Explore

Search

January 22, 2025 9:33 pm

IAS Coaching
लेटेस्ट न्यूज़

एक चिकित्सक के मामले हाईकोर्ट की तल्खी


बिलासपुर। शराब घोटाले के आरोपी अनवर ढेबर को इलाज कराने के लिए रायपुर सेंट्रल जेल से जिला अस्पताल लाया गया था। जिला अस्पताल में लोअर इंडोस्कोपी मशीन के खराब होने के कारण डा प्रवेश शुक्ला ने उसे एम्स रेफर कर दिया था। सेवा में कमी और अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए राज्य शासन ने उसकी सेवा समाप्त करने के साथ ही गोलबाजार थाने में एफआईआर दर्ज करा दिया। इस आरोप से आहत डा शुक्ला ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों पर आरोप लगाते हुए कहा कि बगैर विभागीय जांच कराए और उसे सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिए बिना कलंकपूर्ण आदेश पारित कर उसकी सेवा समाप्त कर दिया गया है। ऐसा आदेश जिससे उसका करियर चौपट हो जाएगा।
सहायक प्राध्यापक गैस्ट्रो सर्जरी विभाग डा प्रवेश शुक्ला ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर 08.08.2024 को अस्पताल अधीक्षक एवं एकेडेमिक इंचार्ज द्वारा आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसकी सेवा शासकीय दाऊ कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, रायपुर, जिला रायपुर छत्तीसगढ़ (‘डीकेएस अस्पताल’ ) में सहायक प्रोफेसर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के पद से समाप्त कर दी गई है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि वह एक सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर है। उसके पास MBBS, MS(सर्जरी), Dr.NB (डॉक्टरेट ऑफ नेशनल बोर्ड सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) सुपर स्पेशलिस्ट कोर्स की डिग्री है और वह गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध डॉक्टर है। प्राइवेट प्रैक्टिस के बजाय उसने सरकारी अस्पताल में काम करने को प्राथमिकता दी है। वह छत्तीसगढ़ का एकमात्र डॉक्टर है जो DKS अस्पताल में तैनात था। याचिकाकर्ता ने बताया कि इसके पहले वह GB पंत सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम कर चुके हैं। उसके बाद वह AIMS भोपाल में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। तकरीबन 2 साल काम करने के बाद वह चिकित्सा क्षेत्र में सेवा करने के लिए छत्तीसगढ़ वापस आ गया। 11.08.2023 को उसने DKS अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के तहत एक सर्जन (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) के रूप में संविदाआधार पर नियुक्त मिलने के बाद काम करना प्रारंभ किया।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 08.06.2024 को ओपीडी के दौरान विचाराधीन बंदी अनवर ढेबर जेल से अपना इलाज कराने आया था, जिसमें उसने उक्त मरीज को आगे के इलाज के लिए जिला अस्पताल रायपुर रेफर किया है।
0 राज्य शासन ने ये लगाए आरोप
उसके खिलाफ आरोप है कि गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सर्जन होने के नाते ओपीडी में इलाज करते समय उसने उसे अन्य सरकारी अस्पताल/एम्स में रेफर कर दिया, क्योंकि जीआई. एंडोस्कोपी (कोलोनोस्कोपी) उपकरण विभाग में उपलब्ध नहीं था। यदि कोलोनोस्कोपी विभाग में उपलब्ध नहीं है, तो वह इसे अन्य सरकारी अस्पताल से करवा सकता था, जो पूर्णतः अनुशासनहीनता है और छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 का उल्लंघन है। कानूनी कार्रवाई के संबंध में राज्य शासन ने नोटिस जारी कर दो दिनों भीतर स्पष्टीकरण मांगा।


0 अधिवक्ता संदीप दुबे ने दिया ये तर्क
मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता चिकित्सक की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि सुनवाई का कोई अवसर या विभागीय जांच के बिना ही याचिकाकर्ता की सेवाएं 08.08.2024 को समाप्त कर दी गई हैं। जबकि माना गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य अनुशासनहीनता है जो छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 का उल्लंघन है, इस प्रकार उसे उसकी सेवाओं से हटा दिया गया है। अधिवक्ता दुबे ने कहा कि राज्य शासन द्वारा कलंकपूर्ण आदेश जारी करते समय याचिकाकर्ता को न तो सुनवाई का कोई अवसर दिया गया और न ही उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच शुरू की गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि यदि संविदा नियुक्ति में भी कोई कलंकपूर्ण आदेश पारित किया जाना है, तो उसे उचित जांच करने और संबंधित अपराधी/कर्मचारी को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद पारित किया जाना चाहिए।
0 छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला, अफसरों ने की अवैधता
मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस प्रसाद ने अपने फैसले में लिखा है कि राज्य शासन के 08.08.2024 के आक्षेपित आदेश के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक कलंकपूर्ण आदेश है, जिसमें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के उल्लंघन का स्पष्ट उल्लेख है। लिहाजा याचिकाकर्ता को विभागीय जांच में शामिल कर उसकी सुनवाई की जानी आवश्यक है, जो वर्तमान मामले में नहीं की गई है।
4964/2015 में पारित 22.08.2024 के आदेश से परिलक्षित होता है। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि संबंधित अधिकारियों ने कोई विभागीय जांच न करके तथा कलंकपूर्ण आदेश पारित करने से पहले सुनवाई का उचित अवसर न देकर अवैधता की है। लिहाजा 08.08.2024 का विवादित आदेश निरस्त किए जाने योग्य है तथा इसके द्वारा निरस्त किया जाता है।

Ravi Shukla
Author: Ravi Shukla

Editor in chief

Read More