बिलासपुर। हाई कोर्ट ने 53 साल पुराने एक पारिवारिक विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने कहा कि 21 मई 1972 को हुआ बंटवारा पूरी तरह वैध है और इसे निचली अदालतों ने सही तरीके से प्रमाणित किया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि तखतपुर के तहसीलदार द्वारा 29 अगस्त 2011 को पारित नामांतरण आदेश शून्य है, क्योंकि वह बिना उचित नोटिस के पारित किया गया था। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि म्यूटेशन या नामांतरण का उद्देश्य केवल राजस्व रिकॉर्ड का संकलन है, इससे स्वामित्व तय नहीं होता।
तखतपुर के दुबे परिवार की संपत्ति का 21 मई 1972 को आपसी सहमति से बंटवारा हो गया था, जिसे सभी सदस्यों ने स्वीकार कर लिया था। इसके बाद 1981-82 में म्यूटेशन रजिस्टर में नाम दर्ज किए गए थे। उस रजिस्टर पर सभी के हस्ताक्षर थे। कई साल बाद 31 मार्च 2011 को डॉ. शिप्रा शर्मा ने तखतपुर के तहसीलदार के समक्ष आवेदन देकर रिकॉर्ड सुधार की मांग की। इसके बाद तहसीलदार ने 29 अगस्त 2011 को आदेश पारित करते हुए गेंद बाई का नाम हटाकर डॉ. शिप्रा समेत अन्य का नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया। गेंद बाई ने इस आदेश को सिविल कोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने म्यूटेशन रजिस्टर और बंटवारा विलेख जैसे दस्तावेजों को देखने के बाद पाया कि 1972 में ही बंटवारा हुआ था और सभी ने इसे स्वीकार किया था। ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर तहसीलदार के नामांतरण आदेश को अवैध घोषित किया था। प्रथम अपीलीय अदालत ने भी ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों से सहमति जताते हुए अपील खारिज कर दी थी। इसके बाद डॉ. शिप्रा समेत अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी।
हाई कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को बरकरार रखते और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि म्यूटेशन या नामांतरण का उद्देश्य केवल राजस्व संकलन है, इससे स्वामित्व तय नहीं होता। हाई कोर्ट ने माना कि गेंद बाई व अन्य ने दस्तावेजों और हस्ताक्षरों से 21 मई 1972 के बंटवारे को प्रमाणित कर दिया है। इसके अलावा तहसीलदार के आदेश पारित करते समय गेंद बाई व अन्य को उचित नोटिस जारी नहीं करना नियमविरुद्ध था।

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