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October 23, 2025 10:44 pm

खस्ताहाल सिटी बसों पर हाई कोर्ट सख्त, परिवहन सचिव से मांगा जवाब

बिना फिटनेस और बीमा के चल रहीं पुरानी बसों पर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई, अगली सुनवाई 10 जून को

बिलासपुर. बिलासपुर शहर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में 10 वर्ष से अधिक पुरानी खस्ताहाल सिटी बसों के संचालन को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए गंभीर रुख अपनाया है। एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए राज्य परिवहन सचिव से शपथपत्र पर लिखित जवाब मांगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 10 जून 2025 को निर्धारित की गई है।

गत सप्ताह एक स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बिलासपुर शहर में 16 निर्धारित रूटों पर चलने वाली सिटी बसों में से मात्र 9 बसें ही संचालन में हैं, जबकि कुल 40 बसें संचालित होनी थीं। शेष बसें ठेका कंपनी द्वारा घाटे का हवाला देकर बंद कर दी गई हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि जो बसें वर्तमान में सड़कों पर दौड़ रही हैं, उनके पास न तो बीमा है, न ही वैध फिटनेस प्रमाण पत्र। इतना ही नहीं, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन बसों का प्रदूषण जांच वर्षों से नहीं हुआ और वे खुलेआम वातावरण को दूषित कर रही हैं। इसके अलावा, 2023 से इन वाहनों का रोड टैक्स भी लंबित है।

सरकारी वादे और अधूरी सुविधा-

उल्लेखनीय है कि 22 दिसंबर 2023 को रायपुर की कंपनी सनमेगा एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड को बिलासपुर में सिटी बसों के संचालन का ठेका दिया गया था। इस अनुबंध के तहत कंपनी ने 1000 से अधिक वाहनों का टैक्स जमा किया और सरकार ने कंपनी को 1.70 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया था। उस समय दावा किया गया था कि शहरवासियों को हर 15 मिनट में सिटी बस सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। हालांकि, स्थिति इसके विपरीत रही। वर्तमान में बसों की संख्या कम होती गई और अब कई रूटों पर यात्रियों को 2 से 3 घंटे तक बस का इंतजार करना पड़ता है। मजबूरी में नागरिकों को आटो, निजी टैक्सी और यात्री बसों का सहारा लेना पड़ रहा है।
चीफ जस्टिस और न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय की युगलपीठ ने समाचार का संज्ञान लेते हुए राज्य परिवहन सचिव को निर्देश दिया है कि वे इस मामले में शपथपत्र के माध्यम से अपना पक्ष रखें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि मामले में गंभीरता को देखते हुए अगली सुनवाई में स्थिति स्पष्ट की जाए।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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