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November 19, 2025 5:17 pm

एट्रोसिटी एक्ट में फंसे ग्रामीण को 17 साल बाद मिली राहत, हाईकोर्ट ने आरोप से किया बरी

बिलासपुर। हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति वर्ग के विरूद्ध आपत्तिजनक शब्द का उपयोग करने के मामले में एट्रोसिटी एक्ट के तहत पेश प्रकरण में स्पेशल जज एट्रोसिटी द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए ग्रामीणों को बरी किया है। 2008 में अपीलकर्ताओं को अर्थदंड की सजा सुनाई गई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार शिकायतकर्ता लखन लाल कुर्रे ने 22 सितंबर 2007 को दोपहर 3.20 बजे पुलिस थाना-भखारा जिला धमतरी में एक लिखित रिपोर्ट दर्ज कराई कि, वह 17 सितंबर 2006 को दोपहर 1 बजे ग्राम जोरातराई आयोजित बैठक में भाग लेने गया था। बैठक में दानी राम, लखन लाल सेन व महेश उर्फ महेंद्र कुमार साहू ने उसे घेर लिया और मां-बहन की गालियां देते हुए जातिसूचक शब्द कहे, जिससे वह बेहोश हो गया। यदि रामस्वरूप साहू ने हस्तक्षेप नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि, शिकायतकर्ता लाखन के बयान में चूक और अतिशयोक्ति पाई गई है। अपीलकर्ताओं का बचाव जांच अधिकारी की गवाही द्वारा विधिवत समर्थित है कि सभी ग्रामीणों ने शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन जांच अधिकारी ने बचाव पक्ष की शिकायत पर कोई जांच नहीं की, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने शिकायतकर्ता और बचाव पक्ष के गवाहों के बयान का उचित मूल्यांकन नहीं किया और विपरीत निष्कर्ष दर्ज किया। इसके साथ हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द किया है।
कोर्ट ने कहा गवाही से यह स्पष्ट है कि अभिलेखों में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि, अपीलकर्ताओं का कृत्य दूसरों को परेशान करने वाला था, और शिकायतकर्ता ने स्वयं अश्लील शब्दों के बारे में कुछ नहीं कहा था और अपनी लिखित शिकायत में उसने केवल यह आरोप लगाया था कि, बैठक में उपस्थित ग्रामीणों ने उसे जातिगत गालियां दीं, जो अश्लील कृत्य के दायरे में नहीं आता, लेकिन निचली अदालत ने इन सभी तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा। गवाहों में कई विरोधाभास हैं।
लिखित रिपोर्ट के आधार पर, पुलिस ने आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 254, 506, 323 (34) और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (1) (10) के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की।
स्पेशल जज ने 10 नवंबर 2008 को धारा 294 आईपीसी के तहत प्रत्येक को 500 रुपए का जुर्माना अदा न करने पर 1 महीने सजा, भारतीय दंड संहिता की धारा 323/34 के अंतर्गत प्रत्येक को एक हजार रुपए का जुर्माना अदा करने जुर्माना अदा न करने पर 2 महीने के लिए कैद की सजा भुगताने का आदेश दिया।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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