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(46वीं पुण्य तिथि पर विशेष आलेख)
वे कर्मठ थे,अपने दम पर पीछे से सतत आगे बढ़े, अपनी मेहनत ,लगन से वे पढ़ाई लिखाई करते हुए खेल तथा देश और समाज सेवा के लिए सतत आगे बढ़े,अपने कर्मो को गीता, भागवत,पुराण,तथा रामचरित मानस और कबीर से संजोकर वे सतत आगे बढ़े,और उन्हें सफलता भी मिली,, अपने पढ़ाई जीवन शासकीय बहुद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बिलासपुर से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास कर उच्च शिक्षा के लिए नागपुर में बी ए, एल एल बी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।उस समय मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़,की राजधानी सी पी बरार नागपुर था,जहां से छत्तीसगढ़ की राजनीति संचालित होती रही।1956में मध्यप्रदेश का गठन हुवा और लोगों के आग्रह,निवेदन पर अपनी शिक्षकीय कार्य को छोड़कर महंत जी को राजनीति में आना पड़ा,वे लगातार 5 विधान सभा जीतते गए,कभी उन्हें पराजय का मुख नहीं देखना पड़ा। विधानसभा चुनाव का एक दौर ऐसा भी आया जा उनका स्वास्थ्य खराब हो गयां,प्रचार में वे जा नहीं सके ऐसी स्थिति में लोकतंत्र के त्योहार में उन्हें विजय श्री हाशिल हुवा,ऐसे थे जन जन के नेता बाबू बिसाहू दास महंत।
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