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November 13, 2024 12:34 pm

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*सांस्कृतिक परम्परा में अक्षय नवमी औ” प्रबोधिनी एकादशी”:डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा*







 

भारत वर्ष उत्सव मंगल हर्ष पर्व का देश है, जीवन के प्रति समाज देश के प्रति आशा, आस्था, जिगीषा, जिजीविषा का विशेष आग्रह है. इसीलिए नव संवत्सर का आरंभ ही वर्ष प्रतिपदा से होता है। भाई दूज यम द्वितीया, अक्षय तृतीया, गणेश चतुर्थी, नाग पंचमी, हलषष्ठी, संतान सप्तमी, जन्माष्टमी, रामनवमी, विजयादशमी, देवउठनी एकादशी, शिवरात्रि, हरेली, पोला, दीवाली अमावस्या, शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा जैसे लगातार वर्ष भर अनेक अनेक उत्साह-उल्लास पूर्ण उत्सव भारत की अपनी विशेषता है। यह त्यौहारों का अनोखा देश है। जन्मोत्सव जयंती मनाने की परंपरा है, मरण तिथि मनाने की नहीं। अंधकार की अपेक्षा आलोक, मृत्यु की अपेक्षा जीवन को प्राथमिकता दी है, इसीलिए मरण भी हमारे यहां त्यौहार है, क्योंकि आत्मा अजर है, अमर है. शरीर नष्ट होते हैं, आत्मा नहीं।

पंडित रमाकांत मिश्र शास्त्री के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमीं को धात्री वृक्ष (आँवला) की पूजा कर उसकी छाया में भोजन बनाकर भगवान को भोग लगा ब्राम्हण कुटुम्बी आदि को भोजन कराने पर बहुत पुण्य होता है। धात्री पूजन कैसे करना चाहिए उसकी विधि और मंत्रों का वर्णन किया जा रहा है।

धात्री वृक्ष के नीचे कलश जलाकर गणेश स्मरण कर संकल्प करें।

ॐ विष्णु-विष्णु विष्णुः पूर्वोच्चारित तिथि वार आदि स्मरण उच्चारण कर “मम समस्त पापक्षय पूर्वकं दामोदर प्रीतये धात्री मूले विष्णु पूजनमहं करिष्ये” ।

फिर पुरूष सुक्त से या किसी प्रकार सोलहों प्रकार भगवान और ऑवले की पूजा कर अर्ध देवे

अर्घ्य अर्घ्य गृहाणभगवान, सर्व काम प्रदोभव ।।

अक्षयाः सत्नन्तिर्मेऽस्तु दामोदर नमोऽस्तुते धात्री पूजन विधि

“ॐ धात्रये नमः”” ऊँ स्वधायै नमः” आदि से धात्री की पूजाकर निम्न नाम मंत्रों से वृक्ष के चारों ओर दीपदान करें 16 दीप दें-

1. ॐ धात्रये नमः

2 ॐ स्वधायै नमः

3. ॐ कमनीयायै नमः

4. ॐ शिवाये नमः

5. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः

6. ॐ महालक्ष्म्यै नमः

7. ॐ रमायै नमः

8. ॐ इन्दिरायै नमः

9 ॐ लोकमात्रै नमः

10. ऊ ब्रहमाण्यै नमः

11. ॐ शान्त्यै नमः

12. ॐ मेघायै नमः

13. ॐ गायत्र्यै नमः

14. ॐ सुधृत्यै नमः

15. ॐ विश्वरूपायै नमः

16. ॐ अग्नि मेधायै नमः

फिर यात्री की जड़ में दूध गंगाजल तिल जव लोटे में लेकर तर्पण कर जल

तर्पण मंत्र –

“पिता पितामहश्चैव, अपुत्रोये च गोत्रिणः । ते पिवन्तु मया दत्तं, धात्रीमूलेऽक्षयं पयः ।। “आब्रह्म सतम्भ पर्यन्तं, देवर्षि पितृ मानवाः ।। ते पिवन्तु मया दत्तं, धात्री मूलेऽक्षयं पयः ।।

