बिलासपुर। हाई कोर्ट ने गर्भपात को मानसिक क्रूरता बताकर तलाक मांगने वाले पति की अपील को खारिज कर दिया है। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि जब पति ने कथित क्रूरता को माफ करते हुए पत्नी के साथ पुनः दांपत्य जीवन शुरू किया, तो अब वही आरोप तलाक का आधार नहीं हो सकते। कोर्ट ने यह भी पाया कि गर्भपात पति की जानकारी, सहमति और खर्च पर ही हुआ था।
रायपुर निवासी एक दंपती की शादी नवंबर 2005 में हिंदू रीति-रिवाज से हुई थी। कुछ वर्षों बाद पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर करते हुए आरोप लगाया कि पत्नी का व्यवहार शादी के कुछ ही दिनों बाद बदल गया था। वह संयुक्त परिवार में रहने से इंकार करती थी। पति का दावा था कि पत्नी ने उसकी सहमति के बिना गर्भपात करा लिया और दूसरी बार गर्भवती होने पर धमकी दी कि यदि पति ने परिवार को अलग नहीं किया तो फिर से गर्भपात करा लेगी। पति ने इसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता बताते हुए तलाक की मांग की थी।
पत्नी ने पति के सभी आरोपों से इंकार किया। उसने कहा कि पति शराब पीकर मारपीट करता था और जबरन दवा देकर दो बार उसका गर्भपात कराया। इलाज के लिए डाक्टर के पास भी नहीं ले गया। बीमार होने पर उसे मायके भेज देता था और जब वह वापस आती, तो उसे अपनाने से इंकार कर देता था। पत्नी ने बताया कि वर्ष 2015 में पति ने उसे मायके छोड़ दिया और तभी से वह वहीं रह रही है।
परिवार न्यायालय ने पति के आरोपों को प्रमाणित नहीं पाया और उसकी तलाक की अर्जी खारिज कर दी। पति ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद कहा, जब पति ने कथित क्रूरता को माफ कर पत्नी के साथ दोबारा रहना स्वीकार किया था, तो अब उन्हीं आरोपों को आधार बनाकर तलाक नहीं मांगा जा सकता। आरोपों के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किए गए। गर्भपात पति की सहमति और उसके खर्च पर हुआ था, जिसे बाद में वह क्रूरता का नाम नहीं दे सकता। इस आधार पर हाई कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है।



