बिलासपुर। नगरीय निकाय चुनाव के दौरान बिलासपुर जिले की राजनीति में जो कुछ घटा सभी को याद है। टिकट वितरण से लेकर चुनावी माहौल तक जो कुछ हुआ और उसके बाद नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की जो हालत हुई, वह तो दिखाई दे ही रहा है। इन सबके पीछे जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी और शहर अध्यक्ष का ही हाथ रहा है और सीधेतौर पर भूमिका भी इनकी ही रही।
नगरीय निकाय चुनाव के दौरान जिस तरह विधायक से लेकर प्रदेश प्रतिनिधियों और प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनहीनता के बहाने कार्रवाई की गई, कांग्रेस के खिलाफ में माहौल बना और उम्मीदवारों की जितने की संभावनाएं भी उसी अंदाज में खत्म सी हो गई। निगम चुनाव के दौरान और परिणाम आने के बाद जिले की राजनीति में जो कटुता और खाई उभरकर सामने आई,आजतलक वैसा ही है। ना तो सामंजस्य बैठाने की कोशिश की गई और ना ही इसे गहरी होती खाई को पाटने की कोशिश ही हुई।
बदले की राजनीतिक का ऐसा सीन सामने आया जिसने भी सुना और देखा भौचक रह गए। राजनीतिक कटुता का आलम ये कि कोटा के विधायक अटल श्रीवास्तव, पीसीसी के प्रवक्ता अभयनारायण राय, त्रिलोक श्रीवास, महिला कांग्रेस की पदाधिकारी सीमा पांडेय जैसे नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। कांग्रेस के संविधान के जानकारों का कहना है कि प्रदेश पदाधिकारियों और विधायकों को पार्टी से बाहर निकालने का अधिकार जिला व शहर कांग्रेस कमेटी को नहीं है। बिलासपुर में ऐसा हुआ। विवाद जब गहराया और बात पीसीसी तक पहुंची तब विधायकों व प्रदेश प्रतिनिधियों के मामले में विधायक व पूर्व विधायकों की कमेटी बनाई गई। हालांकि पूरी रिपोर्ट पीसीसी के हवाले कर दिया गया है। पीसीसी ने इस पर आजतलक कोई निर्णय नहीं लिया है। यही वजह है कि मैदानी कार्यकर्ता और पदाधिकारी कल होने वाले कार्यक्रमों की तैयारी से लेकर तैयारी बैठकों में नजर नहीं आए।
विवादित अध्यक्षों को फिर मिली जिम्मेदारी

नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के कंधे पर विरोधियो को चुन-चुनकर पार्टी से बाहर निकालने वाले दोनों जिला अध्यक्षों को एक बार फिर जिम्मेदारी दी गई है। इसे लेकर जिले की राजनीति में एक बार फिर सुगबुगाहट देखी जा रही है।

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