जब सोना के भारत-भू ल देखके मुगल मन के लोभ म लार टपके लागिस त बारा हजार सैनिक लेके बाबर ह हमला कर देइस तलवार के धार म इस्लाम के प्रचार होय लागिस… असक्षम जनता ऊपर तानाशाह होय लागिस गरीब परजा मन तराही तराही होय लागिन, नोनी बेटी मन के हुरमत नइ बचत रहिस… धरम… करम छोड़ के बेधरम होय ला रहिन त दीने इलाही के अंधियार म सुरुज बांस के महराणा प्रताप धरम बचाय बर जिनगी म सुचिंदा रहे बर जंगल जंगल खार म किंदरिस , कैंडी के रोटी सिरी राम के रूप म खस फेर सिंह ह कभू पिंजरा म रहि का ? तुलसी के नायक जनता के आधार बनिस… ग़री झन जाबे मुग़ल बाज़ार …. लोक गीद हावय
राम नाम को कल्पतरू, कलि कल्यान निवासु जो सुमिरत मांग ते तुलसी तुलसीदासु ।।
जे नर ल नरोत्तम, पुरूष ल पुरूषोत्तम, बनाथे उन महाकवि बनथे तुलसी सूर कबीर अइसनहे संत आउ महाकवि होईन, तुलसी बबा जनम के मुरहा, करम ले साधु बिचार ले भगत, सुभाव ले सरल, चरित्तर ले संयमी, आदत ले गुरतुर, जिनगी म गिरहस्थ, अचार ले सन्यासी, आतमा ले करून, मन ले धारमिक, बुद्धि ले दार्सनिक, अउ सैघो गोड़ ले मूड़ तक संत साधूरहिस।
एक अनाथ, मुरहा, लइका परभु के परसाद ले कैसे महाकवि बनथे ? कवितावली म तुलसी बबा लिखे हे :-
“बरे ते लालत फिरों, जानत हौं चारि फल चार चाणक कौ”
नानपन ले चार चना के दाना बर ललावै, बिलखै अइसे दीन रहिस तुलसी हर। फेर भगवान राम के चरन ल धरिस…. राम के लीला गाईस……त रमायन हर देस-विदेस निहीं पूरा संसार के सबले बने पोथी बनगे आजो ले नवधा रमायन गागा के मनइये तरथे… पुन्न कमाथे
जब जब रावन आही तब तब राम आही विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मिततनु माया गुन गोपार ।।
जब जब धरम के हानि होही तब तक भगवान अवतार ले के धरम के रक्छा करही अधरम के नास करही जनता ल अइत्ताचार ले बचा ही
करम… धरम ले तुलसी बबा मानय कर्म कमंडल कर गहे तुलसी जग जग माही सरिता सुरसरि कूप जल बूंद अधिक समाय ।।
तुलसी बबा नानकन रहिस तभे ले मॉग मॉग के खावय, मंदिर के सिढिया म म सुत जावय, पेट भरे बर गली गली खोर खाोर किंदरय, महाकवि कबीर कपड़ा बीने आउ अपन पेट भरय… सूरबबा बिहान ले भगवान के मंदिर के सिढ़िया म बइठ के भजन सुनावय आउ परसाद पाके जियत रहिस… तीनों साधू… तीनों महाकवि फेर तीनों परभु के परम भगत…. तेकरे कारन हिंदी कविता तीनों संत के बिना सुन्ना हो जाही।
संत संन्यासी काम क्रोध लोभ ल जीत लेथे तब मन ह प्रभु के भजन म बूढ़ जाथे…विनय पत्रिका म तुलसी बाबा लिखे हे…माधवी मोह पास क्यों छूटै? ममता तू न गई मेरे मन से….
करुणा, दया, ममता, मन ल सुध करथे… सब संसार वोकर घर……. सब मनखे भाई बांध ऐ… बहिनी बेटी सब्बे दाई माई….।
सिया राम मय सब जग जानी करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी
“स्वास्थ्य में गिरथे त नुनचूर गिर फूल ए….परमार्थ में गिरथे त वो हर गजल बन जाथे”
अथाह सागर के पानी गरमत रहिथे फेर वोकर ले पियास नै बुताय वो त नानकन तराई तलाव के पानी ले अगाथे विश्नहे तुलसी बाबा 438 शल्लर पहिली रामायण अढ़ाई शल्लर म लिख डारिस तूं अजर हे अमर हे, कतका पापी मनखे तरत हे.. तुलसी बाबा रामायण लिखे बर 266 पोथी पढ़े रहिस वोकर पहिली सब रिसिमन रामायण लिख डारे रहिन 46 रामायण लिख डारे रहिन……. फेर रामायण आज देस देस म मन ल भरोसा आस बिस्वास देवाथे भगवान के किरपा बारथे…
तुलसी बबा के सुरता तुलसी मंजरी साही मम्हाथे…. गमगमाथे…