बिलासपुर। डॉ रितेश तिवारी आयुर्वेद स्नातक है और छत्तीसगढ़ में नौकरी की पात्रता बीएल केटेगरी में रखते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में दिव्यांगजनों को जो आरक्षण दिया जा रहा है वो 1995 के अधिनियम के तहत दिया जा रहा है जिसके तहत ३ कैटेगरी में ५ प्रकार के दिव्यांगता का प्रकार है उसके आधार में चिन्हकिंत 3 कैटेगरी को ही नियुक्तियों में लाभ दिया जा रहा है। जबकि 2016 के संसद ने दिव्यांग जनों के अधिकार अधिनियम में व्यापक परिवर्तन करते हुए 17 प्रकार के कैटेगरी जिसमे बहु विकलांगता , द्वारिज्म,मानसिक विकलांगता,एसिड अटैक विकलांगता,मस्कुलर डिस्ट्रॉफी,ब्लाइंड, बौनापन सहित अनेक को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया परंतु राज्य सरकार सभी नियुक्तियों में पूर्व के अधिनियम के अनुसार सिर्फ 5 प्रकार के विकलांगता को चिन्हांकित कर लाभ 2014 से दिया जा रहा है ।
सरकार ने नए अधिनियम के तहत पदों पर आरक्षण देने की ना ही कमेटी का गठन किया ना ही चिन्हांकित किया। आयु में छूट भी नहीं दी जा रही है। रिक्त पदों को अगले वर्ष के लिए कैरी फॉरवर्ड भी नहीं किया जा रहा है , जिससे प्रदेश में संसद द्वारा दिव्यांगजनों के खिलाफ भेदभाव किया जा रहा है। जो कानून को संसद ने निरस्त कर दिया है। उसके तहत छत्तीसगढ़ सरकार नौकरियों में भर्ती कर रही है। इसके खिलाफ दोनों पैर से दिव्यांग डॉ रितेश तिवारी ने अपने अधिवक्ता संदीप दुबे ज्योति चंद्रवंशी के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

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