बिलासपुर। सड़क चौड़ीकरण के तहत की जा रही नगर निगम की तोड़फोड़ कार्रवाई को लेकर हाई कोर्ट ने नगर निगम बिलासपुर और संबंधित अधिकारियों को अहम निर्देश जारी किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी संपत्ति को तोड़ने से पूर्व उसका विधिवत सीमांकन किया जाए और यदि निर्माण व सड़क विस्तार के लिए संपत्ति की आवश्यकता है, तो वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप उचित मुआवजा याचिकाकर्ताओं को दिया जाए।

याचिकाकर्ता रौनक सलूजा, रीना सलूजा और वंशिका सलूजा ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। याचिका में कहा कि नगर निगम बिलासपुर ने 2 जून 2025 को जारी आदेश में उनके तीन मंजिला भवन और दुकानों को हटाने का निर्देश दिया है। जबकि वे उस भवन के स्वामी और वैध कब्जेदार हैं तथा निगम को नियमित रूप से संपत्ति कर और वाणिज्यिक कर का भुगतान कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि नगर निगम “प्रमुख डोमेन” के सिद्धांत के तहत सार्वजनिक हित में निजी भूमि का अधिग्रहण कर सकता है, किंतु उसके लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है, जिसमें सीमांकन और उचित मुआवजे का प्रावधान शामिल है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं को तोड़फोड़ से पूर्व न तो पर्याप्त नोटिस दिया गया और न ही मुआवजा।
जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद नगर निगम बिलासपुर के आयुक्त एवं अन्य प्राधिकारियों को निर्देशित किया कि, यदि याचिकाकर्ताओं की संपत्ति पर सड़क निर्माण किया जाना है, तो उनकी उपस्थिति में पहले सीमांकन करें। सीमांकन के बाद कानून के अनुसार याचिकाकर्ताओं को मुआवजा दिया जाए। बिना मुआवजा दिए किसी भी निर्माण या ध्वस्तीकरण की कार्रवाई अमान्य होगी। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनधिकृत रूप से किसी की संपत्ति को क्षति पहुंचाना संविधान और विधि के सिद्धांतों के विपरीत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधि सम्मत प्रक्रिया के तहत भूमि अधिग्रहण और मुआवजा सुनिश्चित किए बिना सड़क चौड़ीकरण जैसी गतिविधियां न्यायोचित नहीं मानी जा सकतीं। इस निर्देश के साथ ही कोर्ट ने याचिका का निराकरण कर दिया।

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