बिलासपुर। हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में एक आरोपी की अपील को खारिज कर दी है। दो अन्य को साजिश में शामिल होने पर सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए टिप्पणी की है कि जब आरोपी के मुख्य अपराध में शामिल होने के पक्के सबूत हों, तो कुछ आरोपियों को मुख्य अपराध से बरी करना और सबूतों को गलत तरीके से समझने पर सिर्फ साजिश के लिए दोषी ठहराने को सही नहीं ठहराया है। बेमेतरा जिले के बरेला निवासी अपीलकर्ता संतकुमार बांधे को आईपीसी की धारा 302,34 में आजीवन कारावास तथा सह अभियुक्त रेखचंद उर्फ जितेन्द्र देशलहरे व प्रेमचंद देशलहरे को धारा 120 बी में 10 वर्ष कठोर कारावास की सजा 6 अप्रैल 2023 को सुनाई गई। सजा के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील पेश की थी।
अपीलकर्ताओं पर आरोप लगाया गया था कि 21 जुलाई 2022 को, बोरियावंध बेरला (कारोकन्या मंदिर के पीछे), पुलिस स्टेशन बेरला, जिला-बेमेतरा में, उन्होंने फरार आरोपी पारस उर्फ टहकू रात्रे के साथ मिलकर धर्मेंद्र देशलहरे की हत्या की साजिश रची और आपराधिक साजिश के तहत अपने आम इरादे को आगे बढ़ाते हुए, मृतक की गर्दन, सिर और जबड़े पर ब्लेड, पत्थर और एक चौथाई शराब की बोतल से जानलेवा चोटें पहुंचाकर उसकी हत्या कर दी। बेमेतरा सत्र न्यायालय ने आरोपियों को सजा सुनाई थी।
कोर्ट ने निर्णय पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपील करने वाले रेखचंद उर्फ जितेंद्र देशलहरे और प्रेमचंद देशलहरे के शामिल होने की ओर इशारा करने वाले कई जरूरी हालात मान लिए गए थे, फिर भी ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोप यानी आईपीसी की धारा 302/34 पर कोई मिलता-जुलता नतीजा दर्ज करने से परहेज किया, बिना इस तरह के अंतर के लिए साफ कारण बताए। इससे सबूतों की पूरी जांच में कुछ हद तक अंतर आया है। यह कोर्ट संबंधित ट्रायल जज पर कोई गलत टिप्पणी नहीं करना चाहता है, हालांकि, कई आपस में जुड़े आरोपों वाले मामलों में, खासकर वे जो हालात के सबूतों पर आधारित हों, यह जरूरी है कि सभी स्थापित हालात की सही तरीके से जांच की जाए और तर्क हमेशा एक जैसे रहें। इसलिए, ट्रायल जज को सलाह दी जाती है कि वे भविष्य में ऐसे मामलों से निपटते समय ज़्यादा सावधानी बरतें
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