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July 1, 2025 4:17 pm

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पर्यटन स्थलो पर पर्यावरण का महत्व विषय पर संगोष्ठी

मनेन्द्रगढ़(प्रशांत तिवारी)

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रिटायर्ड महाप्रबंधक रेलवे भानु प्रकाश सिंह मुख्य अतिथि

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पृथ्वी के निर्माता एवं नियंता ने पृथ्वी पर रहने वाले मानव सहित समस्त चराचर जीव जंतुओं के जीवन की आवश्यकता के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए हैं. इसके बावजूद आवश्यकता से अधिक दोहन कर पर्यावरण बिगाड़ने और पृथ्वी को नष्ट करने के लिए हम स्वयं दोषी है. इसे संवारने के लिए हम सभी को आगे आना होगा अन्यथा पृथ्वी को नष्ट होने में समय नहीं लगेगा.

उक्ताशय के विचार विश्व पर्यावरण सप्ताह पर आयोजित संगोष्ठी में रिटायर्ड महाप्रबंधक रेलवे भानु प्रकाश सिंह ने मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किए। उन्होंने पर्यटन स्थलों पर बढ़ते प्रदूषण का उदाहरण देते हुए कहा कि एक दशक पहले तक आध्यात्मिक तीर्थ मानसरोवर यात्रा में कई स्थानों पर मानव मल के कारण रुमाल मुंह में बांधकर गुजरना पड़ता था. यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है जो चिंतनीय पक्ष है. इन सब के निवारण तथा स्वच्छ पर्यटन के लिए हमें गंभीरता से चिंतन करना होगा.
नगर पालिका के सुरभि पार्क मनेन्द्रगढ़ में संध्या 5:30 बजे से संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान मनेन्द्रगढ़ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस सप्ताह के अवसर पर
“पर्यटन स्थलों पर पर्यावरण का महत्व” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम संचालक गौरव अग्रवाल ने आयोजन की पृष्ठभूमि रखते हुए पर्यटन स्थलों पर बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण पर चिंतन व्यक्त किया और पर्यटन एवं पर्यावरण चिंतक बीरेंद्र श्रीवास्तव को अपना पक्ष रखने के लिए आमंत्रित किया.
बीरेन्द्र श्रीवास्तव ने अपने चिंतन में कहा कि इस विशाल ब्रह्मांड में पृथ्वी की उपस्थिति एक रेत के कण से भी छोटी है. अब तक की जानकारी के अनुसार केवल पृथ्वी पर ही जीवन उपलब्ध है. इतना जानने के बावजूद भी आभासी विकास के दौड़ में हम अपनी ही पृथ्वी को नष्ट करने पर उतारू हैं. पर्यटन स्थलों पर बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण आज समय की जरूरत है. आध्यात्मिक चिंतन पक्ष पर उन्होंने कहा कि सतयुग, त्रेता और द्वापर के बाद कलयुग के इस चरण में क्या हम पृथ्वी को समाप्त करने में स्वयं को शामिल कर रहे हैं. यह बेहद चिंता का विषय है जिसके समाधान के लिए हमें एकत्रित होकर प्रयास करना होगा.
लगभग 5000 किलोमीटर की अब तक साइकिल यात्रा कर चुके पर्यावरण सचेतक पर्यामित्र सतीश द्विवेदी ने कहा कि पर्यटन स्थलों पर आपके द्वारा फेंके गए सिंगल उपयोग पन्नी एवं प्लास्टिक रेत में दबकर बहते पानी को भी प्रदूषित कर रहे है. अब तो पीने वाले पानी में भी प्लास्टिक के बारीक कण हमारे घरों तक आने लगे हैं. इसी तरह यहां वहां बिखरे प्लास्टिक गर्मी के दिनों में गर्म होकर दुनिया की सबसे जहरीली फास्फीन गैस बुलबुले के रूप में पैदा करती है. इसलिए जरूरी है कि हम पर्यटन स्थलों पर इसका उपयोग ना करें. यदि कही फैली पन्नी दिखाई दे, तब इसके निस्तारण हेतु सहयोग करें. हमारे इस प्रयास से पर्यटन स्थलों को साफ सुथरा रखा जा सकेगा.
अधिवक्ता कल्याण केसरी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी धार्मिक आस्थाओं में पीपल, बरगद, नीम, जैसे पेड़ों की पूजा पाठ का विधान हमारे ऋषि मुनियों ने इसीलिए किया था कि पेड़ों को नष्ट होने से बचाया जा सके. हमें संकल्प लेना होगा कि अपने पर्यटन स्थलों का पर्यावरण हम नष्ट नहीं होने देंगे.
साहित्यकार संतोष जैन एवं साहित्यकार विजय गुप्ता ने कहा कि पर्यटन स्थलों पर बिखरने वाले प्लास्टिक पन्नी को निस्तारण स्थल तक पहुंचाना और उसे वहां फैलने से रोकने में मदद करने का संकल्प आज की आवश्यकता है. यदि हम ऐसा कर पाएंगे तभी पर्यटन स्थल स्वच्छ रहेंगे.
कार्यक्रम के दूसरे चरण में पर्यावरण चिंतन पर श्रेष्ठ कविताओं की प्रस्तुति में साहित्यकार श्याम सुन्दर निगम ने कहा कि विकास की अंधी दौड़ में हम स्वयं के विनाश का ताना-बाना बुन रहे हैं. समय रहते सचेत होना आज की आवश्यकता है. अपनी कविता प्रस्तुति मे उन्होंने कहा-

जंगल में अब पेड़ कहां है, छाई रहती वीरानी
हवा नहीं है दूर-दूर तक, सूखा नदियों का पानी

साहित्यकार राजेश जैन, “राजा बुंदेला” ने अपने गीत पानी की प्रस्तुति से उपस्थित श्रोताओं की जबरदस्त तालियां बटोरी.–

जिसे अब तक न समझ सके, वह कहानी हूं मैं
मुझे बर्बाद मत करो जीवन हूँ, पानी हूँ मै कार्यक्रम का समापन संबोधन संस्थान के उपाध्यक्ष श्री हारून मेमन के अध्यक्ष उद्बोधन एवं आभार प्रदर्शन से हुआ देर शाम तक चलते इस कार्यक्रम में साहित्यकार संतोष जैन, हारून मेमन, डॉ. निशांत श्रीवास्तव, राजेश जैन, बीरेंन्द्र श्रीवास्तव, पुष्कर तिवारी, श्याम सुंदर निगम, गौरव अग्रवाल, सतीश द्विवेदी, प्रमोद बंसल, कल्याण केसरी,परमेश्वर सिंह, भानु प्रकाश सिंह, विजय गुप्ता सहित पत्रकार राजेश सिन्हा एवं संभ्रांत नागरिकों की उपस्थिति ने कार्यक्रम को उँचाइयाँ प्रदान की.

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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