एसआईआर में और क्या-क्या
एसआईआर को लेकर हायतौबा मचा हुआ है। शहर से लेकर गांव तक हाय-हाय के सिवाय और कुछ भी नहीं। किसी का नाम मतदाता सूची से गायब हो गया तो किसी का नाम शहर से सैकड़ो किलोमीटर दूर के शहर के वार्ड में जाकर शिफ्ट हो गया है। एसआईआर ना होकर कोई जादूगरी हो रहा है। यह तो ठीक वैसा ही दिख रहा है,जैसे किसी मोहल्ले में मदारी का खेल हो और कुछ गायब हो जा रहा हो। एक बड़ा और गंभीर सवाल ये कि आखिर यह सब कैसे हो रहा है। भिलाई के बीएलओ को भला बिलासपुर शहर के किसी मोहल्ले के मतदाता का नाम कैसे पता होगा। नहीं होगा, ये आप भी समझ रहे हैं और हम भी।पर यह भी तो सच्चाई है, ऑनलाइन अपडेशन में तो यही सब दिख रहा है। शुरुआती दौर में यह हाल है तो आगे क्या होगा भगवान ही मालिक है। छत्तीसगढ़ में हो रहे एसआईआर को लेकर सहसा बिहार की याद आने लगी है। बिहार जैसे हालात पैदा हो गए तब क्या होगा। अभी से ये ना सोचिए। बीपी बढ़ जाएगा, आपका भी और हमारा भी।
गुरुजी बेचारे , बेगारी के मारे
एसआईआर के काम से पस्त हुए शिक्षकों की दिक्कतों को समझने और सुनने वाला सिस्टम ही नहीं है। ऐसा तो कुछ-कुछ लगता ही है। तभी तो शिक्षकों की दिक्कतें दूर करने कोशिश ही नहीं हो रही है। बीमारी से लेकर सुसाइड के भी मामले सामने आए। कई शिक्षक तो बदतमीजी और मारपीट के भी शिकार हुए। भिलाई से लेकर कोरबा तक इस तरह की शिकायतें भी सामने आई। जैसे-तैसे एसआईआर का काम पूरा हुआ तो एक और फरमान सामने आ गया है। शिक्षक स्कूल में बच्चों को पढ़ाई और सरकारी कामकाज के बीच सांप और बिच्छू भी भगाएंगे। यही काम बच गया था,सो अब यह बेगारी भी करनी पड़ेगी। ट्रेनिंग का झमेला अलग है। डाइट से प्रशिक्षण का फरमान आ ही गया है। नए पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षकों का ट्रेनिंग चल ही रहा है। इन सबके बीच आला अफसरों को बोर्ड परीक्षा के परीक्षार्थियों की जरा भी चिंता नहीं है। शिक्षक आखिर किस-किस काम को करे। पढ़ाई के अलावा सब तरह के बेगारी के बोझ से शिक्षक दबे जा रहे हैं।
एक हाथ दो,एक हाथ लो
सरकारी विभागों में बिजली बिल का बकाया सुनेंगे और आंकड़ें देखेंगे तो आप भी दंग रह जाएंगे। हजारों और लाखों को छोड़िए आंकड़ा करोड़ों में है। बड़े लोग बड़ी बातें की तर्ज ही इस तरह का खेल हो रहा है। बिजली विभाग है कि तगादा करके थक जा रहा है। विभागीय अफसर हैं कि कर्ज पटाने की चिंता ही नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि महीने दर महीने कर्ज की राशि बढ़ती ही जा रही है। विभागीय अफसरों की बेपरवाही से परेशान बिजली अफसरों ने अब बीच का कारगार तरीका खोज निकाला है। प्री पेड बिजली सिस्टम। मतलब ये कि मोबाइल की तरह आपको अपना स्मार्ट चार्ज कराना होगा। जितनी चाबी भरेेंगे आपका स्मार्ट मीटर उतना ही चलेगा। कहावत है ना सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। बिजली विभाग ने इसी कहावत को रोल माडल मानते हुए बीच का यह रास्ता निकाला है।
ये तो गजब हो गया
कुछ दिनों पहले की बात है अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया था। पूर्व राष्ट्रपति बतौर चीफ गेस्ट मौजूद रहे। सत्ता व विपक्ष से जुड़े दिग्गज नेताओं ने भी समारोह में शिरकत की। विवि प्रशासन ने एक बड़ी चूक कर दी। स्थानीय विधायक को तव्वजो नहीं दी। ना आमंत्रण में नाम और ना ही कार्यक्रम स्थल में गरिमा के अनुकूल जगह। बस फिर क्या था। जैसा होना चाहिए वैसा ही हुआ। कार्यक्रम में विधायक पहुंचे पर यूनिवर्सिटी के बुलावे पर ना मंच में गए और ना ही मेजबानी स्वीकार की। चर्चा बिलासपुर से राजधानी तक पहुंची। चर्चा के बीच अटकलें भी लगाई जा रही है। आगे की चर्चा कुछ दिनों बाद करेंगे। अटकलबाजी की हकीकत समझना और जानना भी जरुरी है।
अटकलबाजी
किसके इशारे पर विवि प्रशासन ने एक विधायक को अपमानित करने का साहस जुटाया।संघ परिवार से जुड़े विधायक को महत्व ना देने के पीछे कौन सी ताकत काम कर गई।
सरकारी दफ्तरों में स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत सरकारी दफ्तरों से होगी। स्मार्ट मीटर लग पाएंगे या नहीं।
प्रधान संपादक

