लेखक धनंजय राठौर संयुक्त संचालक जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर
भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है, जहां हर संस्कृति, हर परंपरा एक नई कहानी कहती है। इन्हीं कहानियों में से एक है छत्तीसगढ़ की पारम्परिक संस्कृति में रचा-बसा हरेली पर्व — जो न केवल एक त्यौहार है, बल्कि प्रकृति, किसान और लोकजीवन के बीच संबंधों का उत्सव भी है।
हरेली पर्व छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक पंचांग का पहला त्योहार माना जाता है, जिसे श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है। ‘हरेली’ शब्द ही हरियाली की ओर संकेत करता है। यह त्यौहार तब आता है जब खेतों में जुताई, बुआई, रोपाई और बियासी का कार्य पूरा हो चुका होता है और धरती हरी चादर ओढ़ चुकी होती है। यह पर्व किसानों के लिए प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर होता है।
कृषि औजारों और पशुधन की होती है विशेष पूजा
हरेली के दिन छत्तीसगढ़ के किसान अपने खेती-किसानी में प्रयोग होने वाले औजारों – हल, फावड़ा, कुदाली, गैंती आदि को धोकर उन्हें घर के आंगन में सजाकर उनकी पूजा करते हैं। साथ ही गाय- बैल-भैंस जैसे पशुधन को भी नहलाया जाता है और उन्हें सजाया जाता है। घर-घर में कुलदेवताओं और आस्था के देवी-देवताओं की भी पूजा होती है।
लोक पकवान और पारंपरिक स्वाद
इस दिन घरों में गुड़ का चीला, ठेठरी, खुरमी जैसे पारंपरिक पकवान बनते हैं। लोग चावल के आटे से बने मीठे-नमकीन चीला का स्वाद लेते हैं और इसे देवी-देवताओं को भोग स्वरूप चढ़ाया जाता है।
नीम, गेंड़ी और खेलकूद
हरेली पर्व में पर्यावरण की शुद्धता और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है। नीम की टहनियों को घरों के द्वार पर लगाया जाता है, जिससे बीमारियों और कीटों से रक्षा होती है। मान्यता है कि इससे अनिष्ट शक्तियां घर से दूर रहती हैं।
बच्चे और युवा इस दिन गेंड़ी चढ़ते हैं जो एक पारंपरिक लोक खेल है। गेंड़ी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन गांवों में होता है। यह उत्सव गांवों की गलियों में उत्साह और उमंग बिखेर देता है।
नारियल फेंक प्रतियोगिता – लोक मनोरंजन का अनोखा अंदाज
हरेली पर्व में नारियल फेंकने की प्रतियोगिता भी होती है, जिसमें युवा नारियल को दूर तक फेंकने का प्रयास करते हैं। यह गतिविधि न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि गांव में सामूहिकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देती है।
हरेली पर्व पर कविता – संस्कृति की गूंज
“हरेली के रंग, छत्तीसगढ़ के संग”
हरे-भरे खेत, हरियाली छाई,
आज हरेली, खुशियाँ लाई।
किसानों का त्यौहार, प्रकृति का उपहार,
नांगर, गैंती, कुदाली – सबकी पूजा, आज निराली।
पशुधन पूजे जाते, गुड़ का चीला बनाते,
ठेठरी-खुरमी, मिठाई का स्वाद, घर-घर महकाते।
नीम की टहनी, गेंड़ी की दौड़,
सबमें समाई खुशियों की दौड़।
बीमारियाँ भागें, सुख-शांति आए,
हरेली का पर्व सबको भाए।
हरेली के रंग, छत्तीसगढ़ के संग
हरेली पर्व छत्तीसगढ़ की कृषि संस्कृति, लोक जीवन और परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व न केवल किसानों की मेहनत का उत्सव है, बल्कि प्रकृति, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामूहिकता के संदेश को भी जन-जन तक पहुंचाता है।
छत्तीसगढ़ की पहचान को नये आयाम देने वाला यह त्यौहार आज भी लोक चेतना और आस्था के साथ मनाया जाता है और पीढ़ियों तक अपनी सांस्कृतिक जड़ें मजबूत करता चला आ रहा है ।

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