किसकी चली ओर किसकी नहीं चल पाई
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव की नई टीम तैयार हो गई है। 47 मेंबरों की टीम। पूरी तरह नई और एकदम अलग। टीम में जिन नामों को शामिल किया गया है उसे देखकर तो यही लग रहा है कि प्रदेश भाजपा की फ्रेश और फ्रेशरों की टीम है। कुछ चेहरों को अपवाद स्वरुप छोड़ दें तो पूरी टीम एकदम नई। कहा तो यह भी जा रहा है कि गुटीय राजनीति में भरोसा रखने वालों को दूर कर दिया है या फिर पार्टी के रणनीतिकारों ने जानबूझकर दूरी बना ली है। इन नामों को ना तो बताने की जरुरत है और ना ही हाई लाइट करने की। आपको,हमको और सबको पता है। कौन-कौन और क्यों किनारे किए गए। यह चर्चा तो कल से ही शुरू हो गई है। जब से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर टीम किरण फ्लैश हुआ तभी से ही इस बात की चर्चा और अटकलें लगाई जा रही है। आगे की चर्चा में हम भी आपके साथ शामिल होंगे। अभी तो कयास और अटकलें ही ठीक है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा, यही सब कुछ फ्लैश बैक होगा। तब तक देखो और इंतजार करो। यह हम आपके लिए,उनके लिए जो किसी कारणवश जगह नहीं बना पाए या जगह बनने ही नहीं दी गई।
रवि का जाना तो उसी दिन तय हो गया था
पार्टी सिस्टम कहें या फिर विपक्षी दल कांग्रेस की राजनीति। या फिर दोनों भी कह सकते हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रवि भगत इन्हीं का शिकार होकर रह गए। राजनीति के जानकार और मौके पर राजनीति को हवा देने वालों की माने और भरोसा करे कि मंत्री से पंगा लेना रवि को भारी पड़ गया है। जिस दिन सोशल मीडिया में उनके गाने बजे और कांग्रेस ने अपने फेसबुक वाल पर लगाया, यह तो उसी दिन तय हो गया था कि कांग्रेस की राजनीति के रवि शिकार हो ही जाएंगे। हुआ भी यही। एक झटके में निकाल दिए गए। भाजपा में यह भी पहली बार हुआ जब फ्रंटल आर्गेनाइजेश के प्रदेश अध्यक्ष को निकाल बाहर किया गया है। यह तो पार्टी की अपनी लाइन है। रवि ने बैटिंग तो की, विपक्षी की गेंद पर चौका छक्का लगाने के बजाय ही अपने ही डी में गोल कर बैठे। चौका छक्का लगाने के फेर में हिट विकेट हुए सो अलग।
ये तो भरोसे की बात है
रक्षाबंधन का दिन था। सरकारी गाड़ी के ड्राइवर ने बाइक सवार को जोरदार टक्कर मार दी। महिला की मौके पर मौत हो गई और छह साल का मासूम जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है। भूमिका बांधने के पीछे एक ही बात, सरकारी गाड़ी वह भी एसडीएम की। जिम्मेदारी और जिम्मेदार होना तो बनता है। इलाज के लिए मदद तो करनी थी। पर ऐसा नहीं हुआ। ठोकर मारी और भाग खड़े हुए। वो तो भला हो एसएसपी का जिसने ला एंड आर्डर चलाई और सरकारी गाड़ी को पेंड्रा से सीखे खिंचवा लाया थाने। ये तो भरोसे की बात है। पीड़ित परिजन व ग्रामीणों को तब एसएसपी ने न्याय और मदद का भरोसा दिलाया था। ग्रामीणों के भरोसे पर एसएसपी खरे उतरे। मददगार जो साबित हुए। ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है, पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा। जिले के पुलिस कप्तान की ओर ग्रामीणों और परिजनों की नजरें सहसा उठ ही जा रही है।
मंत्री को लेकर फिर उड़ रही…..
वेटिंग इन मिनिस्टर कहें या फिर मंत्री बनने की कतार में खड़े एमएलए। जैसे-जैसे मंत्रिमंडल विस्तार में विलंब हो रहा है,कतार में एक नाम और जुड़ जा रहा है। या यूं कहें कि लोग अपने तरीके से एक नाम और धीरे से जोड़ दे रहे हैं। अब तो उत्तर छत्तीसगढ़ की ओर से हवा बहने लगी है। अग्रवाल के बदले अग्रवाल। पर कौन और कहां के। यही तो समझ में नहीं आ रहा है और सत्ता के गलियारे से जुड़े लोग समझने नहीं दे रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार से तिलस्म से कम नहीं है। पता नहीं दिल्ली कब राजी होगा और कतार में खड़े एमएलए को कब कुर्सी नसीब होगी। ये तो वक्त वक्त की बात है। एक वह भी जमाना था जब अपनी मर्जी से कुर्सी पर बैठे और मर्जी नहीं तो कुर्सी को सरका भी दी। वक्त बदल गया है जनाब। सरकाने की बात छोड़िए , नजदीक आते ही दिखाई नहीं दे रही है।
अटकलबाजी
सीएम हाउस में कार्यकर्ता सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था। समारोह के दौरान विधायक अजय चंद्राकर को गुस्सा क्यों आ गया। किसे देखकर वे फट पड़े थे। ना गमछा लिया और ना ही मोमेंटो। किसे देखकर वे बिफर पड़े थे।
टीम किरण सिंह देव में अपनों को एडजस्ट कराने में एक विधायक सफल रहे। कद भी बढ़ा और नाम भी। सियासत के गलियारे में सवाल उठ रहा है, नेताजी को क्यों और किसकी वजह से सियासी वेटेज मिला।

प्रधान संपादक

