बिलासपुर। हाई कोर्ट ने अवैध गिरफ्तारी और मानसिक उत्पीड़न के आरोप पर दायर याचिका को खारिज करते हुए दो टूक कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने समय पर जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया, तो पुलिस द्वारा हिरासत में लेना गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई प्रक्रिया के अनुरूप थी और इसमें किसी प्रकार की मनमानी नहीं हुई। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
कबीरधाम जिले के चार युवक हिमांशु वर्मा, रघुवीर वर्मा, कपूरचंद वर्मा और गौरव चंद्रसेन को 8 अप्रैल 2025 को आइपीएल सट्टेबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोप है कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें अनावश्यक रूप से 7 दिन जेल में रखा गया, जबकि अगले ही दिन 9 अप्रैल को उन्होंने जमानत शर्त पूरी कर दी थी। युवकों की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एक-एक लाख रुपए का हर्जाना मांगा गया। उनका कहना था कि जमानत मिलने के बाद भी उन्हें 15 अप्रैल तक जेल में रखा गया, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत जवाब में कहा गया कि, चारों युवकों को 8 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया और उसी दिन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कर जमानत की अनुमति दे दी गई। परंतु याचिकाकर्ता 8 अप्रैल को कोई जमानतदार नहीं ला सके। 9 अप्रैल को जब उन्होंने ऋण पुस्तिका और शपथपत्र प्रस्तुत किया, तो तहसीलदार बोडला से दस्तावेज की वैधता की पुष्टि के लिए समय मांगा गया। वैरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी होते ही 15 अप्रैल को उन्हें रिहा कर दिया गया।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को हिरासत में रखने का कारण उनकी ही ओर से जमानत की औपचारिकताओं को समय पर पूरा न कर पाना था। इसलिए 8 से 15 अप्रैल तक की हिरासत को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि, जब स्वयं याचिकाकर्ता समय पर जमानत बांड प्रस्तुत करने में असफल रहे, तो उनके खिलाफ की गई कार्रवाई को अवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।

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