फिर धात्री वृक्ष में सूत्र लपेटते हुए परिक्रमा करें-

सूत्र बंधन

मंत्र दामोदर निवासायै, धात्र्यै देव्यै नमोऽस्तुते ।। सूत्रेणानेन बध्नामि, धात्रि देविनमोऽस्तुते ।।

प्रणाम कर भोग लगाकर भोजन ग्रहण करे। सफेद कुम्हड़े (रखिया) का दान

उत्तम होता है।

वर्ष भर में एकादशी की संख्या 26 होती है, किन्तु देवशयनी और देव-उठनी एकादशी का विशेष महत्व है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी देवशयन के बाद बड़े मांगलिक उत्सव रूक जाते हैं, फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी देव प्रबोधन के बाद उत्सव शुरू हो जाते हैं।

वराह पुराण के अनुसार एक वेदी पर सोलह पॉखुरिया का कमल बनाकर जल,

रत्न, चंदन तथा सफेद वस्त्र से चार कलश ढांककर स्थापित करें तथा उनके बीच चतुर्भुज धारी विष्णु तथा शेषधायी के सोने की प्रतिमा स्थापित करके ऋचाओं द्वारा पूजन करे, जागरण के पश्चात् दूसरे दिन चार वेदपाठी ब्राम्हणों को चार कलश तथा पांचवें को स्वर्ण प्रतिमादान देकर, भोजन करवाकर भोजन करे यही विधान है। मदन रत्न ग्रंथ के अनुसार वर्षा के चार माह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक

शुक्ल एकादशी तक ब्रह्म, इंद्र, रूद्र, अग्नि, वरूण, कुबेर, सूर्य और सोम आदि देवों के भी पूजनीय महाप्रभु और सागर में चार मास शयन करते हैं। यद्यपि भगवान कभी भी क्षण भर सोते नहीं, तथापि उपासना के इस विधान के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को रात्रि के समय हरि को जगाया जाता है। स्त्रोत, भजन, घंटा शंख बजाकर उन्हें जगाना ही पूजा है।

मंत्र द्वारा उन्हें जगाया जाता है
उत्तिष्ठोतिष्ठ गोविंद त्यज निद्रा जगत्पते। वये सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्त भवेदिदम् ।। उत्थिते चेष्टते सर्व मुत्तिष्ठोतिष्ठ माधव। गता मेघा वियच्चेव निर्मलं निर्मला दिशः ।।

भगवान को मंदिर या आसन में नाना पुरुषो से सजा विष्णु पूजा कर भी कपूर की नीराजना (आरती) करे। फिर यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन…. मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें। पूजा के पश्चात् पालकी में प्रभु को नगर यात्रा कराये। इस प्रकार प्रभु योग निद्रा त्यागकर प्राणियों का पालन पोषण करते हैं।

पद्म पुराण के अनुसार उपवास रहकर सोने या चांदी की लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा का पूजन कर तुलसी मंजरी अर्पित करें-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप कर व्रत पूर्ण करे।

यह एकादशी छत्तीसगढ़ में तुलसी विवाह अनुष्ठान के रूप में प्रसिद्ध है। गन्ने का मंडप बनाकर नवीन तुलसी तरू का विवाह करें। गणेश मातृका पूजन के बाद श्री लक्ष्मी नारायण की मूर्ति के साथ गोधूली बेला में तुलसी कन्या का दान करें, वस्त्र भूषण दान करें, कुलीन ब्राम्हण को तृप्त कर स्वयं भोजन कर व्रत का पालन करें यही देव बोधिनी एकादशी है।

छत्तीसगढ़ में यादव-वीर इसी एकादशी से महाप्रभु श्री कृष्ण की रासलीला का लोक महोत्सव “मड़ई” नृत्यगान प्रारंभ करते हैं। गोपाल-गोवर्धन अन्नकूट-कार्तिक पूर्णिमा अन्न लक्ष्मी के पूजन का समापन समारोह है। दोहा प्रसिद्ध भी है-

आवत देवारी लुहलुहिया,

जात देवारी बड़ दूर।

जा जा देवारी अपन घर,

फागुन उड़ाही धूर ।।

डा० पालेश्वर प्रसाद शर्मा

विद्यानगर बिलासपुर छ०ग०

CBN 36
Author: CBN 36

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