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July 7, 2025 6:13 am

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कानाफूसी

मान्यता के नाम पर ये कैसा खिलवाड़


राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद एनएमसी में शामिल उन चिकित्सकों और स्टाफ की अमर्यादित व्यवहार ने एक बड़ा सवाल खड़ा करा दिया है। क्या भावी पीढ़ी जो चिकित्सा जैसे पेशे को अपनाकर सेवाभाव से काम करना चाहते हैं उनकी सेवाभावी प्रवृति और दृढ़ता को एनएमसी में शामिल कुछ दागदार चिकित्सक और स्टाफ खंडित करना चाहते हैं, या फिर ये तो नहीं कि चिकित्सा महाविद्यालय में अध्ययन अध्यापन के लिए जो मापदंड होने चाहिए उसे लालच के कारण खंडित करना चाहते हैं। एनएमसी की कोशिशें तो यही रहती है कि मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाले भावी चिकित्सकों के लिए वो तमाम सुविधाएं हो जिसका उपयोग कर अच्छा चिकित्सक बनकर देश और समाज के सामने आए। इसीलिए तो मापदंडों पर कड़ाई की जाती है। नियमों में ढिलाई की गुंजाइश नहीं छोड़ते। पर यह क्या। चंद रुपये या फिर करोड़ों कमाने के लालच में एनएमसी में शामिल भ्रष्ट चिकित्सक व स्टाफ पूरी व्यवस्था को घुन की तरह चाटने में लगे हैं। वो तो भला हो सीबीआई का जिसने गोरखधंधे और संगठित अपराध से पर्दा उठा दिया है।

65 करोड़ का आसामी पूर्व मिनिस्टर लखमा


कोंटा के विधायक और देखने और सुनने में विशुद्ध आदिवासी नेता कवासी लखमा के साथ खेल हो गया या फिर वे खुद खेल में शामिल हो गए। राज्य की जांच एजेंसियों ने जैसा दावा किया है और आरोप पत्र कोर्ट में पेश किया गया है उससे तो यही लगता है कि पूर्व मिनिस्टर शराब घोटाले के बड़े खेल में बैटिंग कर रहे थे। संगठित गिरोह में यकायक शामिल हुए या फिर पहले से ही टीम का हिस्सा बन गए थे,ये तो वही जाने। दो हजार करोड़ से अधिक के शराब घोटाले में जैसी उनकी संलिप्तता सामने आई है इससे आदिवासी नेता को लेकर बस्तर से लेकर समूचे छत्तीसगढ़ में अलग धारणा बनती जा रही है। यह धारण क्यों बनी और आगे क्या होगा, ये तो छत्तीसगढ़ की जनता ही तय करेगी। जांच एजेंसियों के दावों पर गौर करें तो बस्तर से लेकर छत्तीसगढ़ में तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि कवासी भी ऐसे ही निकल जाएंगे। ऐसे का मतलब आप भी समझ रहे हैं और सोच भी रहे होंगे। कहावत भी है ना पैसे की चमक और लालच अच्छे अच्छों को कुछ भी करने के लिए मजबूर कर देता है।

दाद देनी होगी, पुलिस कप्तान की


अब तक आपने और हमने यही सुना और लिखा था कि नौकरी के नाम पर या फिर किसी और काम के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ पुलिस से लेकर कोर्ट बड़ी कार्रवाई करती है। कुछ महीने पहले हाई कोर्ट में नौकरी के नाम पर लाखों की ठगी का मामला पहुंचा। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि आखिर लोग दूसरों को रिश्वत ही क्यों देते हैं। ऐसा कर रिश्वतखोरी को बढ़ावा देने का काम ही तो हो रहा है। फिर कोर्ट ने सरकुलर जारी कर दिया। नौकरी के नाम पर रिश्वत देने और लेने वाला दोनों ही दोषी करार दिए जाएंगे और सीधी कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने तकरीबन दो महीने पहले यह आदेश जारी किया था। इस बीच समूचे छत्तीसगढ़ से दर्जनों शिकायतें पुलिस में आई। पुलिस ने शिकायत ली या फिर एफआईआर दर्ज कर लिया। कहते हैं ना काम करने की ललक हो तो बहानेबाजी को जगह नहीं मिल पाती। काम होकर ही रहता है। ऐसे ही हुआ,बिलासपुर जिले में। नौकरी लगाने के नाम पर 42 लाख रुपये की ठगी का मामला सामने आया। तखतपुर थाने में शिकायत की गई। एसएसपी रजनेश सिंह ने इस बार ऐसा कुछ किया कि छत्तीसगढ़ में इस बात की चर्चा होने लगी। रिश्वत देने और लेने वाले के खिलाफ सीधे एफआईआर। काम हो तो ऐसा। एसएसपी ने कुछ ऐसा किया कि छत्तीसगढ़ में इसकी चर्चा होने लगी है।

सरगुजा और रायपुर में गरमाएगी सियासत


सरगुजा और रायपुर में जल्द ही बड़ा सियासी शो होने वाला है। दोनों में खास अंतर भी है। सरगुजा में क्लोज डोर मीटिंग और रायपुर में ओपन डोर मीटिंग। सरगुजा में चुनिंदा भाजपाई नेता शामिल होंगे तो रायपुर में प्रदेशभर से कांग्रेस के अलावा आम लोगों का जुड़ाव देखने को मिलेगा। दोनों ही मीटिंग का अपना खास मायने है। सरगुजा में भाजपा के दिग्गज नेता चिंतन शिविर में शामिल होंगे। दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ के चुनिंदा नेता जो सत्ता व संगठन में अपनी पहचान रखते हैं,उनकी मौजूदगी रहेगी। क्लोज डाेर मीटिंग में पार्टी के दिग्गज रणनीति बनाएंगे। रायपुर में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे आएंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष के कद के अनुसार भीड़ जुटाने की तैयारी में कांग्रेसी दिग्गज लगे हुए हैं। तय मानकर चलिए कांग्रेस की ओपन डोर मीटिंग में राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेसी दिग्गज अपनी भड़ास निकालेंगे।

अटकलबाजी

एक दिन पहले कांग्रेस ने मंगला के पाठ बाबा रेत घाट पर जल सत्याग्रह किया। जिले के कांग्रेसी दिग्गज सत्याग्रह में शामिल भी हुए। ऐसे कौन-कौन रेत माफिया हैं जो सत्याग्रह में बेमन से शामिल हुए। कितने ऐसे हैं जो मौके पर नहीं पहुंचे पर, पल-पल का फीडबैक लेते रहे।

कांग्रेस शासनकाल में मंत्रियों के बर्थडे या जिले के प्रवास के दौरान अखबारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में विज्ञापन देने वालों की खोजबीन शुरू हो गई है। आय के स्रोत को लेकर जानकारी जुटाई जा रही है। विज्ञापनों के लिए भारी भरकम राशि जुटाई कैसे और किसने बैकडोर मदद किया।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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