क्या कहते हैं डॉ अभय शर्मा और सिम्स के डॉक्टर वैभव उपाध्याय
शायद यही कारण है कि बिलासपुर के एसएसपी को चेतना अभियान चलाना पड़ा जो बच्चों में काफ़ी लोकप्रिय हुआ
बिलासपुर। एक समय था जब सुबह उठते थे तो ,सीधे मैदान जाते थे मॉर्निंग वॉक करते थे ,लेकिन आज ना वो एक्सरसाइज पार्क नज़र नहीं आता और ना ही वो चहल पहल हाँ बुजुर्ग ज़रूर दिखते हैं पार्कों में वो भी हसते हुए लाफिंग क्लब में एक दम ख़ुश उनको देख के शुकून मिलता है ।उनको देखने के बाद सोचो तो ऐसा लगता है कि वो समय कब बीत गया, जब बच्चे गलियों में खेलते, पेड़ों पर चढ़ते और कहानियों में खो जाते थे ,अब उनकी दुनिया एक चमचमाती हुई मोबाइल की स्क्रीन ने लिया मानो वही उनकी दुनिया है, इसमें गलती उन बच्चो की नहीं है जो स्मार्टफोन में अपनी जगह बना रहे हैं,गलती तो उन माँ बाप की है जो बच्चो को स्मार्ट फोन पकड़ा रहे हैं और स्वयं भी स्मार्ट फ़ोन में उलझे हुए हैं ।शायद यही कारण है कि बिलासपुर के एसएसपी को चेतना अभियान चलाना पड़ा जो बच्चों में काफ़ी लोकप्रिय भी हुआ ।

अब थोड़ा आगे चलते है एक समय में इसे तकनीक की क्रांति माना गया लेकिन अब ये तकीनिक बच्चों के बचपन का सबसे बड़ा संकट बनता जा रहा है।इसे ऐसे समझे गौर किया जाए तो आज के बच्चे न रिश्तों में रुचि दिखा रहे, न प्रकृति में। उनके दोस्त अब WhatsApp ,Instagram हैं, और खेल PUBG या Free Fire जैसे ऐप्स में सिमट चुके हैं। स्क्रीन की यह लत धीरे-धीरे उनकी आँखों की चमक और मुस्कान दोनों छीन रही है,फिर भी माँ बाप ना उनको समझा रहे हैं ना उनको इसके दुष्परिणाम बता रहे हैं क्योंकि वो स्वयं भी इसका शिकार हो चुके हैं ।
अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो बड़ी ही भयावह स्थिति है मोबाइल बचपन से बंध गया है ,पहले खेलने को फुटबॉल बेट बल्ला ,गुल्ली डंडा ,कबड्डी कुश्ती सहित अन्य खेल के लिए संसाधन और सामग्री मिलती थी,आजकल मोबाइल क्योकि क्लास भी ऑन लाइन हो चुकी है ।अब ऐसे में तो बचपन की कहानी धीरे-धीरे ख़त्म होती दिख रही हैं ।
नींद और रिश्तों पर गहराता संकट
अब ये कितना भयावह है डॉक्टर बताते हैं कि लगातार स्क्रीन देखने से बच्चों की नींद प्रभावित हो रही है। नींद की कमी से चिड़चिड़ापन, गुस्सा और थकावट बढ़ रही है। सबसे बड़ी बात बच्चे अब अपनों से कटते जा रहे हैं। माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त सभी अब उनके स्क्रीन टाइम के शिकार हो चुके हैं।
डाक्टरों की चेतावनी ,संकेत से पहचानें लत के लक्षण
बच्चे बार-बार मोबाइल चेक करते हैं पढ़ाई और नींद में बाधा आती है बिना फोन के बेचैनी, गुस्सा और मन नहीं लगना किसी काम में चिड़चिड़ापन सहित कई परेशानियाँ उनको महसूस होने लगी है।
क्या कहते हैं डॉ अभय शर्मा और सिम्स के डॉक्टर वैभव उपाध्याय
डॉ के अनुसार बच्चों को मोबाइल से दूर रखना माता पिता की एक ज़िम्मेदारी ही नहीं है, बल्कि बच्चो को माता पिता मोबाइल का उपयोग सीमित करने की सलाह दे और रात के अंधेरे में मोबाइल का इस्तेमाल बिल्कुल न करने दें। स्क्रीन की ब्राइटनेस कम रखें और लगातार देखने से बचाएं। थोड़े-थोड़े अंतराल में मोबाइल का उपयोग हो तो बेहतर है। इससे बच्चों की आंखें भी सुरक्षित रहेंगी और मन भी स्वस्थ रहेगा।
अब समाधान क्या

बच्चों को प्रकृति से जोड़ें बाहर की एक्टिविटी को बढ़ावा दें परिवार के साथ समय बिताने के साथ साथ सुबह मॉर्निंग वॉक पर उन्हें लेकर जाए और मोबाइल के लिए एक समय आदत में डालें और तय करे कि मोबाइल के लिए कुछ घंटों की समय सीमा तय करें ।
जो बोयेगे वही वही कल उगेगा

इतनी समस्याओं के बाद भी अगर हम आज अपने बच्चों को मोबाइल की लत से नहीं बचा पाए, तो कल उनका बचपन हमारे हाथों से फिसल जाएगा।इसलिए जरूरी है हम सब मिलकर बच्चों के बचपन को बचाए ।

प्रधान संपादक