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October 17, 2025 5:04 am

संदेह के आधार पर नहीं दी जा सकती सजा: हाई कोर्ट

बिलासपुर: 165 किलो गांजा बरामद होने के मामले में एनडीपीएस एक्ट के आरोपित को हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 26 जून को सुनाए अपने फैसले में विशेष अदालत द्वारा 2011 में सुनाई गई बरी करने की सजा को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि जब्ती की प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं और अधिकांश गवाह अपने बयानों से मुकर चुके हैं, ऐसे में आरोपित को दोषी ठहराना उचित नहीं। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश संजय एस अग्रवाल और न्यायमूर्ति राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने सुनाया।
22 मार्च 2010 को बलौदा थाना प्रभारी सब-इंस्पेक्टर डीएल मिश्रा को सूचना मिली थी कि संदेही विष्णु कुमार सोनी ने अपने घर में बड़ी मात्रा में गांजा छिपाकर रखा है। छापेमारी में उसके घर से 8 बोरियों में भरा 165 किलो गांजा, बिक्री की नकदी ₹15,240 और तौलने की मशीन जब्त की गई थी। एफआइआर के बाद मामला एनडीपीएस एक्ट की धारा 20(बी)(2)(सी) के तहत दर्ज हुआ और कोर्ट में ट्रायल चला।

विशेष न्यायाधीश ने 5 मार्च 2011 को सबूतों के अभाव में आरोपित को बरी कर दिया था। कोर्ट ने माना कि, गवाहों ने पुलिस की कहानी का समर्थन नहीं किया। पंचनामा और तौल प्रक्रिया में गड़बड़ियां थीं। जब्त सैंपलों पर चिन्हों का स्पष्ट उल्लेख नहीं था। मलकाना रजिस्टर में भी सील और नमूनों का विवरण अस्पष्ट था। गवाहों ने जब्ती, तौल और परीक्षण की प्रक्रियाओं को नकार दिया।
सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की गलत व्याख्या कर आरोपित को दोषमुक्त किया। छापे की कार्रवाई, गवाहों के बयान और गांजे की बरामदगी में सब कुछ विधि अनुसार हुआ। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि, जब ट्रायल कोर्ट किसी आरोपित को संदेह के आधार पर बरी करता है, तो अपील में हस्तक्षेप तभी संभव है जब फैसला पूरी तरह गलत हो। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के पलटने, नमूनों की सीलिंग में गड़बड़ी और मलकाना रजिस्टर की त्रुटियों से पूरा केस कमजोर हुआ है। आरोपित के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं हैं

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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