शहीद महेन्द्रकर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर जगदलपुर में हुआ गरिमामय आयोजन
जगदलपुर।शहीद महेन्द्रकर्मा विश्वविद्यालय, बस्तर जगदलपुर एवं शासकीय काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जगदलपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम के अवसर पर हल्बी भाषा की प्रतिष्ठित साहित्यकार श्रीमती शकुंतला तरार को उनके हल्बी भाषा में सुदीर्घ लेखन, संरक्षण एवं उन्नयन में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि श्रीमती तरार की पुस्तक “शकुंतला चो लेजा गीत” न केवल हल्बी भाषा का महत्वपूर्ण दस्तावेज है, बल्कि यह बस्तर की सांस्कृतिक पहचान को भी प्रकट करती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस संग्रह में कुल 101 पारंपरिक लेजा गीत और उनके हिंदी अनुवाद शामिल हैं, जो लोकसंवाद और सांस्कृतिक विविधता का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
राज्यपाल श्री रमन डेका के संदेश का वाचन करते हुए प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि छत्तीसगढ़ की समस्त भाषाओं और बोलियों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। हल्बी, जो बस्तर की संपर्क भाषा है, उसमें लेखन के माध्यम से श्रीमती तरार ने एक नया आयाम स्थापित किया है।
कार्यक्रम में पद्मश्री बैद्यराज हेमचंद मांझी नारायणपुर एवं पद्मश्री अजय मंडावी कांकेर को भी उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
प्राचार्य, शासकीय काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ने स्वागत भाषण दिया और विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर डॉ. डी. के. श्रीवास्तव (OSD, NEP, उच्च शिक्षा विभाग) एवं डॉ. जी. ए. घनश्याम (संयुक्त संचालक, उच्च शिक्षा विभाग) ने भी अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन व माल्यार्पण से हुई।
श्रीमती शकुंतला तरार का यह सम्मान इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि उन्होंने हाल ही में हिमाचल प्रदेश के शिमला में आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में हल्बी और छत्तीसगढ़ी में रचनापाठ किया। इसके साथ ही उन्होंने साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा आयोजित विश्व की 157 भाषाओं के साहित्य महोत्सव में हल्बी गीतों की प्रस्तुति देकर बस्तर की भाषा को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया।
कार्यक्रम में बस्तर संभाग के जनप्रतिनिधि, सभी महाविद्यालयों के प्राचार्यगण, छात्र-छात्राएं साहित्यकार और गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
यह आयोजन न केवल भाषा और साहित्य के संरक्षण की दिशा में एक सशक्त प्रयास रहा, बल्कि यह बस्तर की सांस्कृतिक आत्मा को सम्मान देने का अवसर भी बना।

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