हाई कोर्ट ने कलेक्टर और राजस्व मंडल के आदेश किए निरस्त, 60 दिन में अनुमति देने के निर्देश
बिलासपुर।अपनी ही जमीन को बेचने के लिए 14 साल से संघर्ष कर रहे महासमुंद जिले के बुजुर्ग दंपती को आखिरकार हाई कोर्ट से न्याय मिल गया है। अदालत ने कलेक्टर और राजस्व मंडल द्वारा पारित पुराने आदेशों को निरस्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को उनकी भूमि बेचने की अनुमति 60 दिनों के भीतर दी जाए।
महासमुंद जिले के ग्राम बागबहरा निवासी ईश्वरलाल अग्रवाल और उनकी पत्नी शंकुतला अग्रवाल (उम्र लगभग 64 वर्ष) को खसरा नंबर 1492 (अब 760, 773/1, 770, 774/2, 774/3, 773/2, 773/3) की 0.800 हेक्टेयर भूमि का पट्टा दिया गया था। यह भूमि पिछले 36 वर्षों से अपने कब्जे में रखकर उसका विधिवत उपयोग कर रहे हैं और आवश्यक भुगतान भी कर रहे हैं। दंपती ने इस जमीन को बेचने के लिए कलेक्टर महासमुंद के समक्ष आवेदन दिया था, लेकिन कलेक्टर ने छत्तीसगढ़ भूमि राजस्व संहिता, 1959 की धारा 155(7) के तहत बिना कोई स्पष्ट कारण बताए इसे अवैध कब्जा मानते हुए 4 जून 2012 को आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद कमिश्नर रायपुर और फिर राजस्व मंडल में अपील की, लेकिन दोनों जगह से राहत नहीं मिली।
कलेक्टर और राजस्व मंडल ने फिर कर दिया आवेदन खारिज-
दंपती ने 10 जुलाई 2023 को एक बार फिर कलेक्टर महासमुंद को आवेदन दिया, लेकिन यह भी खारिज कर दिया गया। राजस्व मंडल ने भी 11 सितंबर 2024 को यही निर्णय दोहराया। बार-बार ठुकराए जाने के बाद दंपती ने एडवोकेट पलाश तिवारी के माध्यम से हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की।
इस मामले में जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच ने दंपती के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि कलेक्टर और राजस्व मंडल का निर्णय उचित नहीं है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए। साथ ही कलेक्टर महासमुंद को आदेशित किया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल आवेदन पर 60 दिनों के भीतर निर्णय लेते हुए बिक्री की अनुमति प्रदान करें। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता अब वृद्ध हो चुके हैं और यह मामला वर्ष 2011 से लंबित है, अतः प्रशासन को यथासंभव सभी प्रयास करके उन्हें न्याय दिलाना चाहिए, ताकि भविष्य में उन्हें दोबारा अदालतों के चक्कर न काटने पड़ें।

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