लिस्ट अटकी, एक सीपीएस के तबादले ने पूरे सिस्टम को उलझाया
रायपुर। विधानसभा के मानसून सत्र के पहले से ही इस बात की चर्चा सत्ता के गलियारे में तेजी के साथ उड़ी थी कि कभी भी और किसी भी समय आईपीएस की ट्रांसफर लिस्ट जारी हो सकती है। इसमें सीनियर से लेकर जूनियर आईपीएस के नाम की भी चर्चा हो रही थी। पुलिसिंग को और मजबूत करने के लिए रेंज आईजी से लेकर सात से आठ जिलों के एसपी को भी बदलने की चर्चा जोर पकड़ रही थी। पुलिस मुख्यालय से लेकर सत्ता के गलियारे में इस बात की चर्चा भी जोर शोर से छिड़ी हुई है कि कांग्रेस शासनकाल में पावरफूल रहे एक सीपीएस को एडजस्ट करने ना करने के फेर में पूरा सिस्टम उलझ गया है।
राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में चल रहे तबादलों के दौर से पहले ही आईपीएस अफसरों की बड़ी लिस्ट निकलने की चर्चा हो रही है। रेंज के आईजी और सात से आठ जिलों के एसपी भी ट्रांसफर लिस्ट का इंतजार कर रहे हैं। पीएचक्यू से मंत्रालय तक अपनी पसंद नापसंद के जिलों को भी बता आए हैं। जिन जिलों के एसपी तबादले के इच्छुक हैं उनकी नजरें पीएचक्यू की ओर लगी हुई है। तबादले को लेकर अपडेट भी ले रहे हैं। अपडेट के बीच एक खबर आने लगी है कि कांग्रेस शासनकाल के दौरान सरकार के बेहद करीबी व भरोसेमंद सीपीएस को लेकर पेंच फंस रहा है।सत्ता के गलियारे में दखलदंजी रखने वाले और गृहमंत्री के करीबी सीपीएस को लूप लाइन में भेजना चाहते हैं। उनकी मनमर्जी चल नहीं पा रही है। पीएचक्यू और सत्ता के बीच जिस तरह पालिटिकल पालिसी बन रही है और सियासत चल रही है, चर्चा है कि उक्त अफसर ने समीकरण भी तलाश लिए हैं और नई सरकार के करीबी अफसरों के बीच एडजस्ट होने की चर्चा भी हो रही है। ऐसे में तबादला और वह भी लूप लाइन में, फिलहाल संभव दिखाई नहीं दे रहा है। पीएचक्यू में इस बात को लेकर कयास भी लगाए जा रहे हैं कि कैसे एक सीपीएस के चलते पूरा सिस्टम उलझ गया है। बहरहाल इसी उलझन में तबादला लिस्ट भी फाइनल नहीं हो पा रहा है।
पीएचक्यू और गृह मंत्रालय ने रेंज आईजी के अलावा आठ जिलों के एसपी के सााथ ही 20 एडिशनल एसपी और तकरीबन 65 डीएसपी के तबादले की लिस्ट तो तैयार कर ली है, पर सिस्टम ऐसे उलझ गया है कि लिस्ट फाइनल ही नहीं हो पा रही है।
गृह विभाग से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सुकमा में पदस्थ एक सीपीएस अधिकारी जिन्हें कका के खास माने जाने वाले अधिकारी के रूप में देखा जाता है को बालोद या नारायणपुर बटालियन भेजने की कोशिश चल रही थी। मगर इस प्रस्ताव पर गृह सचिव और PHQ के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच मतभेद उभर आए, जिसके चलते पूरे तबादला प्रस्ताव पर ब्रेक लग गया।
तालमेल की कमी आ रही आड़े
सीनियर आईपीएस और सत्ता से जुड़े लोगों के बीच तालमेल की कमी साफतौर पर दिखाई दे रही है। खटराल अफसर सिस्टम में किसी भी तरह के हस्तक्षेप को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि बीते तीन महीने से फाइल पीएचक्यू से होम मिनिस्टरी के बीच घूम रही है। राज्य में पुलिस प्रशासन की रीढ़ कहे जाने वाले PHQ और गृह विभाग के बीच पिछले तीन महीने से फंसी हुई तबादला लिस्ट ने न केवल अफसरशाही में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है, बल्कि फील्ड लेवल पर पुलिसिंग को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।
पोलिसिंग हो गई डिरेल
वरिष्ठ आईपीएस अफसरों के बीच तालमेल की कमी और आपस में टकराहट का नतीजा ये हो रहा है ।मौजूदा हालात में पुलिसिंग पूरी तरह डिरेल हो गई है। साइबर क्राइम संगठित गिरोह और अंतरराज्यीय तस्करी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर कार्रवाई की बजाय फोर्स को देसी शराब पकड़ने महुआ जब्त करने और गायों के गले में रेडियम लगाने जैसे प्रायोरिटी वर्क में लगा दिया गया है।
अब सवाल ये उठता हैं कि राज्य पुलिस में जब तक स्थायित्व पारदर्शिता और टॉप लेवल से स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं आएंगे तब तक सिस्टम की जड़ता बनी रहेगी। और इसका खामियाजा भुगतना होगा आम जनता को जो सुरक्षा और कानून व्यवस्था की उम्मीद पुलिस मुख्यालय और सरकार से लगाए बैठी है।

प्रधान संपादक