कलेक्टर के इस पहल की होनी चाहिए स्वागत
औद्योगिकीकरण की तेज आंधी के बीच हरियाली बिछाने की जरुरत भी है। उसी अंदाज में जिस अंदाज में कारखानों की संख्या बढ़ती जा रही है। पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने की चिंता हम सबकी है। यह तो आप और हम सभी जानते हैं। अफसोस की बात ये कि चिंता कोई नहीं कर रहा है। जंगल काटे जा रहे हैं और विकास के नाम पर हरियाली पर कुल्हाड़ी भी तेजी के साथ चल रही है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा भी बढ़ रहा है। असंतुलित होते वातावरण और ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतेर के बीच बिलासपुर कलेक्टर ने हरियाली बिछाने का जो बीड़ा उठाया है,वाकई इसके लिए वे साधुवाद के हकदार हैं। उनके इस कदम का स्वागत सत्कार करने और बधाई देने से ही काम नहीं चलने वाला है और ना ही काम बनने वाला है। जरुरत इस बात की है कि कलेक्टर के इस प्रयास में हम सब सहभागी बने और हरियाली बिछाने की दिशा में अपना मजबूत कदम बढाएं। हरियाली बिछाने और उसे सुरक्षित रखने का संकल्प भी लेना होगा।
अब शैक्षणिक संस्थान में घोटाले की गूंज
सीजीपीएससी घोटाला,भारत माला परियोजना, बजरमुड़ा पावर प्रोजेक्ट घोटाला, अरपा भैंसाझार घोटाला। शराब घोटाला और डीएमएफ घोटाला। छत्तीसगढ़ में घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। अंतहीन कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। इसमें से दो घोटालों की जांच सीबीआई कर रही है। सीजीपीएससी और शराब घोटाला। बाकी जितने घोटालों के नाम पर आपने अभी-अभी पढ़े हैं एसीबी और ईओडब्ल्यू को दूध का दूध और पानी का पानी करने का जिम्मा दे दिया है। इन सभी घोटालों की जांच तेजी के साथ हो रही है। यकीन मानिए भ्रष्टाचारियों को सजा भी होगी। वैसे भी बड़े घोटालेबाजी जेल की हवा खा रहे हैं। पेश के दौरान यदाकदा बाहर की हवा भी खा लेते हैं। सुनने में आ रहा है कि अब तो जेल की हवा ही खानी पड़ेगी। वीसी के जरिए पेशी होगी। घोटालों की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हो पाई है कि एक और घोटाले की गूंज सुनाई देने लगी है। बस्तर यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक भर्ती घोटाला। घोटाले की गूंज राष्ट्रपति भवन से लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तक होने लगी है। अफसोस की बात ये कि घोटालेबाजों ने शहीद का नाम डुबा दिया है। कम से कम नाम और सम्मान का तो ध्यान और ख्याल रखे।
किस बात का रुतबा और काहे का तनख्वाह

जिला मुख्यालय के एक विभाग और यहां काम करने वाले अफसर से कर्मचारियों के बारे में इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जमकर कहें तो भी चल जाएगा। कुर्सी तोड़ एसी में बैठे अफसरों के कामकाज को लेकर न्यायधानी से लेकर राजधानी तक बात है कि खत्म ही नहीं हो रही है। चलिए विभाग का नाम भी आपके सामने रख ही देते हैं। आबकारी विभाग याने एक्साइज। आप भी समझ ही गए होंगे कि क्या और कैसे चल रहा है। गांवों में अवैध शराब से युवा पीढ़ी की भविष्य बर्बादी की कगार पर है। शराब माफिया है कि दिन दोगुनी और रात चौगुनी फल फुल रहे हैं। जाहिर है माफिया खुश तो महकमा जमकर खुश। ऐसे में आप और कहां। आपकी और हमारी चिंता कौन करे। तब यह भी बात आ रही है कि जिस काम की जिम्मेदारी सरकार ने दी है, जिम्मेदारी निभाने के एवज में तनख्वाह,रुतबा और सुविधा सब-कुछ दे रहे हैं, वही काम नहीं हो रहा है तो किस बात का रुतबा और काहे का तनख्वाह। सुशासन के मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा सरकारी विभाग एक्सपोज हुआ है तो आबकारी और यहां बैठे अफसर और मातहत। राजधानी रायपुर से 110 किलोमीटर की दूरी कर अफसर आ जाते हैं और अपना काम कर चले जाते हैं, पर ये हैं कि ….अब क्या कहें। आगे की बातें आप पर छोड़े जा रहे हैं।
युक्तियुक्तकरण के खेल में कौन फसेंगे और कौन आएगा बाहर
मुख्यमंत्री के कड़े निर्देश के बाद स्कूल और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण के लिए सरकारी कामकाज पटरी पर तेज गति से दौड़ रहा है। शिक्षक संगठनों के नेताओं का गुस्सा सातवें आसमान पर हैं। गुस्से और आंदोलन के बीच स्कूल शिक्षा विभाग ने अपना काम शुरू कर दिया है। सरकार के कड़े निर्देश के बाद भी चालाकी करने वाले ना तो बाज आ रहे हैं और ना ही किसी का डर दिख रहा है। चालाक शिक्षा अधिकारियों की चालाकी इस बात नहीं चल पाएगी, ऐसा कुछ-कुछ देखने और सुनने में आने लगा है। चेतावनी के बाद भी चालाकी की और पकड़ी गई तब क्या होगा,कुर्सी तो जाएगी ही जाएगी,आगे जो होगा वह तो भगवान ही जाने। पर होगा जरुर। चर्चा के मौजूदा दौर में हम और आप मिलकर देखते हैं कि किस अंदाज में यह प्रोसेस पूरा होता है।
अटकलबाजी
संविधान बचाओ रैली की सुगबुगाहट एक बार फिर सुनाई देने लगी है। कोर्टयार्ड मेरियट की घटना याद है ना। अब तो पाला बदल का काम भी हो रहा है। जिसने गिरेबां पकड़ी अब वह भाई बन गए हैं। जमाना है, दोष किसी दें। रैली में भीड़ और मैनेजमेंट को लेकर कानाफूसी शुरू हो गई है। कितने महीने या साल का मैनेजमेंट होगा।
स्कूल और शिक्षक दोनों का युक्तियुक्तकरण चल रहा है। फायदे में कौन रहेंगे और घाटा किसको सहना पड़ेगा। फायदा में रहने वाले घाटेदारों को कौसे मैनेज करेंगे। यह गणित तो हमें समझ में नहीं आ रहा है। आप हल कर सकें तो हमें भी बताइएगा।

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