
बिलासपुर।आईपीएस शैलेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी किताब शेकल द स्टॉर्म में धार को लेकर हिंदू मुस्लिम और जैन समुदाय के दावों के बीच नया और चौंकाने वाला खुलासा किया है। 3 फरवरी 2006 को बसंत पंचमी के दिन धार्मिक प्रथाओं का पालन करने में आई चुनौतियों का इस किताब में जिक्र किया हैं।
3 फरवरी 2006 को बसंत पंचमी और शुक्रवार था। शैलेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी किताब में लिखा है कि भोजशाला के स्वामित्व और उपयोग को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद हुआ। हिंदुओं का दावा है कि यह राजा भोज ने देवी सरस्वती के मंदिर के रूप में बनवाया है। जबकि मुसलमानों का कहना है कि वे राजा भोज के दिनों से ही इस स्थान पर नमाज अदा करते आ रहे हैं। कई बार हिंसक झड़पों पर काबू पाने पुलिस को लाठीचार्ज और गोलियां चलानी पड़ीं, जिसमें कई लोगों की मौत हुई।

लॉ एंड ऑर्डर बड़ी चुनौती उसे भी बखूबी निभाया
इंदौर आईजी रहते हुए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि बसंत पंचमी के दिन भोजशाला में धर्मिक प्रथाओं को सक्रिय रूप से कैसे संचालित किया जाए। यज्ञ को बीच में नहीं रोका जा सकता था। इसके अतिरिक्त, फूलों की पंखुड़ियों, चावल और कुमकुम के साथ जीवंत रंगोली बनाई गई जिसको हटाना एक असंभव कार्य था । इसके अलावा, नमाज के बाद पूजा फिर से शुरू करनी पड़ी, इसलिए यह स्पष्ट हो गया कि नमाज के लिए निर्धारित स्थान से देवी के तैलचित्र को हटाना संभव नहीं था। दंगों के डर से मजदूरों के परिवारों ने इंदौर के पास सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपने घर छोड़ना शुरू कर दिया।
जैन समाज ने किया गुरुकुल होने का दावा,
याचिका दायर
हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बाद अब जैन समाज ने भी धार स्थित भोजशाला पर दावा किया है। समाज की ओर से हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में उल्लेख किया है कि एएसआई ने जो खुदाई की है उसमें जैन तीर्थंकर की मूर्तियां भी निकली हैं। कालांतर में यह जैन गुरुकुल भी रहा है। विश्व जैन संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सलेक चन्द्र जैन ने यह याचिका दायर की है। याचिका में उल्लेख किया है कि जैन धर्म से संबंधित अंबिका देवी और सरस्वती देवी के अलावा जैन गुरुकुल होने के भी प्रमाण खुदाई में मिले हैं। संगठन के इंदौर शाखा के अध्यक्ष मयंक जैन ने बताया हाईकोर्ट में संभवत: 4 जुलाई काे सुनवाई हाेगी।
माओवादी, टेररिस्ट के एमपी कनेक्शन की 14 कहानियां
1857 में एक ब्रिटिश अधिकारी यह मूर्ति इंग्लैंड ले गए, जहां यह मूर्ति आज भी मौजूद है। मप्र सरकार के पूर्व डीजी रहे आईपीएस शैलेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी हाल ही में प्रकाशित बुक ‘शेकल द स्टॉर्म’ में इन बातों का जिक्र किया है। भोजशाला विवाद शुरू होने के समय वे बतौर इंदौर आईजी अपनी सेवाएं दे रहे थे। 3 फरवरी 2006 को एएसआई के आदेश के बाद जब बसंत पंचमी शुक्रवार को आई तो उस समय की चुनौतियों और शांति कायम करने के लिए आने वाली कठिनाइयों पर यह किताब लिखी है। इसमें बस्टिंग सिटी से लेकर माओवादी टेरिरिस्ट के सेंटर तक और दाऊद के मप्र कनेक्शन पर आधारित 14 कहानियों का संग्रह है।

इतिहास में यह दावे सबसे मज़बूत
धार में भोजशाला का निर्माण 1010 से 1055 ईसवी के बीच परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था। यहां हिंदू दर्शन के 6 स्कूल संचालित होते थे। इसे षठदर्शन के नाम से जाना जाता है। इनमें वैशेषिक, न्याय, सामख्या, योग, पूर्व मीमांसा और वेदांत या उत्तर मीमांसा शामिल हैं। इन स्कूलों में पढ़ने देश-विदेश से विद्वान आते थे। इसे अपने समय के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान के रूप में भी जाना जाता है। राजा भोज की मृत्यु के 200 साल तक यहां पठन-पाठन का कार्य होता रहा। राजा भोज ने यहां देवी सरस्वती (वाग्देवी) की मूर्ति स्थापित कराई थी, जो 84 कलात्मक स्तंभों पर खड़ी थी।

Author: Ravi Shukla
Editor in chief