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July 19, 2025 7:50 am

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हाई कोर्ट ने कहा-त्वरित न्याय मानव अधिकार माना जाता है, न्याय मिलने से लोगों का विश्वास बना रहता है

बिलासपुर छत्तीसगढ़ । सिविल मामलों की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि त्वरित न्याय मानव अधिकार माना जाता है। समय पर न्याय मिलने से लोगों का विश्वास बना रहता है। ऐसा अधिकार न केवल कानून द्वारा निर्मित है बल्कि एक प्राकृतिक अधिकार भी है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए बरकरार रखा है। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

नसीमा अली सहित दो अन्य ने जिला कोर्ट रायपुर द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। याचिका के अनुसार रानी दुर्गावती वार्ड क्रमांक 45, खनिज नगर, तेलीबांधा, तहसील और जिला- रायपुर (छ.ग.) में स्थित प्लॉट क्रमांक 46, 1500 वर्ग फीट के मुकदमे वाले घर को एक पंजीकृत बिक्री-विलेख के माध्यम से 03.मार्च.1994 को खरीदा गया था। वर्ष 2005 में, सकीला परिवन की शादी सलमा खातून व रजब अली के बेटे नौशाद अली से हुई थी। नौशाद अली ने बजाज फिनकॉर्प से 5 लाख रुपये का ऋण लिया और एक घर बनाया। जहां वह रह रहा है। नौशाद अली की मृत्यु के बाद, रजब अली ने अपनी पत्नी सलमा खातून के पक्ष में विलेख निष्पादित किया। इसे लेकर ट्रायल कोर्ट में मामला दायर किया था।
निचली अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता के साक्ष्य के लिए मामला 24.दिसंबर.2021 तय किया गया था और आज तक, यह पूरा नहीं हुआ है। याचिकाकर्ता ने विभिन्न तिथियों पर स्थगन की मांग की थी। सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने स्थगन आवेदन को खारिज कर दिया।


मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय के सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस पांडेय ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण आदेश में की गई टिप्पणी का हवाला दिया है। जस्टिस पांडेय ने अपने फैसले में लिखा है कि यह कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है कि त्वरित सुनवाई वादी का कानूनी अधिकार है। न्याय में देरी, जैसा कि प्रसिद्ध रूप से कहा जाता है, न्याय से वंचित करने के समान है। यदि न्याय प्रशासन की प्रक्रिया में इतना समय लगता है। हाई काेर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि याचिकाकर्ता अपने सिविल मुकदमे को आगे बढ़ाने में सतर्क नहीं थे। अवसर मिलने के बाद भी याचिकाकर्ता ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

रवि शुक्ला
रवि शुक्ला

प्रधान संपादक

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