यही सिस्टम का बड़ा खेल है
खस्ताहाल सड़कें, एक घंटे का सफर कई घंटे का हो रहा है। बारिश के मौसम में सड़कें और भी खतरनाक और जानलेवा हो जा रही है। गड्ढों का तो पता ही नहीं चलता। सड़कों में तालाब की अनुभूति जो होती है। ऐसे में दो पहिया हो या फिर चार पहिया वाहन, दोनों ही किसी भी एंगल से कम खतरानक नहीं है। तखतपुर के ग्रामीणों ने एक अदद सड़क के लिए अगर सड़क पर उतर आए तो क्या गुनाह कर दिया। सरकार ने एक अदद सड़क ही तो मांगी थी। वह भी गड्ढों को भरने की गुजारिश। सिस्टम को देखिए। सड़कों के गड्डे तो भरे नहीं उल्टा ग्रामीणों पर ही एफआईआर दर्ज करा दिया। यह तो गजब हो गया। मुंगेली जिले के दो-दो मिनिस्टर होने के कारण सिस्टम कबाड़ हो गया। सड़कें बनानी छोड़ ग्रामीणों पर ही जुर्म करा दिया। सिस्टम ने बता दिया कि मिनिस्टर होंगे अपनी जगह और जिले से लेकर प्रदेश के लिए। मर्जी हमारी चलेगी। हम जब चाहेंगे बनाएंगे और नहीं चाहेंगे तो चक्का नहीं कुछ भी जाम कर दो। तब वही होगा जैसे हाल ही में हुआ। सड़कों की हालत और सिस्टम का कबाड़ा पूरे प्रदेश में देखने को मिल जाएगा।
दागी शिक्षा अधिकारी से कैसे रखें उम्मीद और क्यों
सोशल मीडिया में दागी डीईओ की कहानी छाई हुई है। ट्रोल भी जमकर हो रहा है। कोटा के बीईओ रहते जो कुछ किया वह अब पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है। सोशल मीडिया में उस दौर के कारनामों के दस्तावेज भरे पड़े हैं। कलेक्टर का आदेश देख लें या फिर पीड़िता शिक्षिका का शपथ पत्र के साथ गुहार। बीईओ रहते क्या गजब किया था। अब तो डीईओ की कुर्सी पर विराजमान हो गए हैं। शिक्षा विभाग से जुड़े मुलाजिमों से लेकर आम आदमी क्या उम्मीद करे। यह सब हम आप पर छोड़ दे रहे हैं। सवाल भी और जवाब भी। एक सवाल हमारे मन में भी है। आखिर सिस्टम को हो क्या गया है। ना जांच ना पड़ताल, जैसे मन में आए आदेश निकाल दिया। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि एसीबी की छापेमार के दौरान ही सौंदेबाजी हो गई थी। उस समय दाल नहीं गल पाई, पक रही दाल अब जाकर गली। दाल गली तो पुराने कारनामे पीछा छोड़ते अब दिखाई नहीं दे रहा है।
भौंहे तनी,अस्तीन खींचे और भी बहुत कुछ हुआ
छत्तीसगढ़ विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन गजब ही हो गया। सवाल पूछा एक विधायक ने, जवाब दे रहे थे विभागीय मंत्री, बीच में कूद गए भिलाई के विधायक। यह सब नजारा देखकर राजधानी के विधायक कहां चुप रहने वाले थे या चूकने वाले थे। लिहाजा अपनी जगह पर खड़े होकर ऐसा कुछ किया कि भिलाई और रायपुर के बीच तनातनी का माहौल बन गया। एक झटके में सदन सड़क में तब्दील हो गया। भौंहे तनी यहां तक तो ठीक था, अस्तीने तन गई और भाषा भी सड़क छाप हो गया। रजत जयंती वर्ष में जनप्रतिनिधियों की सड़क छाप हरकतों ने तो हद ही कर दी। विधानसभा का प्रश्नकाल आनलाइन होता है। जिसने भी देखा,अवाक रहे गए। तभी तो स्पीकर को बोलना पड़ा। समझाइश दी, सदन को सड़क ना बनाने की अपील भी की और हिदायत भी। बारिश के इस मौसम में पानी को लेकर हायतौबा तो दिखाई दिया है,रोटी भी अपनी-अपनी सेंक ली।
एक दिन में 9 करोड़ का बोरे -बासी, ये तो हजम नहीं हो रहा
कांग्रेस सरकार के दौर में गर्मी के मौसम में पूरे पांच साल तक परंपरा चल गई थी। बोरे बासी खाने की। सीएम से लेकर मंत्री और अफसर से लेकर मुलाजिम सभी ने बोरे बासी का स्वाद चखा। राजधानी रायपुर में सरकारी आयोजन भी हुआ। एक ही दिन में मंत्री से लेकर विधायक और अफसर से लेकर मातहतों ने 9 करोड़ का बोरे बासी खा गए। हजम भी कर लिया और डकार भी नहीं मारी। ये तो गजब हो गया। आपको यकीन हो रहा है। ना तो ये बात हजम हो रहा है और ना ही किसी भी एंगल से यकीन। पर यह सौ फीसदी हकीकत है। विधानसभा के पटल पर मंत्री ने यह बात रखी है। लिखित दस्तावेज है। आयोजनकर्ताओं ने तो लंबा हाथ मार लिया है। पता नहीं कितने लोगों की जेबें गरम हुई होगी। बोरे बासी ने तो पीढ़ी ही संवार दी होगी।
अटकलबाजी
एसीबी की छापेमारी में एक डीईओ धराए थे। ये अलग बात है कि लंबे समय तक जमे रहे। राजधानी की पहुंच की धमक भी डीईओ कार्यालय में तब दिखाई दी थी। छापेमारी के बाद कुर्सी के लिए सौदेबाजी पक्की हो गई थी। नजराना भी पहुंच गया था। इसके बाद इतनी देरी क्यों हुई। क्या अड़चन आ रही थी।
बारिश के मौसम में पानी को लेकर सदन में हायतौबा मच गया। बिल्हा से सवाल आया और मंत्री जवाब दे रहे थे। भिलाई से मंत्री को आइना दिखाया गया। यहां तक ठीक है। पर बीच में रायपुर के विधायक ने जो कुछ किया और कहा। उसके पीछे की मंशा क्या थी। कहीं कुर्सी दौड़ में अपनी सीट पक्की कराने की जुगत तो नहीं बैठा रहे।

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