बिलासपुर छत्तीसगढ़ ।सिविल के एक मामले में की सुनवाई करते हुए जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता से नए सिरे से शपथ पत्र के साथ जवाब स्वीकार करने और गुणदोष के आधार पर मामले का फैसला करने का आदेश निचली अदालत को दिया है। याचिकाकर्ता यशोदा देवी जायसवाल ने प्रथम अतिरिक्त न्यायाधीश द्वारा 12.मार्च 2025 के आदेश को अपने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता के अलावा अग्निश्वर व अभिजीत डे ने खसरा नंबर 17/31 और 17/32 की भूमि के संबंध में स्वामित्व की घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए सिविल मुकदमा दायर किया, जिसका क्षेत्रफल क्रमशः 0.106 और 0.016 हेक्टेयर है। अग्निश्वर व अभिजीत व मां हेना डे ने अपना लिखित बयान पेश किया। याचिकाकर्ता ने अपना जवाब पेश किया। प्रमुख पक्षकार की ओर से बताया गया कि रमेश जायसवाल मुकदमे में पक्षकार नहीं है। यह भी कहा कि लिखित बयान 22.अक्टूबर 2018 को दिनेश कुमार जायसवाल द्वारा दायर किया गया था और उस समय पावर ऑफ अटॉर्नी पेश नहीं की गई थी। जवाब पर विचार करते हुए ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता यशोदा जायसवाल ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश माेहन पांडेय के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता संदीप दुबे ने कहा कि पावर ऑफ अटॉर्नी से मामले की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं आएगा और ट्रायल कोर्ट द्वारा पेश किए जाने वाले साक्ष्य के आधार पर इसकी प्रासंगिकता की जांच की जा सकती है। अधिवक्ता दुबे ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग की।
जस्टिस राकेश माेहन पांडेय ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून और वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि पूर्व में पेश किए गए दस्तावेज की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता पर ट्रायल कोर्ट द्वारा गुण-दोष के आधार पर विचार करे।
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता यशोदा जायसवाल के तर्क को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया है।हाई कोर्ट ने मामला वापस ट्रायल कोर्ट को भेज दिया है। ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया है कि याचिकाकर्ता द्वारा बनाए गए पावर आफ अटार्नी के जरिए शपथ पत्र के साथ पेश किए जाने वाले जवाब को स्वीकार कर गुण-दोष के आधार पर मामले का निराकरण करे।

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