बिलासपुर। विभागीय जांच को लेकर सवाल उठाने वाले कांस्टेबल की याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि जांच अधिकारी को गवाहों से सवाल पूछने और स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार है। यह जांच प्रक्रिया का हिस्सा है और इससे निष्पक्षता पर कोई प्रश्न नहीं उठता।
कांस्टेबल के खिलाफ वर्ष 2009 में दो गंभीर आरोप लगे थे। पहला, 6 फरवरी 2009 को बिना अनुमति ग्राम खोराटोला जाकर एक व्यक्ति को कमरे में बंद कर गाली-गलौज करना और जेल भेजने की धमकी देते हुए पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगना। दूसरा, बिना सूचना ड्यूटी से अनुपस्थित रहना। इसके आधार पर 12 मई 2009 को विभागीय जांच के लिए आरोप पत्र जारी किया गया। जांच अधिकारी ने 30 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट में दोनों आरोपों की पुष्टि की, जिसके आधार पर 30 जनवरी 2010 को कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। कांस्टेबल ने डीआइजी और आइजी के समक्ष दया याचिका लगाई, जो खारिज हो गई। इसके बाद उसने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की।
याचिकाकर्ता ने जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने अभियोजन पक्ष की तरह व्यवहार किया और गवाहों से जिरह कर अनुचित भूमिका निभाई। साथ ही, उसे बचाव सहायक लेने के अधिकार की जानकारी नहीं दी गई। जांच रिपोर्ट में तथ्यों और सबूतों का समुचित मूल्यांकन नहीं हुआ।
राज्य की ओर से महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी ने कहा कि पूरी जांच प्रक्रिया छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के अनुसार हुई है। जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण के लिए गवाहों से सवाल पूछने की अनुमति है, जो किसी भी तरह से पक्षपातपूर्ण नहीं माना जा सकता।
डिवीजन बेंच ने कहा कि पुलिसकर्मी होने के नाते याचिकाकर्ता ने खुद गवाहों से जिरह की और दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिससे स्पष्ट होता है कि वह अपने अधिकारों से अवगत था। जांच अधिकारी द्वारा की गई कार्रवाई नियमानुसार और निष्पक्ष रही। गवाहों की गवाही विश्वसनीय पाई गई।



