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September 9, 2025 1:43 am

R.O. N0.17

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कानाफूसी

ये क्या हो गया, जो हुआ वह तो……?

मंत्रिमंडल का बहुप्रतीक्षित विस्तार सम्पन्न हो गया है। सीएम विष्णुदेव साय तीन मंत्रियों को शपथ दिलाने के बाद विदेश प्रवास पर रवाना हो गए हैं। जब से मंत्रियों ने शपथ ली है,बस एक ही चर्चा हो रही है। सीनियर को क्यों साइड लाइन किया गया। तर्क भी दे रहे हैं और इन सबके बीच कुतर्क भी हो रहा है। सीनियर और जूनियर के खेल में सबसे ज्यादा मजे कहें या फिर सियासी फायदा, नवागढ़ के विधायक जो मंत्री के पद पर काबिज हैं और एकदम चुप हैं, वे ही हैं। ना तो किसी सीनियर लीडर का ध्यान जा रहा है और ना ही कोई सीनियर जूनियर के इस खेल के बीच फूड मिनिस्टर को बहस का मुद्दा बना रहे हैं। पीएम की घोषणा के अनुरुप रिटायरमेंट के करीब हैं। 70 पार हैं। एक सवाल तो उठता ही है ना, फिर वे क्यों। वे तो और भी सीनियर। बहरहाल सीनियर जूनियर मुद्दे के बीच बिलासपुर जिले को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है। बड़े नेताओं से एलर्जी क्यों और किसे हो रहा है यह सब। चलिए पता करते हैं कि इस एलर्जी के पीछे का कारण क्या है और कौन-कौन हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। दुनिया गोल है साहब, आज नहीं तो कल पता चल ही जाएगा। वैसे तो सियासी गलियारे में कुछ नाम चर्चा में भी है। मसलन ये भी और वो भी। 

काले टिके की है जरुरत

बिलासपुर जिले को पता नहीं किसकी नजर लग गई है। छह साल पहले से लगी नजर अब भी वैसी ही है। हालात में ना तो बदलाव आया और ना ही जरुरी तब्दीली। वो भी क्या दिन थे,जब सीएम से लेकर स्पीकर और दिग्गज मंत्रियों का बिलासपुर को गढ़ माना जाता था। बिलासपुर का रूतबा अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर से छत्तीसगढ़ बनने की शुरुआती दिनों से बीते डेढ़ दशक तक कायम रहा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार क्या आई,बिलासपुर के तो भाग्य ही बदल गया। यह वही दौर है जब बिलासपुर की सियासी उपेक्षा शुरू हुई। एमएलए रहने के बाद ना  तो पूछपरख और ना ही कोई सम्मान। गुटीय राजनीति के चलते जिलेवासियों की अनदेखी कर दी गई। कहते हैं ना सब कुछ ऊपर वाला और नीचे वाले दोनों ही बराबरी से अपनी पैनी नजरों से देखते हैं। तभी तो दोनों ने मिलकर सजा भी दी। पर यह क्या,  जिस पर भरोसा किया वे लोग भी वैसे ही निकले। अब तो बेचारे वोटरों के पास तीसरा कोई आप्शन ही नहीं है। फिर वही अदला-बदली का खेल। पर यह कब तक। अब तो पब्लिक भी पूछने लगी है कि सियासत के इस खेल में हमारी अपनी उपेक्षा क्यों। हम कहां जाएं। अब तो लोग यही कहने लगे हैं कि जिले को किसी ना किसी की नजर जरुर लग गई है। अब तो काला टिका ही है जरुरत है। बिलासपुर को लगी नजर से बचाने और नजर लगाने वालों के साथ। दोनों को ही काला टिका लगाना जरुरी हो गया है। आगे-आगे देखते जाइए होता है क्या।

एसएसपी का शार्ट फिल्म और काम की बातें

इसे कहते हैं स्टार्टअप और वह भी गजब का नवाचार। रोड एक्सीडेंट ने सबको हिलाकर रख दिया है। आपने कभी सोचा है,इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह क्या है। नशा। नशे की हालत में वाहन चलाना चौतरफा नुकसान दायक साबित हो रहा है। नशेड़ी अपने जान का तो दुश्मन है ही, साथ ही राहगीरों के जान का बड़ा दुश्मन बनकर सड़क पर आता है। यह सब  हम देखते हैं और पढ़ते भी हैं। पर किसी ने इस दिशा में बड़ी पहल करने की नहीं सोची। खबर देखकर और पढ़कर अफसोस जता ली और हो गया। बिलासपुर जिले के एसएसपी व आईपीएस रजनेश सिंह की एक शार्ट फिल्म इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर धूम मचा रही है। इस वीडिया में वे नशे की हालत में वाहन ना चलाने अगाह करते दिखाई दे रहे हैं। वर्दीधारी एसएसपी युवा पीढ़ी की चिंता करते हुए नशे के खिलाफ जनजागरण अभियान चला रहे हैं। एसएसपी के इस नवाचार की तो सराहना करनी चाहिए। शार्ट फिल्म को सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रोत्साहित करने की भी जरुरत है।

मंत्री और स्कूटी,सादगी का पेश किया मिसाल

सोशल मीडिया में एक खबर काफी तेजी के साथ वायरल हो रहा है। मंत्री जी अकेले स्कूटी पर निकले। ना सुरक्षा और ना ही प्रोटोकाल।  तामझाम से दूर। सुबह से स्कूटी में सवार होकर घर से निकले और सीधे पहुंच गए शिव मंदिर। पूजा अर्चना की और वापस स्कूटी से घर। मंत्री की इस सादगी की चर्चा अब उसी अंदाज में सोशल मीडिया में होने लगी है। हम बात कर रहे हैं कि अंबिकापुर के विधायक व मंत्री राजेश अग्रवाल की। जी हां,अब तो उनकी सादगी और अल्लड़पन की चर्चा होने लगी है। हो भी क्यों ना। सादगी का मिसाल जो पेश कर रहे हैं। 

अटकलबाजी

मंत्री पद की शपथ और मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले विधायकों के नाम का ऐलान से पहले एक बार फिर अमर अग्रवाल के नाम की जोर शोर से चर्चा शुरू हुई थी। अमर की जगह नाम सामने आया राजेश अग्रवाल का। वैश्य समाज से एक प्रतिनिधित्व का सवाल था सो मिल गया। अमर का रास्ता कौन काट रहे हैं। जरा पता करिए कहीं अड़ोस पड़ोस के तो नहीं।  

विधानसभा अध्यक्ष डा रमन सिंह की पदवी बढ़ने वाली है। गर्वनर बनने की चर्चा शुरू हो गई है। जिले को बड़ा ओहदा तो नहीं मिल रहा है। पड़ोसियों को झटका लग गया तब क्या होगा।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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