विभागीय अफसर कहीं संसाधनों की कमी से तो नहीं जूझ रहा ,अगर यह नहीं तो स्टाफ और मैदानी अमले की कमी होगी,और ये भी नहीं तो फिर ?
बिलासपुर छत्तीसगढ़ ।गांव-गांव में कच्ची शराब बन रहा है और धड़ल्ले के साथ बिक्री भी हो रही है। इस पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने का काम आबकारी विभाग का है। विभाग के अफसर और मैदानी अमला फिसड्डी साबित हो रहे हैं, या फिर माफिया के साथ मिलकर युवा पीढ़ी को बर्बादी की कगार पर पहुंचाने का काम। कच्ची शराब बनाने और बेचने वालों पर आखिरकार आबकारी विभाग के अफसर अंकुश क्यों नहीं लगा पा रहे हैं। लोगों की जुबान पर यह सवाल उठने लगा है। यह भी हो सकता है कि विभागीय अफसर संसाधनों की कमी से जूझ रहा होगा, अगर यह नहीं तो स्टाफ और मैदानी अमले की कमी होगी। अगर यह दोनों भरपूर है तो फिर यही कहा जा सकता है कि लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है और माफियाओं से सांठगांठ कर गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं। इस पूरे खेल में युवा पीढ़ी की बर्बादी और बदहाली तय है। इसके लिए जिम्मेदारी भी तय करनी होगी।
सरकार को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे पर ठोस कदम उठाए और आबकारी विभाग को सशक्त बनाकर उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराए। वरना “नशा मुक्त छत्तीसगढ़” केवल एक राजनीतिक नारा बनकर ही रह जाएगा ।
बताया जा रहा है कि जिम्मेदारी जिन कंधों पर होनी चाहिए, वहां संसाधनों की कमी का रोना रोया जा रहा है। गांवों में चल रहे अवैध शराब के धंधे को रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी आबकारी विभाग की है, लेकिन मौजूदा हालातों में यह काम पुलिस संभाल रही है। जगह-जगह छापेमारी कर पुलिस शराब पकड़ रही है, जबकि आबकारी अधिकारी अपने दफ्तरों तक सीमित नजर आ रहे हैं।कुछेक जगहों पर कार्रवाई कर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे है आज भी 93 लीटर महुवा शराब और 793 किलोग्राम महूवा लहान पकड़ने की जानकारी आई लेकिन इसकी पुष्टि के लिए जब आबकारी विभाग के अधिकारियों के पास फोन लगाया गया तो उनका फोन उठा ही नही ।
प्रदेश में नशा मुक्त छत्तीसगढ़ का सपना दिन-ब-दिन धुंधला होता जा रहा है। सरकार भले ही हर मंच से शराबबंदी और नशामुक्ति की बात करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। राज्य के गांव-गांव में खुलेआम कच्ची महुआ शराब बिक रही है और आबकारी विभाग मूकदर्शक बना हुआ है।माफिया के साथ मिलीभगत का ही असर है कि आबकारी विभाग के अफसर सब-कुछ जानते समझते हुए भी इस गोरखधंधे में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, या यूं कहें कि कार्रवाई से बच रहे हैं।
बीते सप्ताह भर से आबकारी विभाग के काम को पुलिस कर रही है। एसएसपी रजनेश सिंह और कलेक्टर की सख्ती का ही असर है कि शराब माफिया में हड़कंप मचा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि कच्ची शराब बनाने और बिक्री करने वालों के खिलाफ पुलिस का प्रहार लगातार जारी है। पुलिस की मुस्तैदी और सख्ती के बीच मजबूरी में आबकारी विभाग के अफसर और कर्मचारी जब्ती की कार्रवाई कर रहे हैं। आंकड़े सब-कुछ बता और समझा रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पुलिस की प्रभावी कार्रवाई जिले में चल रही है।
कोटा पुलिस ने 106400 रूपये की 532 लीटर कच्ची महुआ शराब जब्त किया

वीरेंद्र कुमार वर्मा पिता हरि राम वर्मा उम्र 32 वर्ष निवासी वर्मा मोहल्ला ग्राम गनियारी थाना कोटा
चंद्र भूषण वर्मा पिता स्व.कुंजराम वर्मा उम्र 42 वर्ष निवासी वर्मा मोहल्ला ग्राम गनियारी थाना कोटा
ये है आबकारी विभाग की कार्रवाई
93 लीटर महुआ शराब एवं 795 किलोग्राम महुआ लाहन जब्त

सत्यम लोनिया पिता मोती लाल लोनिया साकिन गुड़ी थाना सीपत 18 लीटर महुआ शराब जब्त किया गया। राम सागर पिता सुख सागर लोनिया साकिन गुड़ी थाना सीपत से 10 लीटर महुआ शराब जब्त किया गया।
अभिषेक पिता सखाराम राम साकिन खाड़ा थाना सीपत से 15 लीटर महुआ शराब जप्त कर छ.ग
हर प्रसाद पिता राम साय साकिन मोहरा थाना सीपत से 8 लीटर महुआ शराब जब्त किया गया। आबकारी
अधिनियम की धारा34(2) 59(क)का प्रकरण दर्ज किये जाकर आरोपी को जेल दाखिल किया गया।
गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में न केवल अवैध शराब का उत्पादन हो रहा है, बल्कि इसका खुलेआम व्यापार भी हो रहा है। इससे न सिर्फ कानून-व्यवस्था प्रभावित हो रही है, बल्कि प्रदेश की युवा पीढ़ी भी तेजी से नशे की गर्त में जा रही है।सरकार को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे पर ठोस कदम उठाए और आबकारी विभाग को सशक्त बनाकर उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराए। वरना “नशा मुक्त छत्तीसगढ़” केवल एक राजनीतिक नारा बनकर रह जाएगा

प्रधान संपादक