब से रेत के खेल में उतर गए। रेत का धंधा खूब फला और फूला। रेत से तेल निकालने में माहिर में ठेकेदारों ने नदियों की दुर्दशा तो की ही, रेत की ब्रांडिंग ऐसे कि आम आदमी के हाथ से यह फिसल गया। आम आदमी से रेत को फिसलते सरकार भी अब सचेत और सतर्क हो गई है। तभी तो आनलाइन ठेके की बात सामने आ रही है। आनलाइन ठेके होंगे। रेत की कीमत तय होगी। आम आदमी की पहुंच में रहेगा। यह तो ठीक है, खेल करने वाले तो तब भी खेल कर ही लेते हैं। कांग्रेस सरकार में भी आनलाइन ठेके हुए थे। छत्तीसगढ़ियों की बात हुई थी। ठेके जब पूरे हुए थे तो छत्तीसगढ़िया आउट और शराबलाबी इन। कहीं इसका भी तोड़ लाबी निकाल ना ले। एक बार फिर आम आदमी के हाथ से रेत फिसल गया तब तो गजब ही हो जाएगा।
अफसरों को छोड़ा भगवान भरोसे
पीएचक्यू ने एक आदेश जारी किया। दो दर्जन से ज्यादा डीएसपी को बस्तर में पोस्टिंग दे दी। पोस्टिंग आर्डर में साफ लिखा था। बस एक महीने के लिए। डीएसपी खुशी-खुशी बस्तर की ओर रवाना हो गए। जहां आमद देनी थी,दिए और सीधे ड्यूटी ज्वाइन भी कर लिए। देखते ही देखते एक महीना गुजर गया। कैलेंडर में महीना भी बदल गया, पर यह क्या पीएचक्यू का कैलेंडर अब भी वहीं पुराने पन्नों पर ही अटका हुआ है। जिस महीने आर्डर जारी हुआ था पुलिस महकमे के आला अफसरों का कैलेंडर अब भी वहीं अटका हुआ है। अफसर हैं कि कैलेंडर में एक-एक दिन गिन रहे हैं। ड्यूटी जाते वक्त इस भरोसे में जाते हैं कि चलो आज दफ्तर में आर्डर आ ही जाएगा। पर क्या, सुबह से शाम हो जा रहा है, आर्डर है कि पीएचक्यू से निकल ही नहीं रहा है। अफसर सोच रहे हैं कि आर्डर निकालने के बाद अफसर कहीं भूल तो नहीं गए। अगर भूल भी गए हैं तो याद दिलाने की हिम्मत भला कौन और कैसे जुटाएगा। सोशल मीडिया का जमाना है। खबरें वायरल तो होंगी ही। अफसर इस उम्मीद में है कि शायद सोशल मीडिया ही भला कर दे।
बिजली कंपनी को ठेकेदारों का टोटा
एक दौर था जब बिजली कंपनी में निकलने वाले ठेके को हासिल करने के लिए ठेकेदार क्या-क्या नहीं कर जाते थे। कारटेल बनाने से लेकर सब-कुछ। तब उस दौर में क्रेज था और काम भी उसी अंदाज में करते थे। काम के एवज में कंपनी दाम भी देती थी। दाम देने का मतलब समय पर बिल जारी कर देना और पूरा काम फेयर रखना। समय के साथ काम में भी तब्दीली आने लगी है। अब तो बात-बात पर अड़ंगेबाजी और बिल पेंडिंग रखने का खेल अफसर से लेकर टेबल में बैठे बाबू करने लगे हैं। कंपनी के अधिकारी और मुलाजिम अपने ही खेल में फंसते नजर आ रहे हैं। तभी तो ठेकेदार नहीं मिल रहे हैं। ठेकेदारों का कंपनी में टोटा हो गया। काम के बदले दाम का स्लोगन अब नहीं रहा। काम के बदले फाइल लटकाने का खेल चल रहा है। तभी तो मेंटनेंस सहित जरुरी काम कराने के लिए बिजली कंपनी को ठेकेदार नहीं मिल रहे हैं। ये भी तय है कि अब किसी ना किसी अफसर व मुलाजिम के ऊपर यह ठिकरा फूटेगा ही।
अटकलबाजी
भाजपा पिछड़ा वर्ग के बैनर तले बिलासपुर में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन का आयोजन किया गया था। भाजपा के ओबीसी चेहरों ने शिरकत किया। पता करिए किसने अपने आपको ओबीसी हितैषी बताते हुए अपनों के बीच जमकर ब्रांडिंग की।
जिले के एक नेताजी ने अपनी ब्रांडिंग की गरज से कलेक्टर को सीधे सड़क पर बुला लिए। आज ऐसा क्या हुआ कि ब्रांडिंगधारी नेता की गड्ढों में फोटो वाले पोस्टर लग गया।

प्रधान संपादक