बिलासपुर: हाई कोर्ट ने एक बार फिर से दोहराया है कि किसी भी दस्तावेज से जुड़ी द्वितीयक साक्ष्य तभी स्वीकार की जा सकती है, जब यह स्पष्ट रूप से सिद्ध किया जाए कि मूल दस्तावेज खो गया, नष्ट हो गया या फिर जानबूझकर उस व्यक्ति द्वारा रोका गया, जिसके खिलाफ उसे प्रस्तुत किया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई में की, जिसमें याचिकाकर्ता पर आइपीसी की धारा 376 और 417 के तहत आरोप लगाए गए थे।
शिकायतकर्ता (महिला) ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने झूठा विवाह का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए और बाद में विवाह से इंकार कर दिया। प्राथमिकी दर्ज हुई और याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दायर कर ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय किए।
पीड़िता ने जिरह के दौरान एक इकरारनामा (फोटोकापी) कोर्ट में प्रस्तुत किया। ट्रायल कोर्ट ने उसे प्रदर्श के रूप में स्वीकार कर लिया। याचिकाकर्ता ने आपत्ति जताई कि, यह दस्तावेज न तो जांच के दौरान पेश किया गया, न ही सीआरपीसी की धारा 161 या 164 के तहत दिए गए बयानों में इसका उल्लेख था और न ही कोई पूर्व सूचना या आवेदन दिया गया कि इसे रिकार्ड पर लिया जाएगा।

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