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July 1, 2025 3:17 pm

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सबूतों की कमी के चलते हाई कोर्ट ने अपहरण और हत्या के तीनों आरोपितों को किया बरी

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बहुचर्चित ईशान अपहरण और हत्या मामले में अहम फैसला सुनाते हुए तीनों आरोपितों को सबूतों की कमी के चलते बरी कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों को अपर्याप्त मानते हुए यह निर्णय दिया। इस फैसले के बाद पीड़ित परिवार में निराशा है, जबकि बचाव पक्ष ने इसे न्याय की जीत बताया है।

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क्या था मामला?

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रामानुजगंज, बलरामपुर जिले में 4 सितंबर 2018 को 14 वर्षीय ईशान के लापता होने की रिपोर्ट उसके परिजनों ने दर्ज कराई थी। शुरुआती जांच में इसे गुमशुदगी माना गया, लेकिन बाद में मामला अपहरण का निकला। 7 सितंबर को ईशान का शव कनकपुर जंगल में मिला, जिससे सनसनी फैल गई। पुलिस ने मोहम्मद इसरार अहमद उर्फ राजा (20), मोहम्मद साहिल बारी (18) और मोहम्मद शमशेर खान (19) को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ हत्या, साजिश और सबूत नष्ट करने के आरोप में मुकदमा चलाया।

ट्रायल कोर्ट ने दी थी आजीवन कारावास की सजा

रामानुजगंज के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने 12 नवंबर 2021 को तीनों आरोपितों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अभियोजन पक्ष ने ‘लास्ट सीन थ्योरी’ और शव की बरामदगी को मुख्य आधार बनाकर आरोपियों को दोषी ठहराने की दलील दी थी।

हाई कोर्ट में क्यों पलटा फैसला?

आरोपितों ने हाई कोर्ट में अपील दायर कर सजा को चुनौती दी। सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ‘लास्ट सीन थ्योरी’ को मजबूत करने में असफल रहा। गवाहों की गवाही में विरोधाभास था और हत्या के समय को लेकर संदेह बना रहा। हाई कोर्ट ने निजाम बनाम राजस्थान राज्य (2016) मामले का हवाला देते हुए कहा कि ‘लास्ट सीन’ साक्ष्य निर्णायक और ठोस होना चाहिए।

क्या बोले बचाव पक्ष और पीड़ित परिवार?

फैसले के बाद बचाव पक्ष के वकील ने कहा, “यह न्याय की जीत है। बिना ठोस सबूतों के किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं था।” वहीं, ईशान के परिजनों ने हाई कोर्ट के फैसले पर निराशा जताते हुए कहा कि वे इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।

क्या आगे जाएगी यह लड़ाई?

अब सवाल यह उठता है कि क्या राज्य सरकार या पीड़ित परिवार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे? अगर ऐसा होता है, तो इस बहुचर्चित मामले में कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच सकती है। फिलहाल, हाई कोर्ट के इस फैसले ने न्याय प्रणाली और सबूतों की अहमियत को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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