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October 16, 2025 8:52 am

डीजीपी के आदेश को हाई कोर्ट ने किया रद्द, याचिकाकर्ता को पदोन्नति का दिया आदेश

बिलासपुर . हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़ द्वारा 08 अगस्त 2022 को जारी पदोन्नति निरस्तीकरण आदेश को अवैध और मनमाना करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता को उप निरीक्षक के पद पर पदोन्नति देने और सभी परिणामी लाभ तीन माह के भीतर प्रदान करने कहा है।

याचिकाकर्ता कृष्ण कुमार ने अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और अधिवक्ता दीक्षा गौरहा के ज़रिए उच्च न्यायालय में दायर की । मामले की पैरवी अधिवक्ता दीक्षा गौरहा ने की। याचिकाकर्ता उस समय सहायक उप निरीक्षक (Assistant Sub-Inspector) के पद पर थाना सोनक्यारी, जिला जशपुर में पदस्थ थे। पुलिस मुख्यालय द्वारा 21 मई 2021 को पदोन्नति हेतु पात्रता सूची प्रकाशित की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता का नाम क्रमांक 138 पर शामिल था। इसके कुछ समय बाद 18 नवम्बर 2021 को याचिकाकर्ता पर कर्तव्यों में लापरवाही के आरोप में वार्षिक वेतनवृद्धि रोकने (गैर-संचयी प्रभाव के साथ) की लघु दंड (minor punishment) की सजा दी गई। इसी आधार पर पुलिस महानिदेशक ने याचिकाकर्ता की पदोन्नति निरस्त कर दी।

याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया कि पात्रता सूची तैयार होने की तिथि पर याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई दंडादेश अस्तित्व में नहीं था, इसलिए बाद में दी गई लघु सजा को पूर्व प्रभाव (retrospective effect) देकर पदोन्नति निरस्त करना कानून के विपरीत है। यह भी कहा गया कि विभागीय पदोन्नति समिति ने पहले ही याचिकाकर्ता को पदोन्नति के योग्य पाया था, अतः बाद में दी गई सजा के आधार पर पदोन्नति से वंचित करना मनमाना निर्णय है।
राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता की पदोन्नति का आदेश जारी नहीं हुआ था, केवल पात्रता सूची बनाई गई थी, और चूंकि बाद में दंड दिया गया, इसलिए उसे पदोन्नति नहीं दी जा सकती थी।

मामले की सुनवाई जस्टिस अमितेन्द्र किशोर प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई । कोर्ट ने पाया कि पात्रता सूची प्रकाशित होने की तिथि पर याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई भी दंडादेश नहीं था। न्यायालय ने कहा कि बाद में दी गई लघु सजा को पदोन्नति रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पात्रता सूची में केवल गंभीर (major) दंड को ही पदोन्नति को प्रभावित करने वाला माना गया था, जबकि लघु दंड का कोई उल्लेख नहीं था। अतः अधिकारियों द्वारा लघु दंड के आधार पर पदोन्नति निरस्त करना स्व-विरोधाभासी और मनमाना है।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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