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July 10, 2025 8:40 am

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सरकार और नीति निर्धारक यह तय करें कि भाषा राजनीति का विषय न बनने पाए : सतीश जायसवाल

महानदी के साथ छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा लोक शैली चित्रांकन के शोधकर्ता को शासन प्रशासन से नहीं मिल पा रहा अपेक्षित सहयोग

मनेंद्रगढ़ ।(संवाददाता प्रशांत तिवारी) कोई भी भाषा तब अपने अस्तित्व के उच्चतम शिखर पर पहुंचती है जब उसमें साहित्यिक रचनात्मकता का समावेश हो। साहित्य भी सदैव अपनी क्षेत्रीय पहचान और क्षेत्रीयता को हमेशा साथ लेकर चलता है। साहित्य के साथ कला एवं संस्कृति भी पूरक की भांति साथ चलती है। उक्त आशय के विचार सतीश जायसवाल वनमाली सृजन केंद्र अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राज्य ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा की भाषा मूल तत्व है इसका संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक है।क्योंकि यह हमारी अस्मिता के गौरवशाली इतिहास का साक्षी भी है ,हमारी धरोहर और पहचान भी है। उन्होंने कहा आदिवासी समाज , हमारी संस्कृति और प्रकृति के अभिन्न हिस्से हैं।आदिवासी समाज के प्रति हमारा दृष्टिकोण समाजशास्त्रीय होना चाहिए। आदिवासी कोई अलग नहीं बल्कि हमारे अपने लोग हैं। उनके प्रति हमारा व्यवहार सरल और मृदु होना चाहिए। जयसवाल क्षेत्रीयता के प्रगतिशील विचारक हैं एवं इसके लिए प्रबल संघर्षशील हैं, किंतु शासन प्रशासन का कोई भी विशेष सहयोग अब तक नहीं मिल सका है। इस पर उन्होंने समाज के जागरूक तबके एवं बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान आकर्षण एवं समर्थन चाहा है। उन्होंने कहा कि यह विचार धीरे-धीरे जन आंदोलन भी बनना चाहिए। सतीश जायसवाल की अब तक 10 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। इस दौरान उन्होंने कैंसर को भी मात दी है। उनकी प्रमुख पुस्तकों में जाने किस बंदरगाह पर, धूप ताप ,कहां से कहां ,नदी नहा रही थी पुस्तकों के शीर्षकों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी लेखनी कितनी सहज और मृदु है। निःसंदेह वे एक कुशल नेतृत्व कर्ता हैं। आशा ही नहीं विश्वास है की छत्तीसगढ़ भाषा ,कला, साहित्य एवं संस्कृति उनके मार्गदर्शन में नई उपलब्धियां हासिल करेंगी। डॉक्टर जयसवाल का पूरा जीवन ही एक कहानी की तरह है। 40 वर्षों से अधिक की साधना में उन्होंने अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं।

वे भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतिष्ठित द स्टेट्समैन अवार्ड फॉर रूरल रिपोर्टिंग से दो बार पुरस्कृत हुए हैं। डॉक्टर जायसवाल को अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय ने हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए डॉक्टर आफ फिलासफी विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि से विभूषित किया है। उन्होंने पुणे स्थित फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट आफ इंडिया से फिल्म एप्रिसिएशन कोर्स किया है। 1980 के दशक में फिल्म सोसाइटी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। संस्कृति विभाग के अंतर्गत पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजन पीठ भिलाई के अध्यक्ष रहे। उन्हें वनमाली कथा सम्मान छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग के सहयोग से दिए जाने वाले वसुंधरा सम्मान से सम्मानित किया गया। मनेंद्रगढ़ पहुंचकर उन्होंने वनमाली सृजन पीठ की जिला इकाई के साहित्यकारों के साहित्य सृजन को बेहद खास एवं विशेष बताया इसके अतिरिक्त साहित्य के साथ-साथ सामाजिक सरोकार के लिए सराहना की। इस कार्यक्रम में वीरेंद्र श्रीवास्तव, सतीश उपाध्याय ,परमेश्वर सिंह मरकाम ,पुष्कर तिवारी, टी विजय गोपाल राव ,विनोद पांडे, दलजीत सिंह कालरा,संजीव सिंह ,प्रमोद बंसल, नरेंद्र श्रीवास्तव उपस्थित रहे।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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