बिलासपुर। नवीन शासकीय महाविद्यालय सकरी ने वीर बालक जोरावरसिंह और फतेहसिंह की बलिदानी को कारुणिक शहादत दिवस के रूप में मनाया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ पी डी महंत ने कहा” गुरु गोविंदसिंह का शौर्य तथा गुरुनानक सिंह की अमृत वाणी संत कबीर की वाणी से मिलते जुलते हैं,लोगों के जीवन में “सत्य”से पीछे किसी भी हालात में न हटने की प्रेरणा देते हैं,आज अमृतसर,दिल्ली और जितने भी गुरुद्वारा सिक्खों के बने हैं वहां जाकर सेवा,समर्पण की भावना को मानव सेवा का उत्कृष्ट प्रेरणास्पद स्थान कहा जा सकता है,भूखे को भोजन और प्यासे को पानी,सेवा दान में तो यह धर्म इतना आगे है कि भारत के राष्ट्रपति महामहिम गुरु ज्ञानि जैलसिंह जी ने तो स्वर्ण मंदिर अमृतसर में जूते रखने की सेवा दी थी,हजारों लाखों लोग सेवा के लिए स्व प्रेरणा से आगे आते हैं,ऐसे में गुरु गोविंदसिंह के 4रो बेटों ने इस्लाम धर्म को कतई नहीं स्वीकार किया,और तो और जब 6वर्ष के नन्हा बालक जोरावर सिंह और उनसे थोड़ा बड़े 9वर्षीय वीर बालक फतेहसिंह ने जब इस्लाम स्वीकार नहीं किया तो उन्हें अपनी बलिदानी देनी पड़ी,।”
सिक्खों की सेवा ,समर्पण, त्याग की कहानी सुनाते हुवे डॉ विद्याचरण शुक्ल ने कहा कि स्वर्ण मंदिर दर्शन से मुझे जीवन में एक नई दिशा मिली जिसे मैं आज भी नहीं भूल सकता,वीर बालकों की शहादत को प्रणाम करता हूं। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ रूबी मिल्होत्रा ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में यह कहा” जब मुस्लिम धर्म मनवाने उन दो अबोध बालकों जोरावर सिंह और फतेह सिंह से बार बार जोर दिया गया और इस्लाम धर्म नहीं कबूलने पर मारे जाओगे तब उन दोनों बालकों ने पूरी हिम्मत से जवाब देते हुवे कहा”हम तो ऐसे भी मारे जाएंगे,वैसे भी मारे जाएंगे,इससे अच्छा होगा हम सिक्ख धर्म के लिए बलिदानी देना कबूल करेंगे और हम अपने धर्म की रक्षा करेंगे,।”धन्य है उन बालकों की बलिदानी,शौर्य की पराकाष्ठा को मेरा प्रणाम है।
कार्यक्रम का सफल संचालन श्री मती चित्र रेखा श्रीवास ने किया,महाविद्यालय के अधिकारी कर्मचारी तथा छात्र/छात्राएं उपस्थित हुवे। यह कार्यक्रम 26दिसंबर को किया जाना था पर शीतकालीन अवकाश को ध्यान में रखकर शासन के निर्देश के अनुसार किया गया।