बिलासपुर; गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय को एक और बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय द्वारा दायर पुनर्विलोकन (रिव्यू) याचिका को खारिज कर दिया, जिससे तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के 109 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की जीत पर मुहर लग गई। 26 अगस्त 2008 को गुरु घासीदास विश्वविद्यालय ने 109 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित किया था। लेकिन 15 जनवरी 2009 को विश्वविद्यालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद मार्च 2009 से बिना किसी आधिकारिक आदेश के इन कर्मचारियों को फिर से दैनिक वेतन भोगी की श्रेणी में डाल दिया गया।
इसके खिलाफ कर्मचारियों ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। जब मामला लंबित था, तब 19 फरवरी 2010 को विश्वविद्यालय ने आदेश जारी कर 22 सितंबर 2008 से सभी कर्मचारियों की नियमित नियुक्ति को रद्द कर दिया। कर्मचारियों ने इस आदेश को भी उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

6 मार्च 2023 को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रजनी दुबे की एकल पीठ ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने विश्वविद्यालय के 19 फरवरी 2010 के आदेश को रद्द करते हुए, सभी कर्मचारियों को 26 अगस्त 2008 से नियमित मानकर सभी लाभ देने का निर्देश दिया। लेकिन, विश्वविद्यालय ने इस फैसले को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच में चुनौती दी, जिसे मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति राकेश मोहन पाण्डेय ने खारिज कर दिया। इसके बाद विश्वविद्यालय ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2024 को इसे भी खारिज कर दिया।
इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने फिर से रिव्यू पिटीशन दायर कर मामले को पुनः खोलने की कोशिश की, जिसे 12 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से खारिज कर दिया।
न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं कर रहा विश्वविद्यालय, मिला अवमानना नोटिस-
कर्मचारियों ने न्यायालय के आदेशों के पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर की। इस पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय के कुलपति आलोक चक्रवाल, रजिस्ट्रार ए.एस. रणदीवे और सचिव संजय कुमार को नोटिस जारी किया है। हालांकि, न्यायालय के आदेशों को दरकिनार करते हुए विश्वविद्यालय ने 27 नवंबर 2024 को सीधी भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया, जबकि इन्हीं पदों पर कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाना था।
कई कर्मचारियों पर गंभीर आर्थिक संकट-
न्यायालय से कई बार फैसला कर्मचारियों के पक्ष में आने के बावजूद उन्हें अब तक उनका हक नहीं मिला। कई कर्मचारी रिटायरमेंट की उम्र पार कर चुके हैं, कुछ गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और कुछ की मृत्यु भी हो चुकी है। इसके बावजूद कुलपति और रजिस्ट्रार न्यायालय के आदेशों का पालन करने के बजाय टालमटोल कर रहे हैं।

Author: Ravi Shukla
Editor in chief