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July 1, 2025 8:10 am

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बहतराई मे सरकारी जमीन को राजस्व रिकार्ड मे निजी करवा और खसरा नंबर बदलवाकर अवैध मकानों का सरोज विहार बनाने का बड़ा खेला,राजस्व अधिकारियो के लिए बड़ी चुनौती,सरकारी जमीन बचाने और कब्ज़ा हटाने की,सीमांकन रिपोर्ट मे भी सरकारी जमीन पर कब्जा का उल्लेख

विलासपुर। तालाब और मुरुम खदान एवं चारागाह.की  जमीन मे  रिहायशी मकानों का अवैध  निर्माण कैसे हो सकता है मगर ऐसा शहर से लगे बहतराई मे हो चुका है।सरोज बिहार के नाम् से करीब 8 एकड़ भूमि मे मकानों का निर्माण करवा और उसे बेच कर अरविन्द वर्मा विलासपुर से बंगलौर मे जाकर बस गया है ।आश्चर्य तो इस बात का है कि यह सरोज विहार सरकारी जमीन पर बना है । इसकी पुरी कहानी यह बताता है कि राजस्व विभाग के अमले से मिलीभगत हो तो तालाब ,खदान ,चारागाह  की जमीन को सरकार को दे दो और उसके बदले उतनी ही सरकारी जमीन अपने नाम पर करवाकर उसे बिल्डर को बेच दो । बिल्डर भी इतना होशियार कि 70 से भी ज्यादा अवैध मकान बनाने की आड़ मे एक एकड़ से उपर सरकारी जमीन को चेंप लिया ।

पुरी कहानी की शुरुआत छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद शुरु होती है तब

गांव विलासपुर नगर निगम मे शामिल नही था । बहतराई मे एक तालाब और मुरुम खदान है जिसे त्रिवेणी बाई ने अपना निजी जमीन बताते हुए मुरुम खदान से करोड़ो रुपये का का मुरुम खुदाई करवा बेच डाला ।मुरुम खदान और तालाब की जमीन लगभग8 एकड़ जो  जनक  बाई के नाम पर थी उक्त जमीन को शासन को सौपते हुए उसके बदले दूसरे स्थान पर जमीन सुनियोजित ढंग से मांग की गई और राजस्व अमला ने बिल्डर अरविन्द वर्मा की निशानदेही पर उस स्थान के खसरा नंबर पर 8 एकड़ जमीन एलाट कर दी गई जहां पर बिल्डर ने सरोज विहार का निर्माण कराया है । (वीडियो मुरुम खदान)

इसमे एक चालाकी और की गई । सरकारी जमीन को राजस्व रिकार्ड मे अपनी माता जनक बाई के बजाय बहु  त्रिवेणी बाई के नाम पर चढ़वा लिया गया उसके बाद बिल्डर अरविन्द वर्मा ने उक्त जमीन को केंद्रीय एवं राज्य सहकारी गृह निर्माण समिति मर्यादित मोपका के नाम से खरीदा । इस समिति की अध्यक्ष अरविन्द वर्मा की पत्नी सरोज वर्मा थी जिसके नाम से सरोज विहार बनाया गया ।अरविन्द शर्मा अपनी पत्नी सरोज से स्वय को मुख्तियार घोषित करवा लिया और सरोज विहार मे निर्मित किये गये मकानों का विक्रय मुख्तियार के रूप मे अरविन्द वर्मा ही करते रहे। उसी सरोज विहार मे अरविंद वर्मा ने 34 डिसमिल जमीन मे आलिशान मकान बनाया जिसे शहर के एक पेट्रोल पम्प व्यापारी को साढ़े सात् करोड़ रुपये मे बेचा ।
जानें गड़बड़ी कहाँ हुई?

सरोज विहार का निर्माण2007 से पहले शुरु किया गया था। बहतराइ की जमीन मे मूल खसरा नंबर 257 मे 33 बटाकन् हो चुका है । वही तालाब का खसरा नंबर 296 तथा मुरुम खदान का खसरा नंबर 297 और 311 था ।खदान का रकबा 4 एकड़ था जिसे खसरा नंबर 259 और 217 तथा 257 मे मर्ज करवा दिया गया।इसी तरह करीब डेढ़ एकड़ घास जमीन को भी  त्रिवेणी बाई के नाम पर दर्ज करवा लिया।इस डेढ़ एकड़ जमीन को भी अरविन्द वर्मा ने अपनी पत्नी की अध्यक्षता वाली गृह निर्माण समिति के नाम पर खरीद लिया ।

*सरोज विहार मे एक ऐसा भी मकान ?*

सरोज विहार के आखिरी छोर मे मात्र 5 सौ वर्गफुट एरिया मे दो मंजिला मकान निर्मित है जो किसी त्रिलोचन साहु के नाम पर है इस मकान की खासियत यह है कि मकान 4 खसरा नंबरों मे दर्ज है ।लेकिन मकान जहाँ पर हैं वह दुसरा खसरा नम्बर् है। ये कैसे और किसके प्रयासों से सम्भव हो पाया इसकी भी निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए । अगर इस मकान के बारे मे जाँच होती है तो और भी कई मकानों के गड़बड़ झाले का राज खुल सकता है ।

*सीमांकन रिपोर्ट बता रहा सरोज विहार मे डेढ़ एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन है*

शासकीय जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की शिकायत पर एस डी एम विलासपुर के निर्देश पर तहसीलदार ने बहतराई मे सीमांकन करवाया जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक 1.65 एकड़ शासकीय जमीन मे से मात्र 40 डिसमिल जमीन खाली है ।वही 19 डिसमिल जमीन पर महिला एवं बाल विकास विभाग का भवन् बना है। शेष 1.06 डिसमिल जमीन सरोज विहार के अंदर है जिसमे कई मकान बन चुके है ,अहाता बना दिया गया है और उन मकानों की अभी भी खरीद फरोख्त हो रही है हालांकि सीमांकन रिपोर्ट के बाद लोग सरकारी जमीन पर बने मकानों का सौदा करने से बच रहे है ।

बहतराई मे शासकीय जमीन पर कब्ज़ा और अवैध मकानों का निर्माण जिला प्रशासन ,राजस्व विभाग के आला अधिकारियो के लिए चुनौती है ।बड़ा सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन सरकारी जमीन पर बने मकानों को ढहवाएगा ?हो सकता है कार्रवाई मे राजनैतिक दबाव भी आये लेकिन सरकारी जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराना राजस्व विभाग के अधिकारियो का दायित्व है । यही नही राज्य निर्माण के बाद सरकारी जमीन को निजी जमीन मे पलटी करवाने के दौरान जो जो भी पटवारी,आर आई,तहसीलदार, एस डी एम पदस्थ रहे हों उनकी भी भूमिका की जाँच होनी चाहिए ।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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