बिलासपुर। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक अहम फैसले में अपहरण, दुष्कर्म और एट्रोसिटी एक्ट के तहत दोषी करार दिए गए युवक को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया है। अदालत ने कहा कि, पीड़िता की उम्र को लेकर पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत नहीं थे, जिसके चलते पाक्सो और अन्य धाराओं के तहत आरोप सिद्ध नहीं हो सके।
यह मामला कोरिया जिले के भुमका गांव निवासी मनप्रताप के खिलाफ दर्ज था, जिसे वर्ष 2017 में विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) ने आजीवन कारावास और अन्य सजाएं सुनाई थीं। इसके खिलाफ मनप्रताप ने क्रिमिनल अपील के तहत हाई कोर्ट के जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी।
2015 में 16 वर्षीय बताई जा रही लड़की के लापता होने पर उसके स्वजनों ने शिकायत दर्ज कराई थी। करीब तीन महीने बाद वह रायपुर के सलोरा गांव से बरामद हुई। पूछताछ में उसने बताया कि वह मनप्रताप के साथ प्रेम संबंध में थी और स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। लड़की और उसके पिता ने अदालत में इस बात को स्वीकार किया कि दोनों के बीच प्रेम संबंध थे और वह खुद अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई थी। पीड़िता की उम्र के सबूत के रूप में केवल स्कूल प्रवेश रजिस्टर पेश किया गया, जिसमें जन्मतिथि पिता के मौखिक बयान के आधार पर दर्ज थी। कोई जन्म प्रमाण पत्र, पंचायत रजिस्टर या अन्य प्रमाणिक दस्तावेज पेश नहीं किया गया। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि, केवल स्कूल रजिस्टर की प्रविष्टि प्रामाणिक साक्ष्य नहीं मानी जा सकती, जब तक उसके स्रोत की पुष्टि न हो। चूंकि अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी, इसलिए पाक्सो एक्ट की धाराएं भी लागू नहीं होतीं।
कोर्ट ने माना कि पीड़िता ने खुद स्वीकार किया कि वह युवक के साथ पांच-छह महीने रायपुर में साथ रही और उस दौरान वह खुश थी। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपित ने बलपूर्वक या धोखे से उसका शारीरिक शोषण किया। कोर्ट ने कहा कि अभियाेजन पक्ष आरोपी पर लगे गंभीर आरोपों को संदेह से परे सिद्ध नहीं कर पाया, इसलिए उसे संदेह का लाभ दिया जाता है। नतीजतन, विशेष न्यायालय द्वारा 363, 366, 376(2)(आइ), पाक्सो की धारा 3/4 और एससी/एसटी एक्ट के तहत सुनाई गई सभी सजाएं निरस्त कर दी गईं। आरोपित को कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी किया गया, उसे संपूर्ण दोषमुक्त कर दिया गया। इसके अलावा आदेश की प्रमाणित प्रति ट्रायल कोर्ट को भेजने के निर्देश दिए गए।

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