बिलासपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के विदेश प्रवास से पहले छत्तीसगढ़ को इस बार तीन नए मंत्री मिलेंगे। दिल्ली ने अपनी हां कर दी है। अब कोई रुकावट नहीं है। सीएम के राजभवन पहुंचने और राज्यपाल से मुलाकात के बाद तो यह तय माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। पर यह क्या,एक बार फिर रुकावट आ गई है। सियासी गलियारे में चर्चा इस बात की होने लगी है कि जिस तरह का प्रयोग मंत्रिमंडल विस्तार में करने के संकेत मिल रहे थे उससे तो सत्ताधारी दल में विरोध के स्वर बुलंद होने के साथ ही असंतोष पनपने का सियासी खतरा भी देखा जा रहा था। विस्तार टलने के पीछे एक नहीं कई कारण समाने आने लगे हैं।
भाजपा और आरएसएस की राजनीति को करीब से देखने और सुनने वालों को राज्य की सत्ता में वापसी करने के बाद की भाजपा और उसकी रीति-नीति समझ नहीं पा रहे हैं। मंत्रिमंडल के गठन में जो चेहरे सामने आए, उसे लेकर तो किसी को ना तो यकीन था और ना ही यकीन कर रहे थे। पुराने चेहरों को एक झटके में सत्ता के गलियारे से बाहर करना और नए चेहरों को सामने लाने के पीछे दिल्ली और स्थानीय संगठन के पदाधिकारियों और रणनीतिकारों की मंशा चाहे जो हो प्रतिबद्ध मतदाताओं से लेकर समर्थकों को यह सब अचरज में डालने वाला निर्णय लगा था। मंत्रिमंडल गठन के दौरान दिल्ली ने रणनीतिकतौर पर दो पदों को खाली रखा। खाली रखने के पीछे सीनियर से लेकर पहली मर्तबे जीतकर आए एमएलए को यह संदेश देना था कि आने वाले समय में कुर्सी किसी को मिल सकती है। इस बीच स्थानीय निकाय से लेकर पंचायत के चुनाव हो गए। कुर्सी किसी को नहीं मिलनी थी सो खाली ही रह गई। या यूं कहें कि जानबुझकर खाली रखा गया। दिल्ली के इशारे से राज्य की सत्ता से लेकर संगठन चल रहा है तो ऐसी कौन सी सियासी विवशता है कि दिल्ली भी मंत्रिमंडल विस्तार को टालते ही जा रही है। शुरुआती दौर में जब किसी की नहीं सुनी और अपनी चलाई तो अब तो सरकार चल रही है। किसकी नाराजगी को तव्वजो देने का काम हो रहा है। यह सब आम जनमानस के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। दिल्ली की यह रणनीति अब आम लोगों के बीच बहस का मुद्दा बनते जा रहा है। यह तीसरी बार है जब साय मंत्रिमंडल का विस्तार को टाला जा रहा है। विस्तार को टालने के पहले ही यह खबरें फैल जाती है या फिर फैला दी जाती है कि फलां विधायक को लेकर भारी विरोध हो रहा है। विरोध को ऐसे फैलाया जाता है कि संबंधित विधायक को मंत्री बनाने से पार्टी के भीतर भूचाल आ जाएगा। कभी किसी विधायक तो कभी किसी विधायक के नाम को आगे रखकर विस्तार को ठंडे बस्ते में डालने का काम किया जा रहा है। सत्ता और संगठन से जुड़े दिग्गजों की माने तो सबकुछ दिल्ली पर निर्भर है। दिल्ली में किसके नाम पर उसी लेबल पर बात अटक जा रही है ये तो दिल्ली वाले ही जाने। बहरहाल पार्टी के भीतर जो कुछ चल रहा है और जो हो रहा है,आम कार्यकर्ता भी अवाक है कि आखिर शीर्ष रणनीतिकार चाहते क्या हैं। अब तो इस बात की भी चर्चा शुरू हो गई है कि तीन मंत्री की कुर्सी कहीं विधानसभा चुनाव तक खाली ना रह जाए। अगर ऐसा हुआ तो भी अचरज की बात नहीं होनी चाहिए। मौजूदा छत्तीसगढ़ भाजपा में कुछ भी हो सकता है। यह इसलिए कहा जा रहा है कि विस्तार को लेकर जिन नामों की दावेदारी सामने आ रही थी, वे तो पार्टी संगठन के खांचे में फीट बैठ ही नहीं रहे थे। निष्ठावान और कर्मठ कार्यकर्ताओं की पार्टी माने जाने वाली भाजपा में दलबदलुओं को मंत्री बनाने और इसी लाइन के नेताओं को संगठन में जगह देकर रणनीतिकारों ने उन कार्यकर्ताओं और परिवार को सोचने पर विवश कर दिया है जिनकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी पार्टी के प्रति समर्पण का पाठ अब भी पढ़ रहे हैं।

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